Book Title: Oswal Ki Utpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ ओसवालों की उत्पत्ति wwxxxmmmmmm प्रभसूरि मान लिए जायें तो क्या हर्ज है ! और इनका समय विक्रम की छठी (६) शताब्दी का है जो ऐतिहासिक प्रमाणों से श्रोसवाल जाति की उत्पत्ति समय से मिलता जुलता भी है । ___ समाधान-भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा में रत्नप्रभसूरि नाम के छः आचार्य हुए और अन्तिम श्राचार्य रत्नप्रभसूरि का समय भी वि० की छठी शताब्दी का है यह बात सत्य है । परन्तु यदि अन्तिम रत्नप्रभसूरि को ही ओसवाल जाति का संस्थापक मान लिया जाय तो भी प्रमाण का सवाल तो हमारे सामने ज्यों का त्यों खड़ा ही रहेगा। श्राद्य रत्नप्रभसूरि और अन्तिम रत्नप्रभसूरि के बीच १००० वर्षों का अन्तर है, फिर भी अन्तिम रत्नप्रभसूरि का समय तो निकट का है । उस समय के अनेकों ग्रन्थ भी आज मिलते हैं पर किसी प्रन्थ, किसी स्थान या किसी शिलालेख से यह पता नहीं चलता है कि विक्रम की छठी शताब्दी में रत्नप्रभसूरि ने ओसवाल वंश की स्थापना की, और इसके विरुद्ध आद्याचार्य रत्नप्रभसूरि के विषय में यह प्रमाण मिलता है। फिर यह कहां की समझदारी है कि जिसका प्रमाण मिलें उसे तो नहीं माने और जिसके प्रमाण की गन्ध तक न मिलें उसे कोरे अनुमान मात्र से ही ओसवालवंश का संस्थापक मानलें ? यह तो केवल दुराग्रह ही सिद्ध होता है। - पाठकों की जानकारी के लिए आद्याचार्य रत्नप्रभसूरि को प्रोस. वाल वंश का संस्थापक बताने वाले प्रमाण हम नीचे उद्धृत करते हैं: तत्र श्रीमद्रत्नप्रभसूरिः पंचशतशिष्यैः समेतो लूणाद्रहीं समायाति, मासकल्पं चारण्ये स्थितः । गौचयार्थ मुनीश्वराः ब्रजन्ति परं भिक्षां न लभन्ते।लोक मिथात्ववासिता यादृशा गतास्तादृशा आगताः । मुनीश्वराः पात्राणि प्रतिलेष्य मासं यावत् सन्तोषेण स्थिताः । . .. पश्चात् विहारं कृतवन्तः । पुनः कदाचित् तत्रायाताः । . शासन देव्या कथितं भो !आचार्य अत्र चतुर्मासकं कुरु,

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56