Book Title: Prabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Author(s): Puranchand Nahar
Publisher: Vijaysinh Nahar

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Page 4
________________ एक शब्द स्वर्गीय पूज्य पिताजी के हृदय में अपने हिन्दी निबन्धों के संग्रह के प्रकाशन की बात बहुत पहले उठी थी, सहृदय जनों के अनुरोध और प्रेरणा से उन्होंने प्रस्तुत 'प्रबन्धावा के रूप में संग्रह छपाना प्रारम्भ कर भी दिया था। पर ३-४ फार्म ही छपे थे कि वे दक्षिण भारत की तीर्थ-यात्रा के लिये चले गये और प्रवास से लौटने के कुछ ही दिनों बाद उनका देहान्त हो गया, जिससे 'प्रबन्धावली का काम एकाएक आगे बढ़ने से रुक गया । कालगति से हाथ में लिया हुआ जो काम वे पूरा नहीं कर सके थे, वह मैं अब पूरा करना अपना कर्तव्य समझता हूँ। न मुझ में पिताजी की विद्वत्ता है, न लगन; अतः 'प्रबन्धावली' में जो कमियाँ रही होगी. तथा जो देरी हुई है, उसके लिये विद्वजनों से मैं विनम्र भाव से क्षमाप्रार्थी हूँ। 'प्रबन्धावली' की उपयोगिता पर सम्मतियाँ भेज कर, आशा है, समीक्षक गण आगे के प्रकाशनों के लिये मेरा उत्साह बढायेंगे । कलकत्ता. विजयसिंह नाहर त० १.११.३७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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