Book Title: Prashnottar Ratna Chintamani
Author(s): Anupchand
Publisher: Jain Prasarak Gyanmandal

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Page 20
________________ वलण सहज थइ जाय छे. माटे तेवा अधर्मीओनो त्याग करवो. १२ माता पितानी आज्ञामा रहेg, तेमने पूजनारा थवं, नित्य प्रातःकाले तेमने वंदन करवू. परदेश जती वखते अने आवीने पण विनय पूर्वक पादपूजन करवू. जो वृद्ध थया होय तो तेमने खावा पीवानी तेम ज पहेरवा ओढवानी शक्ति मुजब तजवीज राखवी. कोइ वखत क्रोध करवो नहीं. कटु वचन वापरवां नहीं. तेमना आदेशनुं उल्लंघन कर, नहीं. कदापि गेरव्याजबी, नहीं करवा योग्य काम बतावे तो मौनवृति धरवी. अयोग्य कर्म करवाथी थता गेरफायदा विनय पूर्वक समजाववा प्रयत्न करवो. तेमनो आपणा उपर अवर्णनीय उपकार छे. माताए नव मास सूधी उदरमा राखी, भार वहन करी अनेक वेदनानो आपणे माटे सहन करी छे, विष्टा मूत्रादि मलीन तलोथी आपणुं वारंवार प्रक्षालन कयु छे. वली आपणे व्याधि भोगवता होइए ते वखते क्षुधा, तृषा वेठी अनेक उपचारो करी आपणुं शुद्ध बुद्धिथी पालन करे छे. श्रा शिवाय परोक्ष रीते तेमना उपकारनो झरो निरंतर वह्या ज करे छे. माता पिता तो जगत्मां कल्पवृक्ष समान छे. अंतिम तीर्थंकर महावीरस्वामी त्रिशलादेवीना उदरमा आव्या पछी माता दुःखी थशे, एम धारी किंचित् वखत अचलायमान रह्या; तेटलामां तो माताए अनेक कल्पांत करवा मांड्या, मूर्छा खाइ धरती उपर ढली पड्यां ! ते ज वखते भगवंते अभिग्रह कस्यो के “ माता पिता स्वर्गे गया पछी ज दीक्षा ग्रहण करीश." अहो! पुत्रनी पूजनीक बुद्धि तरफ दृष्टि करो. राम अने लक्ष्मण तेम ज पांडवोए माता पितानी जे सेवा करी , तेनुं वर्णन सहस्र जि. व्हाथी पण करवू मुश्केल छे. तेमना करेला उपकारनो बदलो आपणे वाली शकवाना नथी, तो पण निरंतर तेमने धर्म रस्ते योजवा प्रयत्न करी भक्ति करवी. १३ ज्या स्वराजानो अथवा परराजानो भय होय, तेवा स्थानमा रहे, नहीं. रहेवाथी धर्मनी, धननी तेम ज शरीरनी हानि थाय छे.

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