Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah
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गाय आदे१ साप आदेश नोलीया आदे३ । जाणवा जेम कह्या
तीम संक्षप थकी ॥१॥ गो सप्प ननल पमुहा।बोधव्वा ते समासेणं ॥२१॥ हवे आकाशचारी ते रोमजपंखी हंसादिक । चांममानी पारखोवाला
वागोलादि ते बेतो प्रसीद्ध के नीचे ॥ .. खयरा रोमयपस्की । चम्मय पकी पायमा चेव ॥ मनुषलोकने वा अढीन्द्वीपने बाहीर । पांखो संकोची रहे ते तथा
पांखो वीस्तारी रहे ते ॥ २२॥ नरलोगान बाहिं । समग्गपकी वियपकी ॥२२॥ सघला जलचर थलचर आकाशचर । माटी प्रमुखे उपजे ते।
माताना गर्ने उपजे तेश बे प्रकारे होय ॥ सव्वे जल थल खयरा। समुचिमा गप्नया दुहा हुंति॥ असी मसी कसी १५ कर्मयुक्त प्रथवीना ३० अकर्म प्रथवीना।
५६ अंतरद्वीपना ए एकसो एक थानकना मनुष ॥ २३॥ कम्मा कम्मग महीा । अंतरदीवा मणुस्साय ॥३॥ || दस जेदना नूवनपती होय असुरकुमारादि । आठ नेदना वाणव्यंतर
होय पिशाचादि। दसहा नुवणाहिवई । अविहा वाणमंतरा हुँति ॥ ज्योतिषिय पांचनेदना चंद्र सुर्यादी होय । बे नेदना वैमानीक देव
___ कल्प कल्पातित ॥२४॥ जोसिया पंचविहा । दुविहा विमाणिया देवा ॥४॥ हवे सिद्धनगवान आठ कर्म रहीत ते मना पन्नर नेद । तिर्थसिद्ध
__ अतिर्थसिद्धादी नेदे करीने ॥ सिघा पन्नरस नेत्रा। तिबा तिबाइ सिघ नेएणं ॥

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