Book Title: Nana Deshdeshi Bhashamay Vijaychintamani Parshwanath Jinstotra
Author(s): Bhuvanchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फेब्रुअरी २०११ नानादेशदेशी भाषामय श्री विजयचिन्तामणि पार्श्वनाथजिन स्तोत्र ७९ सं. उपा. भुवनचन्द्र भुज (कच्छ)ना एक जिनालयने अनुलक्षीने रचवामां आवेली आ कृति काव्यरस, भाषा, इतिहास अने विशेषतः कच्छदेशनी चारसो वर्ष पूर्वेनी स्थितिना चित्रणनी दृष्टिए विशिष्ट छे. तपागच्छना प्रसिद्ध आचार्य श्री विजयहीरसूरिना प्रशिष्य उपाध्याय श्री विवेकहर्षगणीए कच्छमां विचरण करेलुं. कच्छना महाराओ (महाराजा) श्री भारमल्ल तेमना परिचयथी बहु प्रभावित था हता अने एमनी प्रेरणाथी भुजमां राजविहार नामे देरासर तेमणे बंधाव्युं हतुं. राओ भारमल्लजीना भाई पचाणजी खाखर गामना धणी हता, तेओ पण विवेकहर्षगणीना समागमथी प्रभावित थया. खाखरना जैनोए शत्रुंजयावतार श्री आदिनाथ प्रभुनुं देरासर बंधाव्युं अने तेमां श्री विवेकहर्ष गणीने हस्ते प्रतिष्ठा करावी. आ बधी विगतो भुजना अने खाखरना देरासरोमां लागेला विस्तृत शिलालेखोमां अंकित छे. आ बे स्थळोने सांकळती प्रस्तुत रचना आ घटनाओनी साक्षी पूरनारी स्वतन्त्र दस्तावेजी सामग्री लेखे पण महत्त्व धरावे छे. भुजमां आदीश्वरजीनुं जिनालय आजे पण विद्यमान छे. तेना शिलालेखमां प्रतिष्ठावर्ष वि.सं. १६२८ आपेल छे. मोटी खाखरना शिलालेखमां भुजना 'रायविहार'नो उल्लेख छे अने ते आदीश्वरप्रभुनुं जिनालय हतुं तेवो उल्लेख छे, परंतु प्रस्तुत रचनामां तो राओ भारमल्ले विजयचिन्तामणि पार्श्वनाथनुं जिनालय बंधाव्युं हतुं एवो स्पष्ट निर्देश छे. राओ भारमल्ले बे देरासर नथी ज बंधाव्यां तेथी एक गूंच सर्जाय छे खरी. भुजना शिलालेखमां चौमुख प्रतिमानो उल्लेख नथी, परन्तु त्रण बिम्बनो उल्लेख छे मां एक बिम्ब चिन्तामणि पार्श्वनाथनुं हतुं. प्रस्तुत स्तवनमां - चौमुखनो उल्लेख कई रीते थयो ए एक कोयडो छे. चौमुखनो उल्लेख सरतचूकथी थयो होय अने चिन्तामणि पार्श्वनाथने मुख्य मूळनायक मानी लेवामां आव्या होय एवी एक शक्यता छे. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८० अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ रचनाकार अने रचनाकाल : __ कृतिना रचयिता मुनि छे. पण्डित परमानन्द नामक आ कविनी आ एक ज कृति जै.गू.क.मां नोंधाई छे. त्यां आनी हस्तप्रत पण एक ज नोंधाई छे, परंतु अमने आनी छ हस्तप्रतो मळी छे. आथी एम लागे छे के आ रचना सारो प्रसार पामी हती. श्री विवेकहर्षगणीना गुरुनु नाम हर्षाणन्द पण्डित हतुं. विवेकहर्षे 'श्रीहीरविजयसूरिनिर्वाणरास' रच्यो छे अने ते 'जै.ऐ.गू. काव्य संचय' (सं. जिनविजय, १९२६)मां प्रकाशित छे. कृतिमां रचनावर्षनो निर्देश नथी. एक ह.प्र.मां ले.सं. १६९८ आपेलो छे, तेथी आनो रचनाकाल १६२८ थी १६९८ वच्चेनो छे. जै.गू.क.मां आ रचना 'नानादेशदेशीभाषामय स्तवन' एवा नामे नोंधाई छे. विजयसेनसूरिनो स्वर्गवास १६७१मां थयो हतो, तेथी तेनी पहेलां आनी रचना होवानुं त्यां जणाव्युं छे. परन्तु, आ कृति विजयसेनसूरि सम्बन्धित नथी पण विवेकहर्षगणी साथे सम्बन्धित छे, तेमज खाखर गामने आमां महत्त्व अपायुं छे ते जोतां १६५९ अने १६९८ वच्चे आनी रचना थई होय एम मानी शकाय. कृतिना पाठ विषे: ___ अमने प्राप्त थयेल ६ हस्तप्रतोमांथी बे प्रतमां कृतिनुं नाम 'विजयचिन्तामणि पार्श्वजिनस्तोत्र' छे. एक प्रत 'पार्श्वचिन्तामणि स्तवन' एवं नाम आपे छे. एकमां 'नानादेशदेशीभाषामय श्री विजयचिन्तामणिपार्श्वजिनस्तोत्र' एवं नाम मळे छे. एक ह.प्र. 