Book Title: Nyayavatara and Nayakarnika
Author(s): Siddhasena Divakar, Vinayvijay, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal
View full book text ________________
180
सम्मइसुत्तं, २ एवं सेसिदियदसणम्मि1 णियमेण होइ ण य जुत्तं । अह तत्थ णाणमेत्तं घेप्पइ चक्खुम्मि वि तहेव ॥२४॥ णाणं अप्पुढे अविसए य अत्थम्मि दंसणं होइ। मोत्तूण लिंगओ जं अणागयाईयविसएसु ॥ २५ ॥ मणपज्जवणाणं दंसणं ति तेणेह ? होइ ण य जुत्तं । भण्णइ णाणं णोइंदियम्मि ण घडादओ जम्हा ॥ २६॥ मइसुयणाणणिमित्तो छउमत्थे होइ अत्थउवलंभो। एगयरम्मि वि तेसिं ण सणं दसणं कत्तो ॥ २७ ॥ जं पच्चक्खग्गहणं ण इंति सुयणाणसम्मिया + अत्था । तम्हा सणसद्दो ण होइ सयले 5 वि सुयणाणे 6 ॥२८॥ जं अप्पुट्ठा भावा ओहिण्णाणस्स होंति पच्चक्खा । तम्हा ओहिण्णाणे सणसद्दो वि उवउत्तो ॥२९॥ जं अप्पुढे भावे जाणइ पासइ य केवली णियमा। तम्हा तं गाणं दंसणं च अविसेसओ सिद्धं ॥ ३०॥ साई अपज्जवसियं ति7 दो वि ते ससमयओ हवइ एवं । परतित्थियवत्तव्वं च एगसमयंतरुप्पाओ ॥३१॥ एवं जिणपण्णत्ते सद्दहमाणस्स भावओ भावे । पुरिसस्साभिणिबोहे दंसणसद्दो हवइ जुत्तो ॥ ३२॥ सम्मण्णाणे णियमेण दंसणं दंसणे उ भयणिज्ज। सम्मण्णाणं च इमं ति अत्थओ होइ उववणं ॥३३॥ केवलणाणं साई अपज्जवसियं ति दाइयं सुत्ते 10 । तेत्तियमित्तोत्तूणा 11 केइ विसेसं ण इच्छंति ॥ ३४ ॥ जे संघयणाईया भवत्थकेवलिविसेसपज्जाया।
ते सिज्झमाणसमये 12 ण होंति विगयं 13 तओ होइ ॥ ३५॥ 1) B दंसणेसु. 2) B तेणेव. 3) B नोइंदिअंतिन. 4) B भणंति सुअनाणसंसिआ for ण इंति etc. 5) B सयलो. 6) B interchanges gathas Nos. 28 and 29. 7) B वि for ति. 8) A तित्थय. 9) B भइअव्वं. 10) B समये for सुत्ते. 11) B नत्तिअमेत्तो वूणो. 12) B समयंमि. 13) B विगइं.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376