Book Title: Navtattva Chopai
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 5
________________ डिसेम्बर २०११ ४७ "ऊपरा ऊपरि पोयण पान कुंलां बत्रीसइं तसंमान समकालिं कोइक बलवंत सूई साथिं वींधई करि तंत ॥७॥ एकथी१० बीजइ सूई जाय विचिं असंख्य समय तिहां थाय । जीर्ण वस्त्र वलि फाडई कोई त्रागिं त्राग समय विधि सोय ॥८॥ समय असंख्याते एक आवली बि सइं छप्पन्न तेहज सांकली क्षुल्लक भव एक एह प्रकासि साढा सतर भव स्वासोस्वासि ॥९॥ महूरतनी आवली एक कोडि लाख सतसठि सहस सत्योत्यरि जोडि दो सइं सोल उपरि ते वली मुहुरत बि घडी ए आवली ॥१०॥ बीजु बि घडी मान जगीस पांसठि सहस १२साधिक छत्रीस सूक्ष्मनिगोदि जीव भव जाय बीजी पर महुरत इम थाय ॥११॥ महूरतमान त्रीजुं हवइं सूणो सहस त्रिणिनई सातसई १३गणो सासोस्वास त्रिहुतरि बलि कह्या महुरतभेद गुरुवचनें लह्यां ॥१२॥ एहवा त्रीस महूरत १४जाय रातिदिवस एक एतलें थाय १५तिणिं पनरे पखि दो पख मास वरसतणा पणि बारइं मास ॥१३।। असंख्य वरस एक पल्यना जोडि सागर पल्य दस कोडाकोडि इम उच्छर्पिणी नई अवसर्पिणी दस दस कोडाकोडि सागर तणी ॥१४॥ कालचक्र एतलई नीप, कालमान ए अढीद्वीपर्नु ए पुदगलपरावर्त्ति जाय चउभेदे पुदलग(गल) कहिवराय ॥१५॥ परमाणं खंधादिक च्यारि अनंत परमाणू खंध विचारि तेहथी थोडो कहीइं देश देशथी ऊणो तेह प्रदेश ॥१६॥ परमाणूनो भाग न होय केवलज्ञानी जाणे सोय विविध वर्ण गंध रस फास पुदगल भेद अनंत निवास ॥१७॥ धर्माधर्म पुदगल आकाश काल सहित पंच अजीव प्रकाश जेह चलावें तेहज धर्म थिर राखइ ते कह्यो अधर्म ॥१८॥ अवर पदारथ द्यइं अवकाश ईणइं लख्यण बोल्यो आकाश लोक धर्माधर्म अढीद्वीप काल पुदगल सघलई गगन विशाल ॥१९॥१६

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