'नानादेशीयभाषास्तवन' नाम धरावे छे, ज्यारे एक प्रत अपूर्ण छे तेथी तेमां नाम मळ्युं नथी. कडीओनी संख्या विशे पण एकमति नथी. बे प्रतमां कडीओनी संख्या ७८ छे, बे प्रतमा ५६ छे, एकमां ६२ छे, एक अपूर्ण छे. अमे अहीं कडीओने नवेसरथी क्रमाङ्क आप्या छे. क. २९ थी ३३ - ए पांच कडीओ तथा ४४-४५- ए बे कडीओ - कुल सात कडीओ मात्र एक ज प्रत (लाद)मां ज छे. बाकीनो भाग बधी प्रतोमा समान छे, पण क्रमाङ्कमां गरबड छे. स्व. लिपिनिष्णात श्रीलक्ष्मणभाई भोजक पासेथी अमने जे फोटोकोपी मळी हती तेमां तेमणे कडीओ निश्चित करीने नोंधी हती. अहीं अमे ए प्रमाणे क्रमाङ्क राख्या छे. पांच कडीओमां गुजरातनी महिलाओना मुखे कच्छ अने कच्छना Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फेब्रुअरी २०११ लोको विषे निन्दात्मक वर्णन कराव्युं छे. लागे छे के कृतिनी प्रतिलिपि करनारा सुज्ञजनोए पछीथी ए निन्दात्मक कडीओ २५ करीने प्रतिलिपि करी हशे. बीजी बे कडीओमां कच्छी नारीनो जवाब छे ते पण आकरी भाषामा छे, तेथी ए बे कडीओ पण बाद करवामां आवी हशे आ सात कडीओ कच्छीभाषानी अने कच्छनी दस्तावेजी सामग्री होवाथी अमे ए कडीओ रहेवा दीधी छे. ८१ अत्रे ए नोंधनीय छे के पांच कडीओमां (अने एवी बीजी कडीओमां) करेलां विधानो असत्य नथी. कच्छमां ए जातनी प्रवृत्ति थती हती खरी पण जैनोमां पण ए ज रूपे ए बधुं होय एम न कही शकाय. घोडियामां होय एवा पुत्र-पुत्रीना सगपण, दीकरीनी सामे दीकरीनुं साटुं - आवी केटलीक रीतो तो जैनोमां पण सोएक वर्ष पहेलां सुधी प्रचलित हती. पुत्री अने पाडो जीवे नहि. अर्थात् पुत्रीने ‘दूधपीती' करवानी वात जैन समाजने नहीं पण क्षत्रियवर्गने लागू पडे. गुजराती नारीओ अजाणपणे कच्छी जैनो माटे पण एवा आक्षेप करे छे एवा प्रसंग कविए ऊभो कर्यो छे. आ संवादमां कच्छनी भूमिनुं अने कच्छीओना खान-पान, रीत-रिवाज, भाषा वगेरेनुं विगतप्रचुर वर्णन समावायुं छे – जाणे ‘आंखे देख्यो अहेवाल' आमां आपणने मळे छे. अहीं कच्छ अंगेनी ए विगतोनी चर्चा अमे करी नथी, परन्तु कच्छ विषे संशोधन करनार अभ्यासीने दस्तावेजी सामग्री लेखे आ कृति अत्यन्त उपयोगी बने ए निःशङ्क छे. कथावस्तु : भुजना राजविहार जिनालयनी यात्रा माटे विविध देशना संघो भुज आव्या छे, जेमां खाखरनो संघ पण सामेल छे. भुजनी सांकडी शेरीओमां भीड थाय छे अने कच्छनी महिलाओना धसाराथी गुजराती नारीने धक्को लागे छे त्यारे ते कच्छ अने कच्छनी नारीओने माटे घसाती टिप्पणी करे छे अने आ रकझकमां खम्भात, अमदावाद, महाराष्ट्र, मारवाड वगेरे स्थळोनी स्त्रीओ पण सामेल थाय छे. मोटी खाखर गामनी महिला जुस्साभेर जवाब वाळे छे : अमे पण विवेकहर्ष गणी द्वारा धर्मबोध पाम्या छीए, अमे पण जैन आचार पाळीए छीए, अमारा कच्छमां भद्रेश्वर जेवां महान तीर्थ छे वगेरे. कच्छीओ पण Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान - ५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २ साधर्मिक छे वगेरे ध्यानमां आवतां गुजराती वगेरे महिलाओ कच्छी नारीने प्रेमथी भेटे छे अने ‘पहेलां तमे पूजा करो' एम कहे छे त्यारे कच्छी श्राविका कहे छे : 'तमे महेमान छो, माटे तमे पहेलां करो.' आम आनन्द-उल्लास भर्या वातावरणमां यात्रा पूरी थाय छे. महिलाओ वच्चेना संवादमां जुदा जुदा नगर अने देशनी महिलाओ पोतपोतानी भाषामां कच्छनी टीका अथवा पोताना प्रदेशना तीर्थोनी प्रशंसा ऊलटभेर करे छे. ८२ कवि परमानन्द साधु होवाथी विविध देशना प्रवासी छे अने विविध भाषाओनी निकटथी जाणकारी धरावे छे तेथी घणी भाषाओनो प्रयोग अधिकारपूर्वक करी शक्या छे. कच्छीभाषानो तेमणे जे चोकसाई अने कुशलतापूर्वक उपयोग कर्यो छे ते दर्शावे छे के कच्छमां पण तेओ श्री सारी पेठे विहर्या हशे. चारसो वर्ष पूर्वेना कच्छनुं रंगदर्शी वर्णन लिखित रूपे आपती रचना कदाच आ एक ज