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फेब्रुअरी २०११
लोको विषे निन्दात्मक वर्णन कराव्युं छे. लागे छे के कृतिनी प्रतिलिपि करनारा सुज्ञजनोए पछीथी ए निन्दात्मक कडीओ २५ करीने प्रतिलिपि करी हशे. बीजी बे कडीओमां कच्छी नारीनो जवाब छे ते पण आकरी भाषामा छे, तेथी ए बे कडीओ पण बाद करवामां आवी हशे आ सात कडीओ कच्छीभाषानी अने कच्छनी दस्तावेजी सामग्री होवाथी अमे ए कडीओ रहेवा दीधी छे.
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अत्रे ए नोंधनीय छे के पांच कडीओमां (अने एवी बीजी कडीओमां) करेलां विधानो असत्य नथी. कच्छमां ए जातनी प्रवृत्ति थती हती खरी पण जैनोमां पण ए ज रूपे ए बधुं होय एम न कही शकाय. घोडियामां होय एवा पुत्र-पुत्रीना सगपण, दीकरीनी सामे दीकरीनुं साटुं - आवी केटलीक रीतो तो जैनोमां पण सोएक वर्ष पहेलां सुधी प्रचलित हती. पुत्री अने पाडो जीवे नहि. अर्थात् पुत्रीने ‘दूधपीती' करवानी वात जैन समाजने नहीं पण क्षत्रियवर्गने लागू पडे. गुजराती नारीओ अजाणपणे कच्छी जैनो माटे पण एवा आक्षेप करे छे एवा प्रसंग कविए ऊभो कर्यो छे. आ संवादमां कच्छनी भूमिनुं अने कच्छीओना खान-पान, रीत-रिवाज, भाषा वगेरेनुं विगतप्रचुर वर्णन समावायुं छे – जाणे ‘आंखे देख्यो अहेवाल' आमां आपणने मळे छे. अहीं कच्छ अंगेनी ए विगतोनी चर्चा अमे करी नथी, परन्तु कच्छ विषे संशोधन करनार अभ्यासीने दस्तावेजी सामग्री लेखे आ कृति अत्यन्त उपयोगी बने ए निःशङ्क छे.
कथावस्तु :
भुजना राजविहार जिनालयनी यात्रा माटे विविध देशना संघो भुज आव्या छे, जेमां खाखरनो संघ पण सामेल छे. भुजनी सांकडी शेरीओमां भीड थाय छे अने कच्छनी महिलाओना धसाराथी गुजराती नारीने धक्को लागे छे त्यारे ते कच्छ अने कच्छनी नारीओने माटे घसाती टिप्पणी करे छे अने आ रकझकमां खम्भात, अमदावाद, महाराष्ट्र, मारवाड वगेरे स्थळोनी स्त्रीओ पण सामेल थाय छे. मोटी खाखर गामनी महिला जुस्साभेर जवाब वाळे छे : अमे पण विवेकहर्ष गणी द्वारा धर्मबोध पाम्या छीए, अमे पण जैन आचार पाळीए छीए, अमारा कच्छमां भद्रेश्वर जेवां महान तीर्थ छे वगेरे. कच्छीओ पण