Book Title: Prachin Jain Itihas Sangraha Part 11
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpmala

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Page 29
________________ ( २८ ) ४-किसी को मंत्र यंत्रादि बतला कर अपना उपासक बना लिया। ५-किसी को स्वकल्पित लेख बता कर अपना श्रावक बना लिया। ६-किसी को शुष्क क्रिया का आडम्बर बतला कर अपना श्रावक स्थिर कर लिया। ___ इत्यादि कई प्रकार से प्रपंच रच कर जो पूर्वकाल में संघ का श्रेष्ठ संगठन था उसके टुकड़े २ कर डाले । यही कारण है कि एक ही जाति के लोग एक ही गाँव अथवा ग्रामातर में भिन्नभिन्न गच्छों के उपासक बन गए। खैर । यह तो हुआ सो हुआ ही है, पर एक बड़ा भारी नुकसान यह भी हुआ कि उन जातियों का इतिहास भी अस्त व्यस्त हो गया । जैसे कि (१) आदित्यनाग-चोरड़िया गुलेच्छा पारख गदइया सवसुखा नाबरि आदि (२) बाप्पनागबहुफूणा-वाफना जाँघड़ा नाहता वैतालादि (३) बलाह-रांका वांका सेठादि (४) संचेती वगरह जातियों का इतिहास २४०० वर्ष जितना प्राचीन है और इन जातियों के उपदेशक आचार्य रत्नप्रभसूरि थे तथा इन जातियों के कई नररत्नों ने असंख्य द्रव्य व्यय कर एवं आत्मीय पुरुषार्थ द्वारा देश समाज एवं धर्म की बड़ी बड़ी सेवाएँ कर नामना कमाई की । इन जातियों को कई अज्ञ लोग सात आठ सौ वर्ष इतनी अर्वाचीन बतला देते है । यह एक इतिहास का खून नहीं तो और क्या है ? इसका खास कारण तो यह हुआ ज्ञात होता है कि किसी प्रान्त एवं ग्राम में अन्य गच्छीय आचार्यों का अधिक परिचय होने के कारण भद्रिक श्रावक उन्हीं आचार्यों के

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