Book Title: Nana Deshdeshi Bhashamay Vijaychintamani Parshwanath Jinstotra Author(s): Bhuvanchandravijay Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 4
________________ अनुसन्धान - ५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २ साधर्मिक छे वगेरे ध्यानमां आवतां गुजराती वगेरे महिलाओ कच्छी नारीने प्रेमथी भेटे छे अने ‘पहेलां तमे पूजा करो' एम कहे छे त्यारे कच्छी श्राविका कहे छे : 'तमे महेमान छो, माटे तमे पहेलां करो.' आम आनन्द-उल्लास भर्या वातावरणमां यात्रा पूरी थाय छे. महिलाओ वच्चेना संवादमां जुदा जुदा नगर अने देशनी महिलाओ पोतपोतानी भाषामां कच्छनी टीका अथवा पोताना प्रदेशना तीर्थोनी प्रशंसा ऊलटभेर करे छे. ८२ कवि परमानन्द साधु होवाथी विविध देशना प्रवासी छे अने विविध भाषाओनी निकटथी जाणकारी धरावे छे तेथी घणी भाषाओनो प्रयोग अधिकारपूर्वक करी शक्या छे. कच्छीभाषानो तेमणे जे चोकसाई अने कुशलतापूर्वक उपयोग कर्यो छे ते दर्शावे छे के कच्छमां पण तेओ श्री सारी पेठे विहर्या हशे. चारसो वर्ष पूर्वेना कच्छनुं रंगदर्शी वर्णन लिखित रूपे आपती रचना कदाच आ एक ज हशे. कृतिनी हस्तप्रतो : अमने प्राप्त थयेल ६ प्रतो पण एकथी वधु कुलनी जणाय छे. लाद. संज्ञक प्रतने आधारभूत गणी आ वाचना तैयार करी छे. अन्य प्रतोमांथी महत्त्वना पाठभेदो नोंध्या छे. उत्तरकालीन प्रतोमां उच्चारभेदना कारणे सर्जाता पाठान्तरो (युगति = जुगति जेवा) नोंध्या नथी. पाछला काळनी प्रतोमां कच्छी भाषाना अंशोमां भूलभरेला पाठ छे तेने पाठान्तरमां लीधा नथी. मराठी अंशो यथामति सम्पादित कर्या छे. मराठीनी वधु तपास तो ए भाषाना विद्वान ज करी शके. क. ६मां ‘नखावता' छे, तेने स्थाने 'नचावता' वधु संगत बने, परंतु बधी ज प्रतोमां ‘नखावता' पाठ छे तेथी ए सुधार्यो नथी. आ शब्द तपास मागे छे. १ ‘मारुणी-' मारवाडी स्त्रीना मुखे मारवाडी भाषामां वर्णन छे तेमां एक विचित्रता छे. ज्यां ज्यां रकार होवो जोईए त्यां त्यां कवि ग कार वापरे छे. जेमके, राणपुर = गाणपुग; रलियामणुं गलियामणुं, वगेरे. ए प्रदेशमां ते समये आवो उच्चार प्रचलित होवो जोईए. क. ५६मां ‘आबूगोडा' छे त्यां बे प्रतमां आबू गढगी (-गढरी) छे. = १. नखाववुं ए 'पलाणवुं' अर्थमां प्रयोजातुं क्रियापद होई शके.Page Navigation
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