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प्राकृतभाषा, केटली बधी सरळ अने सुखपूर्वक बोली शकाय तथा लखी शकाय तेवां उच्चारणोवाळी छे तेनी विशेष समझण माटे अने संस्कृत तथा प्राकृत ए बन्ने भाषा वञ्चना उच्चारणभेदनो स्पष्ट ख्याल विद्यार्थीओने आवे ते सारु प्रत्येक स्थळे संस्कृत साथे तेनी तुलना करी बतावानी छे.
तुलनात्मक संस्कृत अने प्राकृत शब्दो उपरांत तेने मळता वा तेमाथी नीपजेला अर्थसूचक गुजराती शब्दो पण साथे साथे जणावेला छे-आ बधुं भाषानी सरखामणीनी दृष्टिए अभ्यास करनार विद्यार्थीने उपयोगी थशे अने आ पद्धतिथी प्राकृत भाषानो अभ्यास पण सुकर बनशे.
प्रयोजन जेमचें मूळ-उद्भवस्थान-प्राचीन आर्यभाषामां के तेवी गुजराती, मराठी, बंगाळी अने हिंदी वगेरे आर्यपेढीनी भाषाओनो तुलनात्मक अभ्यास करवा सारु अने ए प्रांतिक भाषाओनी मौलिक एकताद्वारा समग्र प्रजानुं ऐक्य समझवासाधवा सारु प्राकृत भाषाना अभ्यासनुं विशेष महत्त्व छे.
जूनी गुजराती, मराठी, बंगाळी के हिंदीने सारी रीते समझवा माटे अने उक्त ते ते भाषाना प्राचीन वा अर्वाचीन प्रत्येक शब्दनो क्रमविकास शोधवा अने ते द्वारा शुद्ध इतिहास उत्पन्न करवा पण प्राकृतना अभ्यासनी उपयोगिता के.
भारतीय तपस्विओना आध्यात्मिक विचारो जेम संस्कृत उपनिषदादिमां जळवायेला छे तेम प्राकृतभाषाना साहित्यमां पण जळवायेला छे, तो ते बधाने समझवा अने सर्वधर्मसमभावना जीवनहितैषी ' उदार सिद्धान्तने विशेष रीते लक्ष्यमा लाववा पण प्राकृतभाषाओना अध्ययननी अतिअगत्य छे.