Book Title: Navtattva Chopai Author(s): Diptipragnashreeji Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 3
________________ डिसेम्बर २०११ गाथा सन्दर्भित क. प्रतिना पाठभेद तेनी पाछळ ज नोंध्या छ । जैन पारिभाषिक शब्दोना अर्थ अहीं नोंध्या नथी. अघरा शब्दोना ज नोंध्या छे । नवतत्त्व चोपाइ १॥६॥ सयल जिणेसर प्रणमी पाय सारदवांणी करो पसाय नवयतत्त्व जिनसासण सार सुणयो कहुं संखेपि विचार ॥१॥ तत्त्व तत्त्व मुखि सहु को कहइं तत्वारथ विरलो को लहइं जाण्या विण नवतत्व विचार किम पालई जिनधर्माचार ॥२॥ जिवादिक नवतत्व विचार सद्दहतां समकित निरधार आगम अरथ अछइं अति घणो बादर बोल कहउं ते सुणो ॥३॥ जीव अजीव पुण्य पाप स्वरुप आश्रव संवर निर्जररूप बंध मोक्ष ए नवनां भेद विवरी कहुं सुणो ते वेद ॥४॥ जीवतत्त्व पहलुं जिन कहें जीवतणा दस प्राण सद्दहई पंचेंद्रीबल मनवयकाय सासोस्वास अनइं परमाय ॥५॥ एकेंद्री च्यारप्राण विख्यात छ बेंद्री तेंद्री सात आठ चउरिंद्री नव असन्नीया पंचेद्री दस प्रांण सन्नीया ॥६॥ जीव होइं ते प्रांणज धरइं प्राणवियोगि ते पणि मरइ । जीव तणउं लक्खण चेतना चउदभेद कहीइं जीवना ॥७॥ प्रथवी-पाणी-अगनि-वन-वाय ए पांचई एकेंद्रीकाय । मुख नासिका नयन कान नहीं एकेंद्रीने काया कही ॥८॥ एहना भेद संखेपी कह्या सूक्ष्म मनइं बादर बें थया सूक्षम ते जे दीसइं नहीं बादर ते जे दीसई सही ॥९॥ बेंद्री काया मुख अधिकता तेंद्री काय मुख नाशी छता चउरिंद्री काया मुख घ्राण नयणतणुं चउथउं अहिनाण ॥१०॥ विगलेंद्रीना भेद त्रिण थया अधिक कांन पंचेंद्री कह्या असन्नि सन्नि एहना भेद दोय समूर्छिम गर्भज होइं सोय ॥११॥Page Navigation
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