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( ३२ ) भी हुए कि उन्होंने कई अजैनों को जैन बनाकर उनको अलग नहीं रख पूर्व महाजन संघ में मिला दिया और उन सब जातियों के साथ उएश, उकेश, और उपकेश वंश का विशेषण खुद उन आचार्यों ने ही लगाया ऐसा शिलालेखों से मालूम होता है।
अतएव जैन जातियों का गच्छ उपकेश गच्छ होना ही युक्ति युक्त और न्याय संगत हैं। हाँ कई जातियों के प्रतिबोध आचार्य सौधर्म गच्छीय जरूर हैं, पर उन्होंने अपनी जातियां अलग न रखकर उपकेश वंश के शामिल करदी थी। इस विषयका विवरण देखो 'जैन जातियों के गच्छों का इतिहास' नामक किताब में तथापि प्रकृत लेख में मैंने मेरी शोध खोज तथा चिरशास्त्राभ्यास से जो कुछ पता लगाया है उसे पाठकों की जानकारी के लिए यहाँ संक्षेप से उद्धृत किया है। विश्वास है तत्वग्राही इससे कुछ न कुछ लाभ अवश्य उठावेंगे। __ अन्त में मैं यह निवेदन करूंगा कि मैंने यह महाजन संघ की उत्पत्ति का इतिहास आप सज्जनों की सेवा में रखा है । यदि यह आपको रुचिकर हुआ तो आगे क्रमशः महाजन संघ के नररत्नों का इतिहास भी इसी प्रकार छोटे छोटे ट्रैक्टों द्वारा आप के पठनार्थ उपस्थित करता रहूँगा जिससे के आपके पास इतिहास की अश्ली. सामग्री एकत्र होजायगा-इति शुभम् ।..