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देवदत्ता
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४९. रात्रि में वे सब निश्चिन्त होकर सो गई। किसी के मन में अनिष्ट की
कल्पना नहीं थी। ५०. अर्ध रात्रि के समय राजा सिंहसेन विश्वस्त व्यक्तियों को लेकर अचानक
वहां आया। ५१. उसने कुटाकारशाला के सब दरवाजे बंदकर और अग्नि जलाकर उन
सबको मार दिया। ५२. जिन्होंने श्यामा रानी को मारने का मन में विचार किया था वे सभी
जलती हुई अग्नि से मृत्यु को प्राप्त हो गई। ५३. अतः किसी को किसी के प्रति बुरा विचार नहीं रखना चाहिए। जो
दूसरों के लिए कुआं खोदता है वह उसमें कैसे नहीं गिरेगा ? ५४. इस प्रकार का कुकर्म करके राजा सिंहसेन प्रसन्न होकर महल में
आया।
५५. हे गौतम ! श्यामा रानी में आसक्त होकर राजा सिंहसेन ने इस प्रकार
का कार्य किया जिसका फल बुरा है। ५६. श्यामा रानी के साथ प्रचुर भोग भोगते हुए उसने ३४०० वर्ष तक
निर्भयता पूर्वक राज्य किया। ५७. तत्पश्चात् मर कर वह कुकर्मों के कारण छठे नरक में उत्पन्न हुआ।
५८-५९. वह सिंहसेन राजा का जीव वहां (नरक में) वेदना भोगकर इस
नगर में दत्तगाथापति की पत्नी की कुक्षि से पुत्रीरूप में उत्पन्न हुआ। वह देवदत्ता नाम से प्रसिद्ध हुई।
६०. सद्भाग्य से इसका राजपुत्र पुष्यनंदी के साथ विवाह हुआ।
६१. तुमने रास्ते में राजपुरुष द्वारा ताडित जिस स्त्री को देखा था वह राजा
पुष्यनंदी की रानी देवदत्ता है।