हशे. कृतिनी हस्तप्रतो : अमने प्राप्त थयेल ६ प्रतो पण एकथी वधु कुलनी जणाय छे. लाद. संज्ञक प्रतने आधारभूत गणी आ वाचना तैयार करी छे. अन्य प्रतोमांथी महत्त्वना पाठभेदो नोंध्या छे. उत्तरकालीन प्रतोमां उच्चारभेदना कारणे सर्जाता पाठान्तरो (युगति = जुगति जेवा) नोंध्या नथी. पाछला काळनी प्रतोमां कच्छी भाषाना अंशोमां भूलभरेला पाठ छे तेने पाठान्तरमां लीधा नथी. मराठी अंशो यथामति सम्पादित कर्या छे. मराठीनी वधु तपास तो ए भाषाना विद्वान ज करी शके. क. ६मां ‘नखावता' छे, तेने स्थाने 'नचावता' वधु संगत बने, परंतु बधी ज प्रतोमां ‘नखावता' पाठ छे तेथी ए सुधार्यो नथी. आ शब्द तपास मागे छे. १ ‘मारुणी-' मारवाडी स्त्रीना मुखे मारवाडी भाषामां वर्णन छे तेमां एक विचित्रता छे. ज्यां ज्यां रकार होवो जोईए त्यां त्यां कवि ग कार वापरे छे. जेमके, राणपुर = गाणपुग; रलियामणुं गलियामणुं, वगेरे. ए प्रदेशमां ते समये आवो उच्चार प्रचलित होवो जोईए. क. ५६मां ‘आबूगोडा' छे त्यां बे प्रतमां आबू गढगी (-गढरी) छे. = १. नखाववुं ए 'पलाणवुं' अर्थमां प्रयोजातुं क्रियापद होई शके. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फेब्रुआरी २०११ आबूगोडा शब्दनी तपास करवी बाकी रहे छे. ढाळोनी देशीओना नाम मात्र एक ज प्रतमां मळे छे, जे प्रत अपूर्ण छे. एक पुण्यस्मरण : ___आ कृतिनी एक हस्तप्रत मांडलना भण्डारमांथी वीशेक वर्ष पहेलां अमने मळी हती. एल.डी. इन्स्टी.मांथी अन्य प्रतोनी तपास करावी हती परंतु नामफरकना कारणे प्रतो मळी शकी नहीं. अमे पण आनुं काम ते वखते बाजू पर मूकी दीधुं हतुं. पांचेक वर्ष पूर्वे आन्तरराष्ट्रीय लिपिविशेषज्ञ तरीके सुख्यात एवा श्री लक्ष्मणभाई भोजके आ ज कृति पर काम करवा मांडेलुं त्यारे आमांना कच्छी शब्दो बाबत तेमणे अमारो सम्पर्क कर्यो. अमे पण आ कृति पर काम करवा इच्छीए छीए एवं तेमणे ज्यारे जणाव्युं त्यारे तेमणे पोते एकत्र करेली हस्तप्रतो अमने मोकली आपी अने अमने ज आ कार्य पूर्ण करवा जणाव्यु. आ मोटा गजाना संशोधननिष्णात विद्वाननी उदारता अने संशोधननिष्ठाना आ प्रसंगे अमने दर्शन थयां. आ तके तेमनुं पुण्यस्मरण करवा साथे आ लेख तेमनी स्मृतिने अर्पण करीए छीए. हस्तप्रतो : १. ला.द. (लालभाई दलपतभाई भारतीय विद्याभवन, अमदावाद) क्र. ३०७७०. पत्र ४. (ले.स. १७मुं शतक) आदि : पण्डित श्रीकमलवर्धनगणिगुरुभ्यो नमः । अन्त : इतिश्री विजयचिन्तामणिस्तोत्र सम्पूर्ण । मुनिश्री रविवर्धनशिष्य ऋधिवर्धन लिखितं । शुभं भवतु । माख. (मांडवी खरतरगच्छ जैन संघनो भण्डार) पत्र ३. (१८मुं शतक) अंत : इतिश्री नानादेशीयभाषास्तवनं सम्पूर्णं । वा. जीवसौभाग्य लिखितं । ३. शु. (शुभवीर जैन ज्ञानभण्डार, अमदावाद) पत्र २. (१७मुं शतक) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४ अनुसन्धान- ५४ श्री हेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २ अंत : इति श्री पार्श्वनाथचिन्तामणि स्तवनं । ४. को. (श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर, कोबा) क्र. ३२१६२; पत्र ३ (१८मुं शतक) अंत : इति श्री विजयचिन्तामणिस्तोत्रं । ५. अ. (अपूर्ण) पत्र १-२ (१७मुं शतक) ६. मांपा. (मांडल पार्श्वचन्द्रगच्छ जैन संघनो भण्डार) क्र. ५८/६४. पत्र १-४. अंत : इति श्रीनानादेशदेशी भाषामय श्री विजयचिन्तामणि पार्श्वजिनस्तोत्रं सम्पूर्णमिदमिति । संवत् १६९८ वर्षे मार्गशीर्ष कृष्ण दशमी भृगु वारे । कच्छदेशे विहृधिनगरे पण्डितप्रवर पण्डित श्री संघविजयगणि चरणकमल मधुकर समान शिष्य पण्डित श्री देवविजयगणि लिखति स्म । गणि तत्त्वविजय वाचनार्थं । कल्याणमस्तु । [ढाल १] त्रिभुवन तारण तीरथ पास चिंतामणी रे कि विजय