Book Title: Perspectives in Jaina Philosophy and Culture
Author(s): Satish Jain, Kamalchand Sogani
Publisher: Ahimsa International

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Page 262
________________ अभिव्यक्त जैन सिद्धान्तोका भगवद्गीता, उपनिपद् आदि ब्राह्मणग्रन्थोमे उपलब्ध सिद्धान्तोसे तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। आपने स्टाकहोम और कोपनहेगन विश्वविद्यालयोमे जैनधर्ममे उल्लेखना विषय पर कुछ भापण दिये थे जो ऐक्टा औरियन्टेलिया में एक वृहत् निबन्धके रूपमे प्रकाशित हुये हैं । आपने जनविद्याप्रोसे सम्बन्धित अनेक भापामोके ग्रन्थोकी समीक्षा भी की है। आपके मार्गदर्शनमे फ्रान्समे जैन विद्यामोके अध्ययनका भविष्य उज्जवल होगा। अन्य देशोमे जनविद्याएँ बेल्जियमके घेन्ट विश्वविद्यालयने भारतीय विद्या विभागके प्राचार्य प्रो० जे० ए० सी० डेलू जंन दर्शनके अच्छे विद्वान हैं । ये जर्मनीके डा० शूबिंगके शिष्य रहे हैं। इनका एक महत्वपूर्ण जर्मन निबन्ध एच० डब्लू, हॉसिंग द्वारा सम्पादित पुस्तकके चतुर्थ भागमे प्रकाशित हुआ है। इनके सम्पादकत्वमे शूबिंगकी पाहाधम्मकहानो (जर्मन) प्रकाशित हुई है । यूट्रेक्टके डा० गोण्डा द्वारा सम्पादित एक ग्रन्थमे जैन दर्शन पर इनका एक महत्वपूर्ण शोध-पत्र भी प्रकाशित हुआ है । फिनलैण्डके डा० अन्ट टाहिटनेन एक विश्वविद्यालयमे काम कर रहे हैं। 1956-58 मे वे वाराणसी मे रहे और पी० एच०डी० की उपाधि प्राप्त की। उन्होने भारतीय परम्परामें अहिंसा नामक एक ग्रन्थ अग्रेजीमे लिखा है जो 1976 में प्रकाशित हुआ है। इस ग्रन्थमे उन्होने जैन अन्योके उद्धरण देकर भारतीय परम्परामे अहिंसाकी प्रतिष्ठाको सिद्ध किया है। केम्ब्रिजके प्राच्यविद्या विभागके प्राचार्य डा० के० आर० जर्मन, पालि तथा प्राकृत भाषाप्रोके विशिष्ट विद्वान हैं। आपने प्राकृत भाषाके भाषाशास्त्रीय अध्ययनमे विशेष रुचि प्रदर्शित की है। आजकल आप जैनागमोका अध्ययन कर रहे हैं एव प्रापके निर्देशनमे कुछ छात्र शोध काय भी कर रहे हैं। आस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी केनबरा (आस्ट्रेलियन) के प्रो० वाशम और मेटुम हरकुस भारतीय विद्यालोके साथ-साथ जैन विद्याप्रो पर भी शोध एव मार्गदर्शन कर रहे हैं। इन्होंने कुछ पुस्तकें भी इस विषय पर लिखी हैं। अनेक शोध-पत्र भी इनके प्रकाशित हुये है। डॉ० बाराम तो भारत भी पा चुके हैं। वियना (आस्ट्रिया) के डा० फाडवालनर तथा हाले (पूर्वजर्मनी) के प्रो० मोडेका नाम भी यहा उल्लिखित करना आवश्यक है जो अपने-अपने देशोंमे जैन विद्यायोके अध्ययन और शोधमे लगे हुये है। इस प्रकार हम देखते हैं कि अब पाश्चात्य देशोमे भी अनेक स्थानो पर जनविद्याप्रोके अधिकारी विद्वान् प्रतिष्ठित है। अनेक विश्वविद्यालय जैन विद्याप्रोके अध्ययन एव शोधके केन्द्र बने है। हम आशा करते हैं कि ये केन्द्र जैनविद्यापोको समुचित रूपमे प्रकाशित करनेमे महत्त्वपूर्ण योगदान करते रहेगे। निदेशक अनेकान्त शोधपीठ बाहुबली (महाराष्ट्र) 10

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