Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah

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Page 9
________________ % - - %3 ४ ते सघलांसाधारण घणाने नोग योग्य सरीर । तेथी जे उलटां ते वली प्रत्येक एकने जोग योग्य ॥१२॥ साहारणं सरीरं । त व्विरीयं च पत्तेयं ॥१॥ एक सरीरमा एकज।जीव जे जे च समुच्चय तेज प्रत्येक वनस्पती॥ एग सरीरे एगो। जीवो जेसिं च तेय पत्तेया॥ फलनो? फुलनोर बालिनो३ लाकमानोध । मुलनोए पानमानो८ बीजनोउ ए॥१३॥ फलफुलरबल्लिकन।मुलगपत्ताणिबीयाणि ॥१३॥ प्रत्येक वक्षने मुकीने । पांचनेदे प्रथवि आदे समस्त लोके ॥ पत्तेय तरु मुत्तं । पंचवि पुढवाश्णो सयल लोए॥ सुक्ष्म होय नीश्चे तेनुं ।अंतरमुर्हत आयु चर्मचक्षुथी अदृश्य ॥१४॥ सुहमा हवंति नियमा। अंतमुहुत्ता न अहिस्सा ॥१४॥ शंख १ दक्षणा व्रतादी कोमा कोमीयोश् पेटमां पमे ते जीव । जलो थापना थाय ते अलसीयां लघु शंखला वा लाल मुके ते॥ | संकर कवड्यश्गंमोल।जलोय चंदणग अलस लह मेर काष्टना कीमा पेटना करमीया पाणीना पुरा । ए बेरंगाई॥ द्रीय चूमेल वा कोद्रवाकार आदी ॥१५॥ मेहर किमि पूयरगा। बेइंदिय माश्वाहाई ॥१५॥ कानखजुरा मांकण जूश्रा धूलमां रहेते। कीमीयो उधेही माटिनां शिखर करे ते मंकोमा || गोमी मंकण जूत्रा। पिपीलि नद्देहिआय मंकोमा ॥ इथलो घयमेलो। सवा पापणमा पमे ते गींगोमा जातीयो॥१६॥ इल्लिय घयमल्लीन । सावय गोगीम जाईन ॥१६॥

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