Book Title: Navtattva Chopai
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 4
________________ ४६ अनुसन्धान-५७ भेद सात ए जीवह जाणि पज्जत्तापज्जत्त वखाणि । जे पर्यापति पूरी करइं ते पज्जत्तपणुं अनुसरई ॥१२॥ ए पर्यापति अधूरी जेह अपर्यापता कहीइं तेह । षट् पर्यापति खंधि कही आहार सरीरमें इंद्री सही ॥१३॥ सास वचन छटुं मन पछई एकेंद्रीनई च्यारज अछई । विगल असन्नी पांच प्रधान गर्भज पंचिंद्री षट मान ॥१४॥ इणिपरि दोय भेद सातना करतां चौद भेद जीवना कडं लवलेशह तेहy हीर जीवतत्त्व छई गुहिर गंभीर ॥१५॥ वस्तु सूक्षम बादर सूक्षम बादर एकेंद्री दो भेद बिति चउरिंद्री त्रिणि पुण पंचेंद्रीना दोय लेवा सन्नि असन्नी मिलि सग ते पज्जत्तापज्जत्त करेवा चऊद भेद ए जीवना सद्दहतां आनंद वाचक श्रीभानुचंदगुरु सीस कहें देवचंद ॥१६॥ बीजुं अजीवतत्त्व हवइं सुणो चउद भेद तेहना पणि गणो अजीव ते जिहां नो हइं जीव तेहनो अरथ अछइं अतीव ॥१॥ धर्मअधर्म आकाशास्तिकाय त्रिणइं त्रिहुं भेदे नव थाय खंध देश प्रदेसई करी दशमो काल भेद मनि धरी ॥२॥ च्यार भेद पुदगल बंधाणु खंध-देश-प्रदेश-परमाणु इणी परि चउद भेद मनि धरी अवर एहनुं निसुणो चरी ॥३॥ अस्ति कहतां 'जीवप्रदेश कहीइं काय समूह विसेस । धर्मास्तिकाय पूरयो चउद राज तेतलो कह्यो खंध जिनराज ॥४॥ खंध थिको उणो ते देश देशथी ऊणो तेह प्रदेश अधर्म अनइं आकाशास्तिकाय त्रिणि भेद एहना इम थाय ॥५॥ दशमो काल तणो जे भेद खंधादिक तस नो हई च्छेद । कालमांन समयादिक बहु ते कहितां सुणयो हवंई सहु ॥६॥

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