Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 11
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 15
________________ ( १४ ) पर प्रश्नोत्तर" नामक पुस्तक लिखी है उसको मंगाकर पढ़ें ताकि आपको पता पड़ जायगा कि वास्तव में महाजन संघ के पतन के कारण क्या हुए हैं ! आचार्य श्री ने शुरू में जो शिक्षा दी थी, उस पर "महाजन संघ" जब तक चलता रहा तब तक तो वह श्री संपन्न और उन्नत ही रहा । किन्तु जब से उस शिक्षा का अनादर कर अन्य मार्ग का अवलंबन करना शुरू किया तब से ही महाजन संघ के पतन का श्री गणेश हुआ । यदि महाजन संघ अब भी उस असली शिक्षा का आदर करे तो उसकी उन्नति के दिन दूर नहीं किन्तु बहुत ही पास हैं । क्योंकि जो लोग कभी उन्नति का शब्द भी नहीं जानते थे वे भी अब अपनी उन्नति कर रहे हैं तो जो वस्तु खास महाजनों के घर की है उसमें उन्हें क्या देर लगती है । पर जो लोग अपने कलंक को पूर्वाचार्यों के शिर मढ़ना चाहें वे उन्नति की आशा स्वप्न में भी कैसे रखेंगे ? (१) भला ! आप स्वयं विचार करें कि "पूर्वाचार्यों ने यह कब कहा था कि हम जिन पृथक २ जातियों को समभावी बना उन सबका संगठन कर 'महाजन संघ' बना रहे हैं उसे तुम आगे चल कर तोड़ फोड़ टुकड़े २ कर डालना ?" यदि नहीं, तो फिर तुम आज किसकी आज्ञा से "हम बड़े तुम छोटे, हम मारवाड़ी तुम गुजराती, हम ओसवाल तुम पोरवाल, हम मुत्सद्दी तुम बाजार के बनिये, हम बड़े तुम लोड़े आदि शब्दों से अपनी मिथ्या महत्ता को प्रकट कर उनके साथ बेटी व्यवहार के नाम से भड़कते हो, जब कि उनके साथ २ बैठ तुम्हें रोटी खाने खिलाने में कोई द्वेष नहीं है।

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