________________ "अपूर्व ऐतिहासिक ग्रन्थ रत्न" जैन जाति महोदय (प्रथम खण्ड) इस ग्रन्थ को तैय्यार करवाने में बड़ा ही परिश्रम एवं शोध खोज करने में द्रव्य और समय व्यय करना पड़ा है। चौवीस तीर्थकर बारह चक्रवर्ति आदि महापुरुषों का इतिहास, प्रोसवाल, पोरवाल, श्रीमालादि जातियों की उत्पत्ति और अभ्युदय / महाराजा श्रेरिक, कोणिक, उदायी, नौनन्द, मौर्य, मुगल सम्राट चन्द्रगुम; बिन्दुसार, आशोक और सम्राट् सम्प्रति का विस्तृत इतिहास / कलिंगपति सहामेघबहान, चक्रवर्ति, खारबेल और इनके पूर्ववर्ति कलिंगपतियों का गौरवपूर्ण इतिहास। श्री पार्श्वनाथ एवं महावीर के परम्परा प्राचार्यों का विस्तृत वर्णन / पूर्व पंजाब, मरुधर, सिन्ध, सौराष्ट्र, महाराष्ट्र आदि भारत के प्रत्येक प्रान्त व भारत के बाहर किस समय किस आचार्य द्वारा जैनधर्म का किस प्रकार प्रचार हुआ था / जैन जातियों के नररत्न देश, समाज एवं धर्म की किस प्रकार सेवा बजाके अपनी धवलकीर्ति को अमर बना गये इत्यादि अनेक विषयों पर प्रकाश डालने वाले खि और महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाऐं संग्रह कर आप श्रीमानों की सा में अर्पण किया है उम्मेद है कि आप इसको आद्योपान्त पढ़के अवश्य लाभ उठावेंगे। पृष्ठ संख्या 1000 से अधिक, सुन्दर चित्र 43, ये दाइप, सुन्दर छपाई, रेशमी जिल्द होनेपर भी मूल्य नाम मात्र / पौरख ल 3 श्री रत्नप्रभाकर ज्ञानपुष्पमाला न भंडारा मु० फलौदी ( माफ "नोट-किश्चियन धर्म का बाईबिल, आर्य समाजियों का सामार्थप्रकाश, प्रन्थों की कई आवृतियाँ एवं लाखों पुस्तकें वितीर्ण हो चुकी हैं जब कि जैनधर्म के तस्वज्ञान या ऐतिहासिक विषयक ग्रन्थों की शायद ही दूसरी आवृति प्रका. शित हुई हो। इसका क्या कारण है ? स्वयं विचार कर लीजिये ?