Book Title: Prasharamrati Prakaranam
Author(s): Umaswati, Umaswami, Haribhadrasuri, Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 293
________________ २६४ प्रशमरतिप्रकरणम् का. स्थलःटी .अं. प्र.ह. पत्राङ्क पाठान्तर ह. पा. | १६३ टी. - नाम (प) ५१-B (जै) विकोलनं بی ج 2 the १४१-B चित्तभ्रमः शक्तिः 2 2 2 पत्राङ्क ५१-B (जै) १४१-B ३७-B ३७-B १४२-A ३७-B १४२-A ३७-B ३७-B ३७-B ७०-A ७-A शक्तिः १. WWWWWWW mmmmm he ho rs १४१-B १४१-B ७-A 2 3 3 3 لي لي १६४ 0000000 GM ... لي ३२-A (दे) १६४ । he ti to अव. अव. ३७-B ७-A ७-A لي لي لي ५२-A (जै) ५२-A (जै) ५२-A (जै) s १६५ टी. १ मु. ५२-A (जै) ३८-A १६५ १६५ १६६ १६६ is t शयनाहारं पत्नीपुत्राद्यासक्तेः नैकदेशस्वयुक्तिनिरपेक्षा न्ययुक्तिनिरपेक्षविचारणात् । विधुराणाम् (रेण) १३४ तमं पत्रं नास्ति । करणानि नास्ति इन्द्रियादिस[ पत्नविधुरेण ]म्प नो(?) वैरिविह्वलेन विरागमार्गप्राप्तौ विजयस्तेन प्राप्तो न भवति येन सर्वविरतिरवाप्तेति । कषायानिव पूर्वं नायकानिन्द्रिया कै. दीनां विजये, तज्जितेषु च..... कषायान् [साधयेत् ] इत्यधिकम् अनेक नास्ति प्रशमहेत्त्वो कारितानुमतिश्च ....अनुमतिरागद्वेषमोहानां निवारणार्थम् ॥१६५॥ पङ्क्तिरेका भ्रष्टा इति भाति कषा(का)यादिभि कथं ? इत्यधिकम् क्षमूएष् शुचिभावः वधबन्धनादि अव. अव. टी. टी. orror ७-A ७-A १४६-A ३८-A १४६-A ५२-A (जै) he ti ho # ७०-A (दे) ७०-A (दे) ३८-A १४६-A ३८-A १४६-A ਹੋ ਓ ਓ १६६ टी. و و १६६ १६६ १६७ १६७ १६७ १६७ १६७ و टी. अव. टी. टी. टी. orr aur 99999 or the hos ho ho ho ho he १४३-A ७-A १४६-B १४६-B १४६-B १४६-B १४६-A و و ५२-B (जै) ७०-A (दे) ३८-A ३८-A ५३-A (जै) ३८-B ३८-B و و सत्यं सद्भ्यो हितं सत्यं तच्चापि (च्चावि) संवादनादि..... अब्रह्मणो निवृत्तिरित्यर्थः क्षान्तिः...ऋजुता इत्यन्तं नास्ति अदत्तादानापरिग्रहो १६७ १६७ १६७ टी. अव. अव. ti rs rs ३८-B ७-A-B و وې १४०-A ७०-A (दे) ७०-A (दे) ७-B وي

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