Book Title: Perspectives in Jaina Philosophy and Culture
Author(s): Satish Jain, Kamalchand Sogani
Publisher: Ahimsa International

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Page 258
________________ नही है, क्योकि इसकी प्राप्ति मे दूसरो का भी सहयोग है - 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' (श्रीतत्त्वार्थसूत्र - 521 ) । अपरिग्रह सिद्धान्त के अपनाने से सग्रहखोरी मिटेगी, काले धन की समाप्ति होगी, नीतिन्याय की स्थापना होगी । फलस्वरूप पारस्परिक वैमनस्य, परिस्पर्द्धा और स्वार्थ के मिटने से सन्तोष फैलेगा । इससे विश्वशान्ति की स्थापना होगी । - ॐ शान्ति 41, रीज रोड (आदीश्वर चौक) बालकेश्वर बम्बई - 400006 चरित्रहीन व्यक्ति के द्वारा अत्यधिकरूप से भी फ्ढा हुआ श्रुत क्या प्रयोजन सिद्ध करेगा ? जैसे कि अन्धे व्यक्ति के द्वारा जलाए गए भी लाखो करोडो दीपक उसके लिए क्या प्रयोजन सिद्ध करेगे ? समणसुतं, 266 मोक्ष पुरुषार्थं किसी वर्ग मे सम्मिलित नही है इसलिये संस्कृत में इसे प्रपवर्ग कहते हैं, वर्ग विहीन कहते हैं । परन्तु धर्म, अर्थ और काम आपस मे सम्बद्ध हैं इसलिये इन्हे त्रिवर्ग कहते है । मोक्ष अकेला और ये तीन, फिर भी मोक्ष की सामर्थ्य देखो, यह अकेला ही, इन तीनो को समाप्त कर देता है । 66 भाचाय विद्यासागर मोक्ष पुरुषार्थ के लिए जोडने की आवश्यकता नहीं है, सिर्फ छोडने की आवश्यकता है । अज्ञानी जीव जिन पर पदार्थों को बहुत समय मे जोडता है, ज्ञानी जीव उन्हे अन्तर्मुहूर्त मे छोड देता है । भरत चक्रवर्ती को अपना वैभव जोडने मे साठ हजार वर्ष लगे, पर छोडने मे कितने वर्षं लगे 1 वर्ष नही, अन्तर्मुहूर्त के भीतर सारा वैभव छोडकर वे सर्वज्ञ बन गये । आचाय विद्यासागर

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