Book Title: Perspectives in Jaina Philosophy and Culture
Author(s): Satish Jain, Kamalchand Sogani
Publisher: Ahimsa International

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Page 213
________________ से अपने भीतर प्रात्मिक शक्ति का प्रस्फुटन करता है । यह शक्ति श्रात्मपरक होते हुए भी परकल्याण मे परम सहायक होती है। प्रस्तु पूर्वाचार्यों ने वरांशक्ति की ध्वनियों का वैज्ञानिक गुठन कर अन्य मन्त्रो की भी रचना की । अर्थात् मन के साथ जिन वर्णं ध्वनियो का घर्षण होने से दिव्य ज्योति प्रगट होती है उन ध्वनियों के समुदाय को भी प्राचार्यों ने मन्त्र नाम से ही सम्बोधित किया है। मन्त्रो का बार-बार उच्चारण किसी सोते हुए को बार-बार जगाने के समान है। यह प्रक्रिया दो स्थानो के बीच बिजली का सम्बन्ध जोड दिये जाने के समान है। साधक की विचार-शक्ति स्विच का काम करती है और मन्त्र-वाक्ति विद्युत लहर का जब मन्त्र सिद्धि हो जाती है, तब साधक अपनी आत्मिक शक्ति से अभीष्ट कार्यों की चमत्कारपूर्ण सिद्धि करता है । साधक की प्रात्मिक शक्ति से आकृष्ट देवता साधक के समक्ष अपना श्रात्मार्पण कर देता है जिससे देवता की समस्त शक्ति उस साधक मेधा जाती है और साधक लोक मे श्रभीष्ट कार्यों की चमत्कारपूर्ण सिद्धि करता है। यह प्रश्न उठना भी स्वाभाविक है कि जब णमोकार मन्त्र से ही समस्त कार्यों की सिद्धि हो जाती है तब अन्य मन्त्रो की रचना की आवश्यकता क्यो हुई ? णमोकारमन्त्र आत्मविकासात्मक मन्त्र है । इसके द्वारा श्रात्मशक्ति का विकास किया जाता है। किन्तु उस शक्ति का उद्घाटन एक निश्चित एव परिष्कृत जीवन यापन करने पर ही होता है अन्यथा अपेक्षित चमत्कारी कार्यों की सिद्धि नही होती है । अत पूर्वाचार्यों ने लोक-कल्याणकारी दृष्टि को ध्यान मे रखकर सासारिक त्वरित कार्य सिद्धि के लिये सुगम मार्ग युक्त शान्तिक एव पौष्टिक मन्त्रो का वैज्ञानिक गुठन किया है। शातिक मन्त्र जिन ध्वनियों के वैज्ञानिक सन्निवेश के घर्षण द्वारा भयकर श्राधि-व्याधि, व्यन्तर, भूतपिशाच की पीडा, क्रूरग्रह, जगम स्थावर विष, अतिवृष्टि, अनावृष्टि दुभिक्षादि इतियो और चौर आदि का भय प्रशान्त हो जाय उन ध्वनियों के सन्निवेश को जैनाचार्यों ने शान्तिमन्त्र से सम्बोधित किया है । आधुनिक विज्ञान ने भी लोक-कल्याण मे रोग निवारण के लिए ध्वनि तरंगो के सफल परीक्षण किये हैं। परिणामस्वरूप शारीरिक रोगो मे हो नही वरन् मानसिक रोगो मे भी लाभ प्राप्त हो रहा है । भारतीयो के लिए रोग निवारण के लिए मन्त्रो का प्रयोग एक साधारण सी बात रही है। हर भारतीय इसमे पारगत होता था । जीवन के हर क्षेत्र में इस विद्या का लाभ उठाया जाता था। मानसिक शातिदायक मन्त्र "ॐ श्रहं श्रसि उसा नम ॥" इस मन्त्र का नित्य स्मरण करने से मानसिक शान्ति रहती है तथा हर प्रकार के क्लेश का नाश होता है । सिर दर्द निवारण मन्त्र "ॐ ह्रीं श्रहं णमो प्रोहिजिरणारण परमोहिजिरणारण शिररोगविनाश भवतु ॥ " नेत्र रोग निवारण मन्त्र "ॐ ह्रीं श्रहं रामो सम्बोहिजिरणारा प्रक्षिरोगविनाशन भवतु 21

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