Book Title: Prasharamrati Prakaranam
Author(s): Umaswati, Umaswami, Haribhadrasuri, Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 310
________________ परिशिष्ट-५, पाठान्तराणि का. स्थल: टी.अं. प्रह. पत्राङ्क पाठान्तर ह. पा. पत्राङ्क २४५ वि. २ २४६ १९-B २०८-A २०८-A १०-A २४६ २४६ टी. अव. I ho ho ho ४८-B (दे) ५४-A ५४-A ७५-A (दे) १ م ه م م २४७ २४७ २४७ २४८ २४८ २४८ २४८ २४९ टी. टी. अव. टी. टी. अव. अव. टी. ho ho ho ho ho tus hos he २०८-B २०८-B १-A २०८-B २०९-A ७०-A ७०-A २०९-A ه مه له م कवच्चार्याणि इति सम्भाव्यते ?) योगात् नास्ति प्रकृष्टवैराग्य..... प्राप्य पारम्यप्राप्तः, विरक्ताया (क्तताया) दूरा.... सुख प्राप्य(:), पारस्य प्राप्तः. विरक्ततायाः । अदूरानुयायिनं.. (पारम्यप्राप्त इति पारं गत्वा इत्यस्य, विरक्तताया इति शीलार्णवस्य,अदूरानुयायिनम् इति उपगत इत्यस्य विवरणं इति सम्भाव्यते) चतुःप्रकारं धर्मध्यानं.... उपाश्रित्य सम्बुद्धि स्तीति । आज्ञाविचयो..... बहुत्वं वीतरागवचनं चाज्ञायाः लौकिकोऽपायः कर्मद्वयोः कोऽद्यो... कर्म द्वयोः कोऽद्यो (ट्यो) पाकोऽनुपाकोविभावो रस प्रविचयो द्रव्यक्षेत्रानुगमनम् कृत्यनुगमवान् धर्मो द्रव्यं परिणामी नास्ति लोकोऽपि एकसमयः इत्येक द्वयशीतिविधानां द्विचत्वारिंशद्भेदानां विपाको तेषामाकारानु (चिन्तनं) गमन [अनु] चिन्तनम् ॥ अत्र टीप्पणी★पुनरुक्त इवाभात्ययमर्द्ध चन्द्राकारचिन्हान्तर्गतः शब्दः अर्थासङ्गतत्वात् तस्य गणः समूहः तस्य( गुणा अहिंसकत्वादय स्तेषां) गण: ه टी. टी. ه २४९ २४९ २४९ २४९ ه م ه ਹੈ ਹੈ ਹੈ ਹੈ ਹੈ ਹੈ ਹੈ ਹੈ ਹੈ ਹੈ ५४-A ५४-A ७५-A (दे) ५४-A ५४-B ७५-B (दे) ७५-B (दे) ५४-B ७८-A (जै) २०९-A २०९-A २०९-A ५४-B ५४-B ५४-B ५४-B २०९-B ५४-B ५४-B ७५-A (दे) ७५-A (दे) ७५-A (दे) ७५-A (दे) ه ه ti ti ti ti ho ho he ti ho ho tos tos posts ५४-B ५४-B ५४-B २०९-A २०९-A २०९-B २०९-B ५४-B २०९-B २०९-B १०-A १०-A १०-A १०-A २४९ २४९ २४९ २४९ २४९ २४९ २४९ २४९ २४९ ه ه टी. टी. टी. अव. अव. अव. अव. ه ه । ه ه ه ७५-A २५० टी. १ हे. २०९-B २०९-B ५४-B ७८-B (जै) chdahi २५० टी. २ हे. २१०-A भेदेन ५४-B

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