Book Title: Paia Padibimbo
Author(s): Vimalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 147
________________ तृतीय सर्ग १ मनुष्य के जीवन में कब परिवर्तन हो जायें-यह कोई भी नहीं जानता है । भावों के वशीभूत होकर दुष्ट भी सज्जन हो जाते हैं और सज्जन भी दुष्ट हो जाते हैं। २. अगारधर्म को ग्रहण कर सुबाहुकुमार मन से उसका पालन करता है। वह अपनी शक्ति के अनुरूप पौषध आदि कार्य करता है। ३. एक बार उसने अष्टम भक्त (तीन दिन का उपवास) तप ग्रहण कर पौषध किया। मध्यरात्रि में उसके मन में ये शुभ भाव जागृत हुए४. वह ग्राम और नगर अभी धन्य है जहां भगवान् महावीर साक्षात् विहरण करते हैं। वे सभी मनुष्य धन्य हैं जो उनकी सेवा करते हैं और वाणी सुनते हैं। ५. वे कृपालु भगवान् यदि ग्रामानुग्राम से अभी यहां आ जाये तो मैं उनके पास में दुःखनाशक दीक्षा ग्रहण कर लूं। ६. शुद्ध मन से किए हुए भाव कभी निष्फल नहीं होते। वे पहले या पीछे निश्चित ही साकार होते हैं—ऐसा ज्ञानियों ने कहा है। ७. अपने ज्ञानबल से सुबाहुकुमार के भावों को जानकर जगतारक भगवान् ___ महावीर उसको तारने के लिए शिष्यों सहित वहां आये। ८. भगवान् के आगमन को जानकर भक्तजन प्रसन्नचित्त हो उनके दर्शन करने के लिए अहंपूर्विका जाते हैं । ९. भगवान् के आगमन को सुनकर राजपुत्र सुबाहुकुमार के मन में प्रसन्नता हुई । वह उनके दर्शन के लिए गया । १०. जिस प्रकार मेघ को देखकर चातकों का मन संसार में प्रसन्न होता है उसी प्रकार प्रभु के दर्शन पाकर भक्तों का मन प्रसन्न हुआ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170