चिंतामणी रे, चालउ चतुर प्रिय जात्रिं जईई भणइ भामिनी रे, कि भणइ भामिनी रे; प्रिय सहजवाली' जोतरावि कि धवल धुरंधरा रे, कि धवल धुरंधरा रे, तस सिंगिइं सोवनखोल कि घमघमई घूघरा रे, कि घमघमइं घूघरा रे. १ जिणि एवडु वाद करावीअ कुमति हरावीआ रे, कि कु० देई तपगच्छ जयकार सुगुरु सोहावीआ रे, कि सु० लागीय मुझ मनि खंति ते तीरथ भेटवा रे, कि ते० लेई चालि सबल संघ साथि कुमति दल खेटवा रे, कि कु० २ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फेब्रुआरी २०११ एक प्रिय पगि लागी पनुतीअ पदमिनि वीनवइ रे, कि० संघ चालइ सबल कछ देशि बइठा शुं तुम्हे इवइ रे, कि० प्रिय वहिली अ वहिल अणावि तुरंगम जोतरु रे, कि० तिहां घमघम घूघरमाल छत्री छेकइं करो रे, कि० ३ वागिय यात्रा जंग मृदंगीहिं चतुर चकोरडी रे, कि० इक नाचइ पाउसि जेम मनोहर मोरडी रे, कि० इक सार सुखासण साज करइ गुण गोरडी रे, कि० इक चढइ चकडोलि चतुर चितचोरडी रे, कि० ४ तस नाह वहइ विवहार अचलि हइडा वटि रे, कि० इम आवइ गूजर संघ अनोपम थलवटि रे, कि० हवि आवि हो दक्षिण संघ अनोपम जलवटिं रे, कि० जस मानिनी मुखि हराव्यो शशि रहिओ निलवटि रे; ५ एहवि आवि हो मारुअ संघ कि करह झिकावता रे, कि० श्री पास चिंतामणि भेटवा भावन भावता रे, कि० आवइ उतराधी संघ तुरंग नखावता रे, कि० ते तु वागा के सर रंग सुरंग सुहावता रे, कि० ६ देखीअ ते परदेशीअ आवत ऊलट्या रे, कि० सहदेशीअ काछी लोक कि धरमी धुंसट्या रे, कि० भुजनगरिं श्रीरायविहार प्रसादिइं सहू मली रे, कि० तिहां वाद वदइ बहु नारि जुहारवा आकली रे, कि० ७ तिहां संघ मल्यु सहु सामटु सेरी सांकडी रे, कइ० इक युगति कहइ बहु नारि कि बोलइ वांकडी रे, कि० अहो छु परदेसी संघ कइ दूर दे संतरी रे, कि० तुह्रो कांइ धसु अा ठेलीअ दीसती व्यं तरी रे, कि कछिणि व्यंतरी रे; ८ तव बोलइ काछीअ नारि अशिं किं व्यंतरी ड़े, कि० कहु कुछीअ भुछीअ गाल्यि अशांशि गुज्जरी ड़े, कि० Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ आमई लज्ज न कज्ज वो गुज्जरी झप्भरी ज्यंतती ड़े, कि० आछयां त्रांकड़ पाय दिसंदी मंगती डे, कि० ९ [ढाल-२] हरमजनो वाहण पूरा, रे - ए देशी. गुज्जरी गुज्जरी स्युं कहइ, सा द्यइं छि उलंभा; अह्मे गुजरातीअ गोरड़ी, ते तो सहीअ दुलंभा. देव जुहारवा आविआ, नहींतरि इणि देसि; कुण अकरमीअ काछड़इ, कहु करइ प्रवेस. वाड़ीअ वन नही सुपनमां, नहीं कहीं अंबराइ; रायण प्रमुख न रूंखड़ा, नहीं केतकी जाई. रोड़ीअ बोड़ीअ भूमिका, चिहुं दिसि मइदान; चोखा-गहूं इणि देसड़ि, नवि नीपजइ धान. नहीं कहीं मोटा सरोवरू, नहीं नदीए पाणी; खाएं रण पड्युं चुबखेर, पसूरिधि वखाणी. अणहलवाड़ा नयरनी, हवि बोलिअ नारी; विनय-विवेक-विचारणा, चतुराईइं सारी. रहु रहु बाई कां करु, एह देसनी निंदा; धन धन एह पणि काछ देस, जिहिं पास जिजिंदा. १६ विजय चिंतामणि परगट्या, तपगच्छ जयकारी; श्रीखंभायत नयरनी, वली बोलीअ नारी. १७ बाइश्री बाईइं भलुं कहिउं, न विखोडिइं देस; पणि जुओ ए ओसवालिनो, स्यु दीसइ छइ वेस. १८ बांध्युं ढेपाईं पहिरणइ, माथइ कांबलड़ी; कस कहींई बांधइ नहीं, छूटी कांचलडी. नहीं फूली नहीं राखड़ी, नवि माधुं गूंथइं; राति-दिवस रोलुं करइं, छांणपुंजु चुंथइं. लांबा लटकई नागला, जाणे हींचोला; सोनुं-वार्नु पहिरइं घj, चतुराईइं मोला. रूपई दीसती राखसी, कुच कंबल झोला; Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फेब्रुअरी २०११ भुंछ सही भली वार नहीं, नर ती नघरोला. मंदिर मोटां झुंपड़ां, वसवानां ठाम; किहां हुइ नवि लहइ, नलिनुं नाम. दातण करवउं खयरनउं, अरणीनां फूल; कंथेर गूगली खाखरा, एहवा झाड़ असूल. गुल- राखोडउ ११ - डोरडउ १२ ए, लापसीअ जाब; गणगणाट माखी तणा ए, भोजन ते