Book Title: Paramparagat Prakrit Vyakarana ki Samiksha Author(s): K R Chandra Publisher: Prakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad View full book textPage 6
________________ का कुछ विशेष रूप समझाने के लिए व्यवहारिक दृष्टि से संस्कृत भाषा से उनकी विभिन्नता दर्शाने के हेतु से व्याकरण लिखे गये थे। इस समीक्षा में यह भी प्रयत्न किया गया है कि अर्धमागधी भाषा के व्याकरण की क्या क्या विशेषताएँ हो सकती हैं, उसके मुख्य लक्षण क्या हो सकते हैं । अध्याय नं. 14 में अर्धमागधी साहित्य के प्राचीन और उत्तरवर्ती रूप भी दिये गये हैं । अध्याय नं. 15 में विशेषावश्यक भाष्य के नये संस्करण के आधार से यह दर्शाया गया है कि ताडपत्रीय एक प्राचीन प्रति के मिल जाने से उसके पाठों में जो आमूल परिवर्तन आ गया वह अर्धमागधी आगम ग्रन्थों को भाषिक दृष्टि से पुनः सम्पादित करने के लिए एक दिशासचन बन रहा है और प्राचीन पाठों के आधार पर उनका पुन: सम्पादन किया जाना चाहिए । के. आर. चन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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