Book Title: Oswal Ki Utpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Ratnaprabhakar Gyanpushpmala

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Page 23
________________ शंकाओं का समाधान अब राजपूतों की अट्टारह जातियों और ओसवालों के अट्ठारह गोत्रों को आपस में समानता और समकालीनता को भी देख लीजिये । समय राजपूतों की ओसवालों के १८ समय अट्ठारह जातिए । गोत्र (१) परमार वि० की ९वीं शताब्दी तप्तभट (तातेहड़) ग्रंथ व पट्टावलियों (२) शिशोदा |, १४वी शताब्दी बप्पनाग (बाफणा) से विक्रम पूर्व ४०० (३) राठौड़ , छठी शताब्दी कर्णाट (कर्णावट) वर्ष और एतहासिक (४) सोलकी , , बलाह (रांका) साधनों से विक्रम (५) चौहान , दशवीं शताब्दी पोकरणा की ५ वीं शताब्दी (१) संखला परमारों की शाखा कुलहट का समय । (७) पड़िहार | छठी शताब्दी विरिहट . (८) बोड़ा अप्रसिद्ध श्री श्रीमाल (प्रसिद्ध) (९) दहिया - तेरहवीं शताब्दीश्रेष्टि वैद्य मुहता) (१०) भाटी । चौथी शताब्दी सूचतिं (संचेती) (११) मोयल चौहान की शाखा अदित्यनाग | १५वी शताब्दी (चोरड़ीयादि) (१२) गोयल ८वीं शताब्दीभूरि (भटेवड़ा) (१३) मकवाण परमारों की शाखा भद्र (समदड़िया) (१४) कच्छवाह | नौवीं शताब्दी चिंचट (देसरड़ा) (१५) गौर | बारहवीं शताब्द कुंभट (प्रसिद्ध) (१६) खरवद अप्रसिद्ध कनोजिया (१७) बेरड़ डिड (कौचरमेहता) (10) सौरव लधु श्रेष्टि (प्रसिद्ध) इस--"राजपूतो की १८ जाति और श्रोसवालों के १८ गोत्रों की ऊपर दी हुई तालिका से पाठक स्वयं विचार कर सकते हैं कि इनमें न तो समय की समानता है और न कोई शब्द की समानता है, फिर समझ में नहीं आता है कि ऐसी अर्थ शून्य निःसार दलीलें करके जनता में व्यर्थ भ्रम क्यों पैदा किया जाता है ? यह तो केवल अपनी "परैश्वर्य दर्शने असहिष्णु" बुद्धि का ही प्रदर्शन कराना है।

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