राब. आहीरणी-चारणी जिसिउ, ए वाणीयाणी वेस; रातिं खावडं नहीं विवेक, एहवउ कछ देस. अदल बदल वहु-दीकरी, ए वली करइ-करावइ; साप-वींछीनइं पणि हणइ, गोधा समरावइ. छोति नहीं लवलेश मात्र, नहीं आभड़छेट; अंत्यजनइं सांइ१३ दिइ, मलइ भेटाभेट. →जणंत खेव (?) जीवइ नहीं, पुत्रीनई पाडो; कुण समझइ कचवउं लवइ, असई कोरो - कुज्या उ. २९ पगि नाखइ कांटो घसी, एहवा जिहां चोर; वाटिं बूकइं बहुअ वाघ, घरघरइं अति घोर. मरइ तिवारइ विचिं ढोल, राखीनई गावइ; मुंकाणि आवइ जेह तेह, सहुइ जमी जावई. वली एह देशनी वारता, अह्मे केती कहीइं; सात पुहुर जइ हिंडिई, तउ पाणी लहीइं. एहवी अटवी अति घणी, सघलइ ऊजाडि; एह उल्लंघी आवीइं, ते साथनउ पाड. अहमदावाद तणी हवई, बोली बहु नारी; आपणी जाति न निंदिरं, पण अचिरय१४ भारी; मांटीअ घरि जिम दासड़ा, इहुनई नारि प्रधान. गरथ ते बइअरि हाथडइ, बहु संग्रहई धान; - गाइ भइंसि माटी दूहइ, खेत्रि भात अणावइ; मांटी-बइअरि मांहोमांहि, निज नामि बोलावइ. २२ २३ २४ २५ २६ २७ २८ ३० ३१ ३२ ३३← ३४ ३५ ३६ ८७ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ वार-परवइ पूरां लूगड़ां, इक अचिरय जो तुं; ठेपाडइ नहीं काछड़ी, माथइ बांधइ पोतुं. खेड़ि करइ खड़ वाढइ आप, व्यापार अनेरा; जनम मांहि जाणइ नहीं, नित्य कांतइ ढेरा. नामुंअ लेखुंअ नवि लहइ, अख्यर नवि आवइ; वस्तु-वांनुं कांइ लिइ, बइअरि समझावइ. गुरु-भोजिक भेला जिमइ, विण सालणइ भावइ; मरणि-परणि मेडु करी, निज घर लूटावइ. ४० काछीअ माछीअ जेहवा, दीसंता रूपइं; कांइ धसु अह्म ठेलवा, तुम्हे जाण्या सरूपइं. इम गूजर संघ गोरड़ी, जव वदवा लागी; कछमंडन खखराल संघ, नारि कहिवा लागी. ४२ कहु गुज्जरी यात्रिं अचीण१५, मुहि भुछी गाला हो; भोइ भोइ आज्यो विवेग, हेड़ी गालि म काहो. ४३ आंजी पयरि बूझ्यउं असई, निसगारी गालि; माठि करो भुछ्यो म च्यु, च्यु चंगी चालि. आंजे वाति न नीकरइ, लख डीइ च्यंगो; भुक्खड़-भुच्छड़ा जे होइं, उनजो एह बंगो. धुर१७ पाखी१८ आया ११मणुंस, अइं ठल्ला गुज्जर; कोरु करिआं असिं च्याउरि२०, अशां च्यंगी बज्जर. ४६ अंबा-लींब२१ न बुज्झिउं, अशां च्यंगा चिप्भड़; अइं साह्मी२२ नाठी अच्या, कोरो च्यां उप्भड़. ४७ ढाल [३] राग सिंधुओ. बाबीओ ए अदीयां, इयड़ो गुरु हेकड़ो, __आइएसां, इयडो२३ गुरु हेकडो, बाबीओ ए अदीयां, कहो द्यइ अशांशि ठेकड़ो, आइए सां, कहो द्यइ अशांशि ठेकड़ो, Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फेब्रुआरी २०११ बा० अ० तपगछ संदडो२४ ठकुर, आ० त० बा० अ० श्री विजयसेन सूरीसर, आ० श्री० ४८ बा० अ० श्री विजयदेवसूरि पटधर, आ० श्री० बा० अ० तिह पद कुंर२५ मधुकर, आ० ति० बा० अ० अशी प्रतिबोध्या अइं उर गुरु, आ० अ० बा० अ० जिह नालो विवेकहर्ष सद्गुरु, आ० जि० ४९ बा० अ० मिड़ी अणाथई पारिउं, आ० मि० बा० अ० हाणइं चंगइं पाणी गारिउं, आइएसां, त्रिवार२६ पाणी गारिउं; बा० अ० चउडसि पाखी पारिउं, आ० च० बा० अ० नित्य नुकरवारी धारिउं, आ० नि० बा० अ० डेव आडिनाथ कि पूजिउं, आ० डे० बा० अ० तत्त मिथ्या असी बूझिउं, आ० त० बा० अ० अशी बूझुं पोसु गिण्हण, आ० बू० बा० अ० नित्य करिउं पडिकमण, आ० नि० बा० अ० पंज्य परवी अशी पारिउं, आ० पं० बा० अ० अरिहंतयो नालो सारिउं, आ० अ० बा० अ० गंदमूर वाति न पाइउं, आ० गं० बा० अ० हेड़ी साहमिणि आइडं, आ० हे० ५२ बा० अ० असां डेह मंझ्यि हेड़ां तीरथ, आ० अ० बा० अ० श्री विजय चिंतामणि समरथ, आ० श्री० बा० अ० अशां डेह मंझ्यि भड्रेसर, आ० अ० बा० अ० आयइडेहि क्यहां हेड़ां डेहर, आ० अ० ५३ [ढाल-४] निरमालडीए. काछिणि केरा सुणि जबाप गुज्जरि रंग राती, ध्यन्य ध्यन्य साहमिणि करि मली, ध्रमनेहि धाती, वडदेहरानुं सुणि वखाण, मारुणी मदमाती, बोली बोली सदेस तणी