Book Title: Nayadhamma Kahao
Author(s): N V Vaidya
Publisher: N V Vaidya
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-IX.93]
नायाधम्मकहाओ..
सरसवहियरस घेत्तृण अंगमंगाई सरुहिराई उक्त्ति बलिं चउादासें करई
सा पंजली पट्ठा ।
(91) एवामेव समणाउलो ! जो अम्हं निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अंतिए पव्त्रइए समाणे पुणरवि माणुस्सर कामभोगे आसायइ पत्थयइ पीछेइ अभिलसइ से णं इहभवे चेत्र बहूणं समणागं बहूणं समणीणं बहूणं सावयाणं बहूगं सावियाणं जात्र संसारं अगुपरियट्टिस्लइ जहा व से जिणरखिए। छलिओ अवयक्खंतो निरावयक्खो गओ अविग्घेणं । तन्हा पत्रयणसारे निरावयक्खेण भवियव्वं ||१|| भोगे अवयक्ता पडति संसारसागरे घोरे । भोगेहिं य निरवयक्खा तरंति संसारकंतारं ॥ २ ॥ (92) तए णं सा रयणदीवदेवया जेणेव जिणपालिए तेणेव उवागच्छ बहूहिं अणुलोमेहि य पांडलो मेहि य खरं मर्जयसिंगारेहि य कलुणे हि य उवसग्गेहि य जःहे नो संचाएइ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणाभित्तर वा ताहे संता तंता परितंता निव्त्रिण्णा समाणी जामेत्र दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया । तए णं से सेलए जक्खे जिणपालिएण सद्धिं लवणसमुदं मज्झमज्झेणं वीईवयइ २ जेणेव चंपा नयरी तेणेव उवागच्छइ २ चंपाए नयरीए अग्गुज्जाणंांस जिणपालियं पट्टाओ ओयारेइ २ एवं वयासी - एस णं देवाणुप्पिया ! चंपा नयरी दीसह त्तिक जिणपालियं आपुच्छइ २ जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए ।
( 93 ) तए णं जिणपालिए चंपं अणुपविसइ २ जेणेव सए गिहे जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ २ अम्मा पिऊणं रोयमाणे जाव विलवमाणे जिणरक्खियवावात्तं निवेदेइ । तए णं जिणपालिए अम्मापियरो मित्तनाइ जाव परियणेणं सद्धिं रोयमाणाई बहूँई लोइयाई मयकिच्चाई करेति २ कालेणं विगयसाया जाया । तए णं जिणपालियं अन्नया कयाई सुहासणवरगयं अम्मापियरो एवं वयासी - कहण्णं पुत्ता ! जिणरक्खिए कालगए ? तए णं से जिणपालिए अम्मापिऊणं लवणसमुद्दोत्तारणं च कालियवायसमुच्छेणं च पोयवहणविवत्तिं च फलहखंडआसायणं च रयणदीवृत्तारं च रयणदविदेवयागेण्डिं च भोगविभूइं च रयणदीवदेवया
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