Book Title: Prakaran Mala
Author(s): Ravchand Jechand Shah
Publisher: Ravchand Jechand Shah
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ए पुर्वे कह्या ते संक्षेपे करीने । जीवना वीकल्प वा नेद समस्त
कह्या ॥ २५ ॥
एए संखेवेां । जीव विगप्पा समकाया ॥ २५ ॥ एते पुर्वोक्त जीवोने जेजे द्वार बे तेते कहे। शरीर आउखु तथा स्थीती सकायमा रहेवानी ॥ एएसिं जीवाणं । सरीर१ मानं विई सकायंमि३ ॥ प्राण जीवाज्योनी तेनुं प्रमाण । जेने जेम डे तेम हुं शांतिसूर कहीस ॥ २६ ॥ पाणा४ जोणिपमाणं । जेसिं जं चि तं मणिमो॥ २६ ॥ एक अंगुलने संख्यातमे जागे । शरीर एकेंद्रि सर्व सुक्ष्म तथा बादर जीवोने होय || गुल संख जागो। सरीर मेगिंदियाण सव्वेसिं ॥ जोजन एकहजार अधीक एटलुं वीशेष ते प्रत्येक वनस्पतीनुं ॥२७॥ जोयण सहस्स महियं । नवरं पत्तेय रुकाएं ॥ २७ ॥ बार जोजन त्रज गाउनुं । एक जोजननुं समुच्चय ए अनुक्रमे जाए वुं ॥ बारस जोयण तिन्नेव गानई । जोणं च अणुकमसो बेरंद्री ते शंख्यादिकनुं तेरंद्री ते कानखजुरादिकनुं । चौरिंद्री ते जमरादिकनुं देहनुं उंचत्वपपुं ॥ २८ ॥
दिय इंदिय । चनरिंदिय देह नच्चतं ॥ २८ ॥ नवधारणी धनुष पांचसेंनुं प्रमाण । नारकी जीव सातमी प्रथवी
श्रादेनानुं ॥
धणु सयपंच पमाणा । नेरईया सत्तमाइ पुढवी ॥
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