Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah
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ते थकी अमयां अमयां धनुषनुं । जाणजो जावत् रत्नप्रना सुधी
प्रथम नरके धनुष ॥ अंगुल ६ ॥२५॥ तत्तो अघ धूणा। नेत्रा रयणप्पहा जाव ॥३॥ ||जोजन एकहजारनुं मान । मच्छर्नु उरपरिसर्पनुं ते पण गर्नज-होय॥
जोयण सहस्स माणा । महा नरगाय गप्नया हुंति ॥ धनुष बेथी नव सुधी पक्षीजीवोनुं गर्नजनुं । नुजाइं चालनारनुं बे
गउथी नव गउनुं शरीर गर्नजनुं ॥३०॥ धणुह पहुत्तं पकी। नुयचारी गाग्य पहुत्तं ॥३०॥ आकाशचारीनुं बे धनुषथी नव धनुषनुं शरीर उमुर्बिमनुं । साप उरपरिनुं तथा जुजाचारीनुं बे जोजनी नव जोजननुं बमुर्जिमनुं ॥
खयरा धणुह पहुत्तं । नरगा नुअगाय जोयण पहुत्तं॥ बे गउथी नव गउ शरीर मान। उमुर्बिम चोपदने कां बे ॥३१॥
गान्य पहुत्तं मित्ता। समुचिमा चनप्पया नणिया॥३१॥ उनीश्चे गउनुं शरीर । चोपद गर्नजने जाणवू देवकुरु आदेना
गजादिकनुं॥ बच्चेव गाग्याई । चनप्पया गप्नया मणेयव्वा ॥ गउ त्रण वली मनुषने शरीर गर्नजने ए पण देवकुरु आदेनानुं । ए
उत्कृष्ट शरीरनुं मान कयुं ॥ ३२॥ कोस तिगंच मणुस्सा । नकोस सरीर माणेणं ॥३॥ नुवनपती व्यंतर ज्योतषी बीजारदेवलोक सुधी देवर्नु ।
हाथ सात होय देहर्नु उंचपगुं॥ ईसाणंतु सुरांणं । रयणीन सत्ता हृत्ति उच्चतं ॥
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