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________________ १५६ 15 B तं णिसुर्णेवि विगय-राउ भणइ जइ घोसइ 'होसइ तेणउ तर पइँ पुत्र भवन्तरें सहूँ करेंण परिधित्तपत्त तं एहु दुहु गउ एम भणेपिणु अमियगइ विहुणिय-तणु दूरुग्गिण-कमु " कुञ्जर- सिर- रुहिरारुण-णहरु अइ-वियड-दाढ- फाडिय-वयणु खय- सायर - रर्व- गम्भीर-गिरु पउमचरिउ [ ७ ] पुणु वसन्तमालाएँ वुत्तु 'णउ तेरउ । एउ सबु फलु एयहाँ गन्भों केर' ॥ १ 'ऍउ गन्भों दोसु ण संभवइ' ॥ २ ऍहु चरिर्म- देहु रणें लद्ध-जउ ॥ ३ जिण - पडिम सवत्ति मच्छरेंण ॥ ४ एवहिँ पावेसहि सयल -सुहु' ॥ ५ ताणन्तरें दुक्कु मयाहिवइ ॥ ६ सणि असणि णाइँ जमु काल - समु ॥ ७ कीलाल - सित्त - केसर - पसरु ॥ ८ रतुप्पल- गुञ्ज- सरिस- यणु ॥ ९ लङ्गूल-दण्ड-कण्डुइय-सिरु ॥ १० तं पेक्खवि हरिणाविइ विज्जा - पाणऍ उपऍवि हा कम्मै काइँ कि 20 उमइ हा ताय महिन्द मइन्दु धरें हा मायरि तुहु मिण 'संथवहि East देव दाणवहाँ जक्खों रक्खो रक्खहों सैंहिय तं णिसुर्णेवि गन्धवाहिवर मणिचूडु रयणचूड दइउ अट्ठावर साव होवि थि 25 Jain Education International [ क० ७, १-११, ८, १०९ ॥ घत्ता ॥ अञ्जण स-मुच्छ महियलें पडइ । आयासे वसन्तमाल रडइ ॥ ११ [4] 'हा समीर पवणञ्जय अणिल पहञ्जणा । हरि-कियन्त-दन्तन्तरें वट्टइ अञ्जणी ॥ १ खलें मुइय लहेसहि कवण गइ ॥ २ सु-पसण्ण कित्ति परिक्ख करें ॥ ३ मुच्छाविय दुहिय समुत्थवहि ॥ ४ विज्जाहर - किण्णर- माणव हों ॥ ५ णं तो पञ्चाणणेण गहिये' ॥ ६ रणें दुज्जउ पर-उवयार-मइ ॥ ७ पञ्चाणु जेत्थु तेत्थु अइउ ॥ ८ हरि पारा तेण किउ ॥ ९ 7. 1 A तउ तणउ. 2 A चरम 34 ते 4 A कालदुक्कालसमु. 5A पुंजगुजणयणु. 6 Ps°सरि°7s णंगूल 84 विज्ञापाण. 8. 1 पहंजण. 2 A अंजग. 3sA काई कंसु. 4 P सुमुच्छहहि, S समुच्छवहिं, A समुटुवहि. 5 A वहिय. 6 Ps रयणुचूडहि, A रयणचूडहो. [७] आत्मीपीठात् ( ? ) गृहाङ्गणे निक्षिप्ता. २ रुधिरु. [८] १ हे भ्राता २ न संबोधयसि ३ भो राक्षसयुक्ताः राक्षसाः ( ? ). ४ सखी ५ अष्टा पदः श्वापदो बभूव. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002523
Book TitlePaumchariu Part 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherZZZ Unknown
Publication Year1953
Total Pages458
LanguageSanskrit, English
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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