बाली बलगाती, Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९० अनुसन्धान - ५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २ कासुं वखाणु देहगां ए, थे (थें) आपइगां२७ आप, गाणपुग गलिआमणुं, नगमालडीए, निगखतु जाइ भव पाप, मनोगहीए, तु न करो इसड़ा जबाप. चुउमुख चाहइ चतुगलोक, च्यागे दगवाजा, गंगमंडप गलियामणो, देवलोक दवाजा, नाटयागंभ कगइ अनेक, जाणे सुगगंभा, थंभे थंभे पूतली, वाजइ वगभंभा, सात भोइं सोहामणी ए, शिखग अतिहिं उत्तुंग, सगोगलोक सा थई सही, नगमालडीए, वाद कगइ मनगंग, मनोगहीए. नलिनी गुलम समाण, गाणपुग देहगुं कहिइ, असटापद संमेतशिखग, नंदीसग लहीइ, सगी सेत्तुंज अवताग वली तीगथ सइ जठइ, मन मोह्युं सइ माहगुं, माउए तठइ, तगणि भुवण जोइ आइआए, कठी न इसड़ा देव, आबू गोड़ा सुंदगी, नगमालडीए, बोली बुद्धिवंत हेव, मनोगहीए. ५४ ५५ ५६ [ढाल-५] आबूगिगि गलियामणु, सखी सोहइ नई, मोहइ नई मोहइ नई, विमलवसही मोगुं मन गमइए; विमलमंतीस कगाविआं, गूपामय सीधा नई सीधा नई कीधां सइ आगास मइ ए. जाणइ सगोगथी ऊतगी, असड़ी पूतली सोहइ नई सोहइ नई चपलनयणी चित्त चोगणी ए; केवली विण कुण वगणवइ, तिणइ जिणहरि, झलकती झलकती, असड़ी अनोपम कोगणी ए. वसतिग वसही वखाणिइं, जगि जाणीइ, ५७ ५८ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फेब्रुअरी २०११ वानगी वानगी, अगिहंत समोसगण तणी ए, नवलखा जठइ आलीआ, जे निहालीय, मन हगइ मन हगइ हथिसाला सोहामणी ए० अचलगुढि सगी चउमुख, तठइ जिनवरा, प्रतिमा नई प्रतिमा नई पीतलमय, गलियामणी ए, एक सु नई मण आठनी, ते तु चिहुंदिसि, झलकती झलकती सोहइ जगत्रि सोहामणी ए. भणवाडि नाणा नांदिया, सखी महावीर, जिनवर जिनवर सहोदगि मांड्या दीपता ए, इम अनेक अह्म देसडइ, सखी देहगां, दीपइ नई दीपइ नई अवग देसनई जीपतां ए. ढाल [६] मर[ह] ष्टी भाषा. एणि अवसरि बोली मरहष्टी९९ नारी, बो० काइ वो सांगितुसि मारुणी ग्रहिणी भारी, [मा०] पासोबा अह्मांचि देशि थोरला देवो, अंतरीक थोरला देवो, ३० बइसीले अंतरीक करतुसि देवता सेवो, [क० ] उसभचे लेके इनची सेवना केली, माणिकस्वामीची मूरति आह्मी पाहिली, पोहा वो अह्माच्या पोडइ३१ पूजेले पासो, अह्मांच्या वो देवगिरि देवता वासो. कलले तुह्मां चे तीरथ पाहुनि वेस, अइसइं कथूनि अह्मांच्या भोगी दख्यण देस; उत्तराधी बोली इणि अवसरि नारी, कीहो करइ तीरथ आई गरव गमारी; [ढाल–७] मारू. अछइ मरुमंडली मांहि, तीरथ फलवधि ओथि; श्रीवरकाण्ड पासजी जेणई जगाइ जगि जोति. ५९ ६० ६१ ६२ ६३ ६४ ६५ ९१ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ म करह गरव गमारडी दूबली दख्यण देस; मुंहि धुली देहि पांडरी की करिवु३२ थारु वेस. मकर० ६६ गोडीमंडण मरुधरा, महिमा महिमांहि जास, जाणहिं जगत्र जीराउलो तिमिरय३३ मंडण पास; ६७ ढाल [८] हवि पूरव देसनी पदमिनी, मनमोहन मेरे, बोलीअ बुद्धि विसाल, मनमोहन मेरे; रावण पासजी राजीउ, मनमोहन मेरे, अलवरि तेज झमाल३४ मनमोहन मेरे. ६८ सहरि हमारइ आगरइ, मन०, श्रीचिंतामणि पास, मन० श्रीहीरविजयसूरि थापिया, मन०, त्रिभुवनलीलविलास, मन० ६९ पंच कल्याणक जिन तणा, मन०, देस हमारइ हाथि, मन० अहिछत्रा तीरथ बडु, मन०, मेलइ हो सिवपुर साथ, मन० ७० दूहा. सोरठडी सुंदर भणइ, देश अमीणि३५ जोडि; काणु को जगि आवसइ, जिहां से@ज गुणकोडि. ७१ ढाल [९] इणि परि वाद करंतडी, निरखी सयल संघ नारि, जिनजी; प्रथम पूजानि कारणि, श्रीपास तणइ दरबारि, जि० जयु जयु विश्व चिंतामणि त्रिभुवन मोहनगार, जि० ७२ जुओ गूजरधरि गाजतो, श्रीशंखेश्वर पास, जि० थंभण पासजी राजीउ, पूरइ त्रिभुवन आस, जि० जयु०७३ ए तीरथ जीरण सवे, जस सिर जीरण मुनिवास, जि० इणि युगि अदभुत प्रगटिआ, श्रीविजय चिंतामणि पास, जि० जयु० ७४ इणि युगि