Book Title: Paumchariu Part 1
Author(s): Swayambhudev, H C Bhayani
Publisher: ZZZ Unknown
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B
तं णिसुर्णेवि विगय-राउ भणइ जइ घोसइ 'होसइ तेणउ तर पइँ पुत्र भवन्तरें सहूँ करेंण परिधित्तपत्त तं एहु दुहु गउ एम भणेपिणु अमियगइ विहुणिय-तणु दूरुग्गिण-कमु " कुञ्जर- सिर- रुहिरारुण-णहरु अइ-वियड-दाढ- फाडिय-वयणु खय- सायर - रर्व- गम्भीर-गिरु
पउमचरिउ
[ ७ ] पुणु वसन्तमालाएँ वुत्तु 'णउ तेरउ । एउ सबु फलु एयहाँ गन्भों केर' ॥ १ 'ऍउ गन्भों दोसु ण संभवइ' ॥ २ ऍहु चरिर्म- देहु रणें लद्ध-जउ ॥ ३ जिण - पडिम सवत्ति मच्छरेंण ॥ ४ एवहिँ पावेसहि सयल -सुहु' ॥ ५ ताणन्तरें दुक्कु मयाहिवइ ॥ ६ सणि असणि णाइँ जमु काल - समु ॥ ७ कीलाल - सित्त - केसर - पसरु ॥ ८ रतुप्पल- गुञ्ज- सरिस- यणु ॥ ९ लङ्गूल-दण्ड-कण्डुइय-सिरु ॥ १०
तं पेक्खवि हरिणाविइ विज्जा - पाणऍ उपऍवि
हा कम्मै काइँ कि
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उमइ हा ताय महिन्द मइन्दु धरें हा मायरि तुहु मिण 'संथवहि East देव दाणवहाँ जक्खों रक्खो रक्खहों सैंहिय तं णिसुर्णेवि गन्धवाहिवर मणिचूडु रयणचूड दइउ अट्ठावर साव होवि थि
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[ क० ७, १-११, ८, १०९
॥ घत्ता ॥
अञ्जण स-मुच्छ महियलें पडइ । आयासे वसन्तमाल रडइ ॥ ११ [4]
'हा समीर पवणञ्जय अणिल पहञ्जणा । हरि-कियन्त-दन्तन्तरें वट्टइ अञ्जणी ॥ १
खलें मुइय लहेसहि कवण गइ ॥ २ सु-पसण्ण कित्ति परिक्ख करें ॥ ३ मुच्छाविय दुहिय समुत्थवहि ॥ ४ विज्जाहर - किण्णर- माणव हों ॥ ५ णं तो पञ्चाणणेण गहिये' ॥ ६ रणें दुज्जउ पर-उवयार-मइ ॥ ७ पञ्चाणु जेत्थु तेत्थु अइउ ॥ ८ हरि पारा तेण किउ ॥ ९
7. 1 A तउ तणउ. 2 A चरम 34 ते 4 A कालदुक्कालसमु. 5A पुंजगुजणयणु. 6 Ps°सरि°7s णंगूल 84 विज्ञापाण.
8. 1 पहंजण. 2 A अंजग. 3sA काई कंसु. 4 P सुमुच्छहहि, S समुच्छवहिं, A समुटुवहि. 5 A वहिय. 6 Ps रयणुचूडहि, A रयणचूडहो.
[७] आत्मीपीठात् ( ? ) गृहाङ्गणे निक्षिप्ता. २ रुधिरु.
[८] १ हे भ्राता २ न संबोधयसि ३ भो राक्षसयुक्ताः राक्षसाः ( ? ). ४ सखी ५ अष्टा पदः श्वापदो बभूव.
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