Book Title: Prakrit Margopadeshika
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay

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Page 6
________________ प्राकृतमार्गोपदेशिकानी बीजी आवृत्ति सौथी पहेलां में ज्यारे काशीनी यशोविजयजी जैन पाठशाळामां अभ्यास करतो हतो ते वखते-विक्रम संवत १९६७ ना वर्षमां-प्राकृतमार्गोपदेशिका लखेली. तेनी बे आवृत्ति थई गई छे. त्यार पछी ते पुस्तकमां अनुभवने परिणामे विशेष फेरफार कर्यो एटले ए पुस्तक ज तद्दन नवी रीते तैयार थयं, तेनी आ बीजी आवृत्ति छे. आवी प्राचीनभाषाना पुस्तकनी पण आटली प्रगति थई छे ते य घणुं कहेवाय. हजु आपणा अभ्यास करनाराओगें लक्ष्य, व्युत्पत्तिशास्त्र अने भाषाना मौलिक तथा विज्ञानयुक्त इतिहास तरफ ओछु गयुं छे. जेम जेम लक्ष्य वधशे तेम आ पुस्तकनुं मूल्य तेओ जाणी शकशे. ____ 'प्राकृतभाषा के अर्धमागधीभाषा जैनोनीज छे' अने 'जो विद्यार्थीओ एनो अभ्यास करवा मंडशे तो संस्कृतनुं शुं थशे ?' आवा भ्रमो वातावरणमांथी नीकळी जवा जोईए अने तुलनात्मक रीते प्राचीन तथा अर्वाचीन आर्यभाषाओनो अभ्यास विशेष ने विशेष विनयमंदिरोमां तेम ज महाविचालयोमां वधतो जवो जोईए. आम थशे तो ज भारतनी राष्ट्रभाषानी गूंच आपोआप ऊकली जशे. मुंबई विद्यापीठे अर्धमागधीभाषाने अभ्यासक्रममा स्थापित करी ज छे परंतु ते स्थापनाने सक्रिय रीते चलाववानी जवाबदारी विनयमंदिरो अने महाविद्यालयोनी छे अने जनोनी तेम ज जनोनी विद्याप्रचारकसंस्थाओनी आ अंगे विशेष जवाबदारी छे. आ आवृत्तिमां, प्रथम आवृत्तिमां कह्या प्रमाणे संशोधन

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