Book Title: Natyadarpan par Abhinav Bharati ka Prabhav Author(s): Kaji Anjum Saifi Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf View full book textPage 6
________________ नाट्यदर्पण पर अभिनवभारती का प्रभाव नाट्यदर्पण अभिनवभारती २६. 'आङ्मर्यादायाम्' तेन मुखसन्धि सम्प्राप्य मुखसन्धेनिवर्तते यतः आङ्मर्यादायाम् । ना० शा० निवर्तते । पृ० १३६ भाग - ३ पृ० ९३ २७. प्रसादप्रयोजना प्रासादिकी । पृ० १७३ प्रसादयोजनः । प्रासादिकीं विधात् । पुर्वोक्त भाग - ४ पृ० ३६ दूषयतीति विदूषकः दूषयन्ति विस्मारयन्ति । पूर्वोक्त भाग - ३ पृ० २५१-२५२ २८. विशेषेण दूषयन्ति विनाशयन्ति विस्मारयन्तीति विदूषकाः । पृ० १७८ रामचन्द्र - गुणचन्द्र ने 'नाट्यदर्पण' में 'वेणीसंहार' की आलोचना करते हुए भानुमती के साथ दुर्योधन के रत्यभिलाष रूप विलास को तत्कालीन परिवेश में असङ्गत होने के कारण अनुचित कहा है । इसी रूप में 'वेणीसंहार' की यह आलोचना आचार्य अभिनवगुप्त द्वारा भी की गयी है । रामचन्द्र - गुणचन्द्र के अनुसार 'पुष्पदूषितक' में अशोकदत्त के कथन से नन्दयन्ती के चरित्र के सम्बन्ध में प्रदर्शित व्यलीक सम्भावना निर्वहण सन्धि पर्यन्त उपयोगी होने के कारण दोषपूर्ण नहीं है । निर्वासन के पश्चात् उस जैसी उत्तम प्रकृति की नायिका का अधम प्रकृति वाले शबर सेनापति के घर में निवास अवश्य ही दोषपूर्ण एवं अनुचित है । इन्हीं तथ्यों के आधार पर 'अभिनवभारती' में भी 'पुष्पदूषितक' की आलोचना एवं समर्थन किया गया है । ४ नाट्यदर्पण की विवृत्ति पर भी अभिनवभारती का अत्यधिक प्रभाव है । रामचन्द्र- गुणचन्द्र ने स्वरचित विवृत्ति में विपुल मात्रा में अभिनव भारतीय के अंशों का समाहार किया है । कहीं उसके भावों, कहीं शब्दों, कहीं वाक्यों और कहीं-कहीं तो सम्पूर्ण अनुच्छेद को ही यथावत् अथवा यत्किञ्चित् परिवर्तन सहित नाट्यदर्पण में ग्रहण कर लिया गया है । नाट्यदर्पण के अभिनवभारती से प्रभावित अंशों को हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं नाट्यदर्पण ९. यद्यपि समवकारे शृङ्गारत्वमस्ति, तथापि न तत्र कैशिकी । न खलु काममात्रं शृङ्गारः, किन्तु विलासोत्कर्ष:, न चासौ अभिनवभारती नन्वेवं शृङ्गारयोगे काव्ये कैशिकीहीनता । ''न कामसद्भावमात्रादेव कैशिकी सम्भवः, रौद्र प्रकृतीनां तद्भावात् । विलासप्रधानं यद्रूपं सा कैशिकी | ना० शा ० भाग - २, पृ० ४४०-४४१. प्रकृतीनां तृणाम् । पृ० २४ २. इह ख्यातत्वं त्रिधा नाम्ना चेष्टितेन देशेन इह त्रिविधया प्रसिद्धया प्रसिद्धत्वं भवति, अमुक एवंकारी अमुदेश इति । पूर्वोक्त पृ० ४११ नायिका तु दिव्याप्यविरोधिनी यथोवंशीनायकचरितेनैव तद्वृत्तस्याक्षेपात् । पूर्वोक्त पृ० ४१२ १२३ च । पृ० २४ ३. नायिका तु दिव्याऽपि भवति यथोर्वशी, प्रधाने मर्त्यचरिते तच्चरितान्तर्भावात् । पृ० २५ १. ना० द० पू० ६२ । २. अभि० भा० ( ना० शा ० भाग - ३) पृ० ४२ । ३. विवृत्ति ना० द० पृ० १०३ । ४. अभि० भा० ( ना० शा ० भाग - २) पृ० ४३२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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