Book Title: Prasharamrati Prakaranam
Author(s): Umaswati, Umaswami, Haribhadrasuri, Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 253
________________ २२४ विनयप्रशमविहीना विनयफलं शुश्रूषा विनयव्यपेतमनसो विनयायत्ताश्च गुणाः विनिवृतपराशानामिहैव विपुलकुलोत्पन्नानपि विपुलेनापि यतिवृषा विषयपरिणामनियमो विषयसुखनिरभिलाषः विषसंयुक्तं भुक्तं विषयसुखानुगततृषः विहरति मुहूर्तकालं वीर्यमनिगूहमान: वृत्त्यर्थं कर्म यथा वैयावृत्त्योद्योगस्त वैप्रचण्डानाद्या नै वैराग्यमार्गसद्भाव वैराग्यमार्गसम्प्रस्थित वैरानुषङ्गजनकः क्रोधः वैशाखस्थानस्थः व्रजति सुतः पितृतां व्रणलेपाक्षोपाङ्ग शब्दादिविषयपरिणाम शयनासनसम्बाधन [श ] शाठ्यात् प्रत्ययहानिः शाश्वतमनन्तमनतिशय शासनसामर्थ्येन तु शास्त्रागमादृते न शास्त्राध्ययने चाध्यापने शास्विति वाग्विधिवि शिक्षागमोपदेश श्रवणा ६७ उ ७२ पू ७५ पू १६९ पू २३८ उ ८३ उ ९० उ १११ पू २४२ पू १०८ उ २३ उ २७१ उ २९६ उ १५ पू ११५ उ १९ उ १८१ उ शीतोष्णादिपरीषहविजयः शीलाङ्गसहस्राणामष्टा शीलाङ्गसहस्राष्टादश शीलार्णवस्य पारं २३९ पू ४५ पू २५ उ शुक्लध्यानाद्यद्वयमवाप्य शुद्धः स सिद्धिमेष्यति शुद्धिप्रवेकविभववदुपजातं शुभपरिणामवस्थिति श्रद्धा- सम्यक्त्व श्रद्धाकथकश्रवणेषु श्रुतबुद्धिविभवपरिहीण श्रुतशीलमूलनिकषो श्रुतशीलविनयसन्दूषण श्रुत्वा साम्प्रतपुरुषा: ६३ पू २६ उ २१० उ १५६ उ षष्ठश्च सान्निपातिक १३५ पू षड्जीवकाययतना श्रुत्वातिविस्मयकरं श्रोतृजनश्रोत्रमनः श्रोत्रावबद्धहृदयो हरिण श्लेष इव वर्णबन्धस्य [ श्र] २६९ पू १८८ पू ६६ पू १८५ पू १८६ पू २२३ पू सत्त्वानां भवसंसार सञ्चिन्त्य कषायाणा सञ्ज्वलनानपि हत्वा [ ष ] स क्रोधमानमाया सभवति देवो स समुदघातनिवृत्तोऽथ स समुद्धातं भगवानथ सक्तः प्रशमरतिसुखे सज्ज्ञान-दर्शनावरण [ स ] प्रशमरतिप्रकरणम् ११४ उ २४५ उ २४४ उ २४६ पू २५९ पू ३०८ उ २५५ उ १०४ उ ३०० उ १६२ उ ४ पू ६८ उ २७ पू ९२ उ ९५ उ १८२ उ ४१ उ ३८ उ १९७ उ ११४ पू २४ पू २९८ उ २७७ पू २७३ उ २५६ उ ३४ पू १६६ पू २६२ उ ३० उ

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