Book Title: Oswal Ki Utpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 51
________________ प्राचीन प्रमाण ४९ जाति के बहुत से लोगों को आमन्त्रण पूर्वक पाटण में बसने के लिये लेगए, अनन्तर मारवाड़ के उनके कुलगुरू वहाँ जाकर उनकी शावलियों लिखने लगे। उन उपकेशादि जैनियों की संतान. आज भी वहाँ निवास करती है, और जिनके बनाए मन्दिर आदि अब भी मौजूद है। देखो ! उनकी वंशावलियों (खुर्शीनामा)-- २०-जैनाचार्य बप्पभट्टसूरि जैन संसार में बड़े ही प्रभावशाली एवं प्रख्यात हुए हैं श्राप श्री ने कन्नौज (गवालियर) के राजा नागावलोक वा नाग भट्ट प्रतिहार (आमराजा) को प्रतिबोध कर जैनी बनाया उस राजा के एक रानी व्यवहारिया (वणिक) की पुत्री थी इससे होने वाली सन्तान को इन आचार्य ने विशद एवं विशाल ओसवंश में मिला दिया उन्होंने राज कोठार का काम किया जिससे उनका गोत्र राज कोष्ठागार हुआ। इसी गोत्र में आगे चलकर विक्रम की सोलहवीं शताब्दी में स्वनाम धन्य एवं प्रसिद्ध पुरुष कर्माशाह हुए जिन्होंने श्री शत्रुजय तीर्थ का अन्तिम जीर्णोद्धार करवाया इसका शिलालेख वि. सं० १५८७ का खुदा हुआ शत्रुजय तीर्थ की विमल वसी में विद्यमान हैं इस लेख में निम्नलिखित दो श्लोक यहाँ उद्धृत कर दिये जाते हैं । एतश्च गोपाहगिरौ गरिष्टः श्री बप्पभट्टी प्रतिबोधितश्च । श्री श्रामराजोऽजनि तस्यपत्नी काचित् बभव व्यवहारिपुत्री ॥ तत्कुक्षि जाताः किल राज कोष्टागारा गोत्रेसु कृतेक पात्रे । श्री ओसवंसे विशदे विशाले तस्यान्वयेऽमोपुरुषाः प्रसिद्धाः॥ - आचार्य बप्पभट्टसूरि का समय वि० सं० ८०० के आस पास का है इसमें पता चलाता है कि ओसवाल जाति उस समय विशद एवं विशाल क्षेत्र में फैली हुई थी और इसका इतना प्रभाव था कि जिसको पैदा करने में कई शताब्दीयों के समय की आवश्यक्ता रहती है। यह प्रमाण श्रोसवंश की कितनी प्राचीनता बतला रहा है पाठक स्वयं विचार करें। . इन प्रमाणों के अलावा शिलालेख या दशवीं ग्यारहवीं सदी के बने प्रन्थों में भी प्रचुरता से प्रमाण मिलते हैं और वे खुब प्रसिद्ध भी है । अब हम आधुनिक आचार्यों आदि की मान्यता के कुछ प्रमाण उद्धृत करते हैं।

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