Book Title: Prasharamrati Prakaranam
Author(s): Umaswati, Umaswami, Haribhadrasuri, Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 249
________________ २२० प्रशमरतिप्रकरणम् १९९ पू २४९ उ २७० उ २०२ पू १११ उ ३५ उ १९१ पू २७९ पू १३६ उ هو هو هو २०८ पू त्रैङिति च पालनार्थे [द] दण्डं प्रथमे समये दण्डत्रयविरतिश्चेति दर्शनचारित्रतपः दर्शनशीलदशविधधर्मानुष्ठायिनः दारूपमधृतिना भवति दिग्व्रतमिह देशावकाशि दिव्यात्कामरतिसुखात् दुःखद्विट् सुखलिप्सु दुःखसहस्रनिरन्तरगुरु दुर्नियमितेन्द्रियाणां दुष्प्रतिकारौ मातापितरौ दृढतामुपैति वैराग्य दृढरूढघनानामपि दृष्ट्वा कथमिह देशकुलदेहविज्ञाना देशं कालं पुरुष देहत्रयनिर्मुक्तः देहमनोवृत्तिभ्यां देहश्च यौवनं जीवितञ्च देहस्याशुचिभावः देहादिन्द्रियविषया देहो नासाधनको दोषक्षयः कषायविजयश्च दोषमलिनेऽपि दोषमलिनेऽपि सन्तो दोषेणानुपकारी द्योतयति यथा द्रमक इवावयवोञ्छकम द्रमकैरिव चटुकर्म १८६ उ | द्रव्यं कषाययोगादुप द्रव्यक्षेत्राकृत्यनुगमनं २७४ पू द्रव्यगुणपर्यायाणां १७२ उ द्रव्यात्मेत्युपचारः ५९ उ द्विगुणोऽपि च ३०२ उ द्विपञ्चभेद इति १७९ पू द्विविधाश्चराचरा द्वीन्द्रियसाधारणयो ३०३ उ द्व्यादिप्रदेशवन्तो १७७ पू [ध] ४० पू धन्यस्योपरि निपत २३ पू | | धर्मकथने च सततं ४६ उ धर्मध्यानमुपगतो ७१ पू धर्मध्यानाभिरतस्त्रिदण्ड धर्मस्य दया मूलं १७९ उ धर्मादृते न मोक्षो १०२ उ धर्माद्भूम्यादीन्द्रिय १०२ पू धर्माधर्माकाशानि १४६ पू धर्माधर्माकाशानि २८७ पू | धर्मावश्यकयोगेषु २९५ पू धर्मो गतिस्थितिमतां १५१ उ धर्मोपकरणधृतवपुरपि १५५ उ धर्मोऽयं स्वाख्यातो ३९ उ धुतमायाकलिमलनिर्मलस्य १३२ पू ध्यानानलस्तपः १७ उ [न] १३९ उ न च गतमायुर्भूयः न तथा सुमहाध्यैरपि १३३ पू न तदस्ति कालविवरं २४२ उ न स तिष्ठत्यनिबन्धादना ४ उ न हि सोऽस्तीन्द्रिय ९३ पू | नरलोकमेत्य सर्वगुण ७० पू १८५ उ २४६ उ २४१ पू १६८ पू १७० उ २४५ पू २०७ पू २१४ पू २३२ पू २१५ पू له مو مو مو مو مو به १६१ पू २५१ उ २६४ उ ६४ उ ६८ पू ११९ उ २९१ उ 44444 ४८ पू ३०८ पू

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