Book Title: Prakrit Margopadeshika
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Gurjar Granthratna Karyalay

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Page 11
________________ लियम ध्यानमा राखवाथी बधा उच्चारणमेदोनो स्फोट सहजमां थई ज़शे. शिक्षक, उक्त नबे मुद्दाओने लक्ष्यमा राखीने शीखवशे अने विद्यार्थी पण ते मुद्दाओने ते रीते बराबर समझीने शीखशे तो कोइने निष्फळता मळवानो संभव नथी. वर्णविकारना नियमो समझावतां उक्त नवमो महानियम तो न ज भुलाय. परंतु ते माटे आपेलां उदाहरणो ऊपरांत बीजां पण उदाहरणो शिक्षक जरूर शोधी शके. एक विकार थवा पछी तेना उपर बीजा बीजा विकारो केवी केवी रीते थाय छे ते समजाववा भाषाना ग्रामीण शब्दो बहु उपयोगी थशे. ते उपरांत हिंदी, मराठी अने बंगाली भाषाना शब्दो प्रण बहु रुचिकर नीवडशे. संस्कृत अने प्राकृतमां वततो उच्चारणमेद याने वर्णविकार थवानां कारणोमां बोलनारानां शरीर ऊपर थती भौगोलिक असर, उच्चारणस्थानोमां थता फेरफारो, स्पष्ट उच्चारणने माटे जोइता शारीरिक बळनो ह्रास, लखनाराओनी बेदरकारी, परंपराने ज मान्य राखवानो आग्रह, बीजी प्रजानो सहवास, धर्मक्रांति, राजसत्ता, भाषा संबंधी आदरनो घटाडो, पंडितोनो उन्माद, छेका मारेला शब्दो उपरथी नवा शब्दोनी कल्पना, वांचनाराओनो भ्रम, लखेलु तेवू ज वांचवू, अनुवाद करवामां असावधानता वगेरे अनेक कारणो छे; ते तरफ शिक्षके विद्यार्थीनुं ध्यान खेचq. आ रीते स्पष्टतापूर्वक शीखववाथी भाषाना मेदोनो कोयडो आपोआप ऊकली जशे अने ए मेदोमांथी प्रकटेली ए अस्मिता पण शमी जशे. पाछला पाठोमां पर्यायवाची समान हिंदी शब्दो, मराठी

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