Book Title: Nana Deshdeshi Bhashamay Vijaychintamani Parshwanath Jinstotra
Author(s): Bhuvanchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 12
________________ ९० अनुसन्धान - ५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २ कासुं वखाणु देहगां ए, थे (थें) आपइगां२७ आप, गाणपुग गलिआमणुं, नगमालडीए, निगखतु जाइ भव पाप, मनोगहीए, तु न करो इसड़ा जबाप. चुउमुख चाहइ चतुगलोक, च्यागे दगवाजा, गंगमंडप गलियामणो, देवलोक दवाजा, नाटयागंभ कगइ अनेक, जाणे सुगगंभा, थंभे थंभे पूतली, वाजइ वगभंभा, सात भोइं सोहामणी ए, शिखग अतिहिं उत्तुंग, सगोगलोक सा थई सही, नगमालडीए, वाद कगइ मनगंग, मनोगहीए. नलिनी गुलम समाण, गाणपुग देहगुं कहिइ, असटापद संमेतशिखग, नंदीसग लहीइ, सगी सेत्तुंज अवताग वली तीगथ सइ जठइ, मन मोह्युं सइ माहगुं, माउए तठइ, तगणि भुवण जोइ आइआए, कठी न इसड़ा देव, आबू गोड़ा सुंदगी, नगमालडीए, बोली बुद्धिवंत हेव, मनोगहीए. ५४ ५५ ५६ [ढाल-५] आबूगिगि गलियामणु, सखी सोहइ नई, मोहइ नई मोहइ नई, विमलवसही मोगुं मन गमइए; विमलमंतीस कगाविआं, गूपामय सीधा नई सीधा नई कीधां सइ आगास मइ ए. जाणइ सगोगथी ऊतगी, असड़ी पूतली सोहइ नई सोहइ नई चपलनयणी चित्त चोगणी ए; केवली विण कुण वगणवइ, तिणइ जिणहरि, झलकती झलकती, असड़ी अनोपम कोगणी ए. वसतिग वसही वखाणिइं, जगि जाणीइ, ५७ ५८

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