Book Title: Pooja Sangraha Part 2 Author(s): Buddhisagar Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal View full book textPage 9
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ पूजा संग्रह उपोद्घात.॥ अनादिथी परमेश्वर के अने तेनी पूना पण अनादिकालथी छे. दरेक तीर्थकरनी अपेक्षाए आदि छे एम अपेक्षाए ज्ञानीओ जाणे छे. जल, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य, फल वगेरे पूजानां साधन वस्तुओ छे. अंगपूना, अग्रपूनामां साधन वस्तुओने उपचारे पूना कहेवामां आवे छे. द्रव्य पूजामां जलादि साधन पूजानो समावेश थाय छे. भावना, श्रद्धा, प्रीति, प्रभु गुणोनी स्तवना, तथा व्रतादि गुणोपडे प्रभुनी स्तवना करवी. प्रभुनी प्रभुना गुणो गाइ श्रद्धा पूर्वक भक्ति करवी, प्रभुना द्रव्य अने गाव अतिशयोनी स्तुति करवी. इत्यादि मानसिक सेवा भक्ति शुभ परिणामनो अने स्तुति पूजामय शब्दोनो भावपूजामा समावेश थाय छे. द्रव्यपूना अने भावपूना ए बे भेद पण प्रभुनी सेवा भक्तिरूप छे अने एवी सेवा भक्तिमां मतिश्रुत ज्ञान पण अंतरमा जाग्रत् होय छे, तेनी साथे चारिवनी भावनाओ पण उल्लसे छे झानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग, जगत्मां अनादिकालथी सर्व देशमां अनेकरूपे होय छे. साधनभतिनी अपेक्षाए भावभक्तिना पण अनेक भेद पडे छे. दरेक धर्ममां भक्तिने प्रभुनी प्राप्तिनुं साधन मानवामां आव्युं छे. केटलाक मतवालाओ प्रभु परमात्माने साकार मानीने तेमनी भक्ति करे छे. मुसल्मानो अल्ला खुदाने अनंत नूरनो दरियो मानीने प्रभुनी भक्ति करे छे. वेदांतीओमा केटलाक मतवादीओ-रामानुज, रामानंद, मध्व, For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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