Book Title: Navtattva Chopai
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ ६२ अनुसन्धान-५७ ४५. ज तत्व खरउं - क । ४६. विसिं - ख । ४७. लहे - ख । ४८. अक्ष्योभ - क । अखोभ ख । ४९. कही - ख । ५०. दडवडयउय - क । ५१. गाथा २४ना पहेला चरण पछी प्रायः २५ गाथा बन्ने प्रतिमा भिन्न छ जे भिन्न गाथा - नीचे प्रमाणे छे. जे पाठ ख प्रतिमांथी नोंधेल छे क प्रतिना पाठभेद साथेनी टिप्पणमां जुओ । आठमी संवर भावना विरति इंद्री दमतां पांचमी गति । ५१ःनिर्जरा नवमी मनि धरे कर्म अनंता खेरु करे ॥२४।। धर्मभावना दशमी कही जेथी वंछित पांमइ सही । लोकभावना चिंति पंडि जेहवो चउदराज ब्रह्मांडि ॥२५।। दुर्लभबोधिबीज बारमी शिवपुरगामीनिं मनि रमी । ए संवर बारे भावना चारित्र पांच सुंणो एक मना ॥२६।। तजे सर्व सावध व्यापार पहिलं समाईक आचार । छेदोपस्थान बीजुं ऊचरे जांणी छकाय महाव्रत धरे ॥२७॥ परिहारविसुद्ध त्रीजुं चारित्र मास अढार- तेह पवित्र । नव जण गछथी रहई आरामि तप संयम करी आवई ठामि ॥२८।। सुखम संपराय चोथु शुद्ध दशमें गुणठाणे लहि बुद्धि । क्रोध मांन माया मूलथी नहीं अंस मात्र लोभ रहे सही ॥२९।। यथाख्यातचारित्र पंचमुं मुलथी च्यार कषाय नीगर्नु । अति चोखो मननो परय्याय उपले चिहु गुंणठांणे थाय ॥३०॥ संप्रति धुरि बें चारित्र रह्यु आगला त्रिण विछदि गया । एतले संवर सतावन सार सद्दहतां लहीइं भवपार ॥३१।। प्रतिबोधी अकबर सुलतांण मुंकाव्युं श्री शेजय दांण । भानुचंद गुरु सीस सुजाण देवचंद कहे तत्त्व वखांण ॥३२॥ Eइति श्री संवरतत्त्व संपूरण ॥६॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24