Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 11
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 31
________________ ( 30 ) गए । बस, खास कर महाजन संघ एवं ओसवाल, पोरवाल, और श्रीमाल जाति का पतन इसी कारण से हुआ है । क्योंकि दुनियां में इससे बढ़ कर और दूसरा वज्रपाप ही क्या हो सकता है कि जिन आचार्यों ने अथाह परिश्रम कर जिनको मांस मदिरादि दुर्व्यसनों से बचा सदाचारी बनाया, आज वे ही लोग उनके उपकारों को भूल उल्टी उनकी निन्दा करें । अरे कृतघ्न्न भाईयों ! • अब भी तुम सोचो समझो कि क्या तुम्हारे लिए यही उपयुक्त मार्ग है ? मेरे खयाल से तो निःस्पृही साधुओं को गच्छों का ममत्व रखना लाभ के बदले हानिप्रद ही है । क्योंकि त्यागी साधुओं को सब गच्छों वाले गुरू समझ कर पूज्य भाव से उनकी पूजा उपासना किया करते हैं । परन्तु वे ( साधु ) ही फिर सब को छोड़ केवल एक गच्छ के ही गुरू क्यों बने ? यह तो एक अथाह समुद्र के संग को छोड़ चीलर पानी में आ कर गिरने के सदृश है । हाँ, वे अलबत्ता जिनमें आत्मीय गुणों का अभास न हो या अपने दुर्गुणों को गच्छ की ओट में छिपाते हों या परिग्रहधारी यति लोग हैं और उनमें कुछ भी योग्यता शेष नहीं है, वे बिचारे इन गच्छों के झगड़ों से लाभ उठा सकते हैं । क्योंकि उपरोक्त लोंगों के गच्छ के घर अधिक होंगे उनको पैदास भी अधिक होगी, इसी से वे गच्छों की खीचातानी कर श्रावकों को आपस में लड़ाने में लाभ उठा सकते हैं । पर शासन सेवा की दृष्टि से तो इस प्रकार गच्छों की खींचा-तानी कर संघ में क्लेश बढ़ाना उनके लिए भी हानिकारक ही है तथा श्रावकों को भी इसमें अत्यधिक

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