किणिहिं भरावीआ, चोमुख जिनवर देव, जि० Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फेब्रुआरी २०११ ते तो काछ-वागडनइ राजीइ, राय भारमलि कीधलु हेव, जि० जयु० ७५ राइं निजनामि मंडावीआ, श्रीविजय चिंतामणि पास, जि० कुमति वाद हरावीआ, पुहुतीय तपगच्छ आस, जि० जयु० ७६ तिणि वति (?) संप्रति इणि समइ, जिन तीरथ महिमावंत, जि० काछ मंडल मांहि प्रगटिउ, तिणि साहमीअ काछीअ हुति, जि० जयु० ७७ “अई नाढी" काछी भणइ, “पहिरि पूज्यो जिण च्यंग, जि० पोइं असीं पण पूज्यंदा", इम मेल करइ सहू संघ, जि० जयु० ७८ ढाल [१०] श्री पासनई दरबारि सुंदरी सहू मिली रे, पाम्यु पाम्यु, हां जिनजी, पाम्युं पाम्युं परगट मुहुलग्६ रे, अनोपम रूप निहालती रे, इक नाचइ इक नाचइ, हां सहु संघ राचइ, हां सहू संघ राचइ करणीक लोल रे, कीरति कलोल रे, निस्तरिआ निस्तरिआ भवसायर जिनवर दरिशनि रे, भलिं भेट्या, भलि भेट्या श्री जिन पास रे, अह्म पहुती, अह्म पहुती मन केरी आस रे, निस्तरिआ० ७९ सुरतरु सुरमणी सुरगवी रे । काइ आव्या, काइ आव्या अह्म घरबारि रे, विश्व(विजय?) चिंतामणि जिनवर पूजिआ रे, भलिं दीर्छ भलिं दीर्छ रायविहार रे, निस्त० ८० भलिं रे आव्या इणि काछ देसडइ रे, भलिं दीर्छ भलि दीठं नयर भुज सार रे; Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९४ अनुसन्धान- ५४ श्री हेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २ धन्य धन्य राय भारमल्लजी रे, जिणि मांड्यं जिणि मांड्यं तीरथ उदार रे, नस्त० पूजी - प्रणमी श्री पासनई रे, संघ पुहुता, संघ पुहुता, निज निज ठामि रे; वंछित मनोरथ सहू फल्या रे, कांइ राख्युं कांइ राख्यं जगत्रमां नाम रे, निस्त० धन धन रे तपगछपति चिति वस्या रे, अति३७ श्रीविवेकहर्ष मुनिराज रे; जिणि रे राय भारमल प्रतिबोधियो रे, तिणि मांड्यं तिणि मांड्यं तीरथराज रे, निस्त० एह तीरथ जगि जे नमि रे, तस पगि तस पगि प्रगटइ निधान रे; वंछित मनोरथ सवि फलइ रे, ३८ इम बोलइ इम बोलइ पंडित प्रधान रे, निस्त० कलश इम सकल तीरथ सबल समरथ पास त्रिभुवननउ धणी, तपगछ जिणि जयकार दीधो, तेइ विजय चिंतामणि, भारमल्ल राजा वड दवाजा, करी थाप्या जिनवरु, श्री विजयसेनसूरिंद सेवक पण्डित परमाणंदकरु. =x= पाठान्तर १. सेवा पावसि - मांपा. ५. हिअडीवटि मांपा. ६. कछिअ ८१ - ८२ ८३ मांपा., शु. २. धमकई - को. ३. सुहगुरु ८४ ८५ मांपा. ४. मांपा. ७. सामहउ 1 Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फेब्रुअरी २०११ साम मांख., चबखेर को., चोपखेर राखडो - मांपा. राखोलो - मांख, राखोडो - शुं. १२. करडो - मांपा., मांपा., मांपा. ९. त्रांगड शु. १०. मांपा., अ., शु. चोखफेर - मांख., ११. शुं., मांपा. १४. अचिरज को. १५. अची. मांख -, अचीइं- अ; कोरडो मांख., शु. १३. साइ अचरिज - मांख., अ., अचिरिज आवि-मांपा. शु. १६. आंयु - मांपा. १७. धउर - अ.शु. १८. पंखी - मांपा., शु., को. १९. यायामणुं - मांपा. आंयामणु- शुं., को., दयामणा मांख. २०. च्याउरई - मांख, चाउरि - शुं. २१. आंबलींब मांपा., शु. २२. सामी - मांपा. २३. पाणज्यउ मांख. २४. संदो - मांख. २५. पदपंकज मांपा. २७. आपिगां - मांपा. २८. - — - मांपा. ८. काछिणि - — - मांपा., मांख., शु., २६. त्रय वार गोडानी - अ., गढगी मांपा. २९. मरहसी - मांपा., मरहठी-को. ३०. मांपा. मां दरेक चरणना अंते 'बरवइ सेव' एवा शब्दो छे. ३१. पोढइ - मांपा., पोढ-अ. ३२, करवु – को. ३३. तिमिरी - मांपा., तिमिरय – शु., को. ३५. झलमाल मांपा. ३५. अमाणइ मांपा., अमीणइ - मांख. ३६. महुल मांख. ३७. मांपा. मां नथी. ३८. मांपा. अने मांख. मां आ चरण आम छे सहजवाली (१) पती (३) छेकइं (३) पाउस (४) हइडावटिं (५) निलवर्ट (५) झिकावता (६) सहदेशीअ (७) - सार रे पदारथ पुहवि पामीइ. →← आ चिह्न अंतर्गत कडीओ मात्र लाद. मां छे. - शब्दनोंध (कौंसमां कडी क्रमांक छे) मध्यकालीन गु. शब्दो डमणी, गाडुं पुण्यवंती पूरेपूरुं वरसादमां ? कपाले बेसाडा स्वदेशना ९५ Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९६ धुंसट्या (७) अंबराइ (१२) चुबखेर (१४) ठेपाडुं (१९) फूली (२०) राखडी (२०) नागला (२१) भूंछ (२२) जाब (२५) छोति (२८) सांइ (२८) बूकइ (३०) अचिरय (३४,३७) माटी (३५) सालणइ (४०) साहमिणि (५४) भ्रमनेहि (५४) बलगाती (५४) जीरण (७४) मुहुल (७९) दवाजा (८५) अनुसन्धान- ५४ श्री हेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २ रंगायेला ? आंबवाडियुं, अमराइ चारे बाजू लांबुं, पहोळु, जाडुं कापड, स्त्रीओनुं अधोवस्त्र नाकनुं घरेणुं, चूनी सेंथामां पहेरवानुं घरेणुं काननुं घरेणुं मूर्ख छीछरा पाणीवाळी जमीन ? छूत, स्पर्शास्पर्श आलिंगन घूरके, घुरकाट करे नवाई, आश्चर्य पति शाक, व्यंजन वडे समानधर्मी स्त्री धर्मस्नेही ? जूनुं ? शोभा, ठाठ कच्छी शब्दो (कौंसमां वर्तमान कच्छी उच्चार आप्यो छे.) क. ९ अशीं (असीं) किं (कीं) कहु (कॉ) कुछीअ (कुछेआ, कुछइ) अमे केम, शुं केम, शा माटे बोल्या, बोली Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फेब्रुअरी २०११ भुझीअ (भुछी) गाल्यि, गालि ( गाल) अशांशी (असांसे) आमई (आमें) झप्भरी (जभरी) ज्यंतती आछ्यां त्रांकड़-त्रांगड़ दिसंदी (डिसंधी) मंगती (मंङ धल) क. ४३ अचीण (अचीने) मुंहि (मोंमें) भोइ भोइ (भॉ भॉ) आंज्यो (आंजो) हेड़ी काहो (कयो) गाला क. ४४ आंजी परि बूझ्य ं (बुझुं) असई (असीं) निसगारी क. ४५ वाति लख (लिख) लिखडी ( ) च्यंगो (चंगो) भक्खड़ (भुक्ख) भुच्छड़ (भुच्छो) खराब वात अमाराथी, अमारी साथे तमारामां जबरी, माथाभारे ? ? ? देखाती, देखशे मांगनार, मांगती आवीने मोढामां हा, हा तमारो आवी करो वात तमारी जेम जाणी अमे अपवित्र, गंदुं मोंमां जराक, अल्प सारुं, खासुं सुंदर गरीब, कंगाल दुष्ट ९७ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८ बंगो क. ४६ आंयामणुं (?) ठल्ला कोरु (कुरो) करिआं च्याउरि (?) क. ४७ साह्मी नाठी कोरो (कुरो) उप्भड़ क. ४८ बाबीओ आदीयां (हिडीयां) इयड़ो (एड़ो) द्यइ (डे) संदड़ो क. ४९ कुंर (?) उर (?) क. ५० मिड़ी (मिड़े) अणथइ हाणइ (हाणे) क. ५२ पंज्य (पंज) परवी पोसु नालो सारिउं गंदमूर वात अनुसन्धान - ५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २ ? ? खाली शुं करूं चावल (?) (सिंधी -चांवर) साधर्मिक ज्ञातिबंधु; महेमान शुं असभ्य, आकरुं होलो पक्षी अहीं, आ बाजु आवो आपे -नो (षष्ठी विभक्ति) कमल ? ? बधा अनस्त (सूर्य आथम्या पहेला जमी लेवानो नियम) हवे पांच पर्व पौषध नाम संभा कंदमूल मोढामां Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फेब्रुआरी २०११ नाखीए देशं पूजशं पाइउं क. ५३ असां डेह अमारा देशमां मंझि (मिज) अंदर, -मां आयइडेहि (आं-जडां) तमारा देशमां क्यहां (क्या) क्या डेहर क. ७८ पहिरि पहेला ? पोइ (पोय) पछी अइं तमे पूजिंदा (पूजींधा) क. २९ कोरो-कुज्याडउ मारवाडी शब्दो तुथे (५४) तमे माउए (?) (५६) दवाजा (५५) शोभा, ठाठ जटइ (५६) ज्यां तठइ (५६) लठी (५६) क्यांय असड़ी (५८) आवी मराठी शब्दो क. ६२ काइ (काय) हो, रे जेवो पादपूरक ? ___शब्द जणाय छे. सांगितुसि (सांगतोस) तुं कहे छे पासोबा पार्श्वनाथ भगवान थोरला त्यां मोटा Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 100 अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ जाण्या (?) क. 63 लेके क. 64 कलले (कळले) अइसई कथून (किथून) क्यांथी अमीणि (71) काणु (71) सोरठी शब्दो अमाझं कोण