Book Title: Nemidutam
Author(s): Vikram Kavi
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 11
________________ नेमिदूतम् इसी प्रकार विक्रम कवि ने, जिनके समय, निवास स्थान और सम्प्रदाय आदि के बारे में कोई निश्चित प्रमाण उपलब्ध नहीं हो सका है, स्वामी नेमिनाथ के जीवन पर 'नेमिद्रत' काव्य लिखा। 'नेमिदूत' में भी प्रायः प्रत्येक श्लोक का अन्तिम पाद मेघदूत से लिया गया है। जिसे कवि ने स्वयं इस प्रकार स्पष्ट किया हैसद्भूतार्थप्रवरकविना कालिदासेन काव्या दन्त्यं पादं सुपदरचितान्मेघदूताद् गृहीत्वा । श्रीमन्नेमेश्चरितविशदं साङ्गणस्याङ्गजन्मा, ... __ चक्रे काव्यं बुधजनमनः प्रीतये विक्रमाख्यः॥ मध्यकालीन जैन कवियों में बृहत्तपागच्छीय चरित्रसुन्दरगणि (१४८४) द्वारा लिखित धार्मिक एवं नैतिक विषयों से सम्बद्ध 'शीलदूत' और किसी अज्ञात कवि का 'चेतोदूत' इस परम्परा में उद्धरणीय ग्रन्थ हैं । खरतरगच्छीय कवि विमलकीति ( १७वीं श० ) का 'चन्द्रदूत' इस परम्परा में उल्लेख- . नीय काव्य है। एक विज्ञप्ति के रूप में उपाध्याय मेघविजय का 'मेघदूत. समस्या' लेख (१२२७ वि० में रचित) कुछ कम महत्त्व का काव्य है। समस्यापूर्ति वाले इन दूतकाव्यों को छोड़कर जैन कवियों की इस विषय में स्वतन्त्र रचनाएँ भी हैं, जिनमें जैनमेघदूत का स्थान निःसन्देह अत्यन्त ऊँचा है । जैनमेघदूत चार सर्गों में विभक्त है, जिनमें श्लोकों की कुल संख्या १९६ है। इसका विषय-वस्तु नेमिदूत में वर्णित नेमिकुमार की प्रव्रज्या लेने पर राजीमती का उनके पास मेघ को दूत बनाकर अपनी विरह-दशा का सन्देश भेजना है। मेघदूत की शैली पर निबद्ध यह काव्य विरह की अभि. ध्यक्ति में तथा भावों के प्रकटीकरण में मेघदूत का ऋणी है । नेमिकुमार की प्रव्रज्या के समाचार से नितान्त क्षुब्धहृदया राजीमती मेघ को देखकर इन शब्दों में अपनी मनोव्यथा प्रकट कर रही है - "एकं तावविरहिहृदयद्रोहकृन्मेघकालो, द्वैतीयीकं प्रकृतिगहनो यौवनारम्भ एषः । तार्तीयोकं हृदयदयितः सैष भोगाद्व्यराङ्क्षीतुर्य न्याय्यान चलति पथो मानसं भावि हा किम् ॥" जैनमेघदूत, १/४ मेरुतुंग के लगभग दो शताब्दी बाद वादिचन्द्र ने 'पवनदूत' नामक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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