Book Title: Nana Deshdeshi Bhashamay Vijaychintamani Parshwanath Jinstotra
Author(s): Bhuvanchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 7
________________ फेब्रुआरी २०११ एक प्रिय पगि लागी पनुतीअ पदमिनि वीनवइ रे, कि० संघ चालइ सबल कछ देशि बइठा शुं तुम्हे इवइ रे, कि० प्रिय वहिली अ वहिल अणावि तुरंगम जोतरु रे, कि० तिहां घमघम घूघरमाल छत्री छेकइं करो रे, कि० ३ वागिय यात्रा जंग मृदंगीहिं चतुर चकोरडी रे, कि० इक नाचइ पाउसि जेम मनोहर मोरडी रे, कि० इक सार सुखासण साज करइ गुण गोरडी रे, कि० इक चढइ चकडोलि चतुर चितचोरडी रे, कि० ४ तस नाह वहइ विवहार अचलि हइडा वटि रे, कि० इम आवइ गूजर संघ अनोपम थलवटि रे, कि० हवि आवि हो दक्षिण संघ अनोपम जलवटिं रे, कि० जस मानिनी मुखि हराव्यो शशि रहिओ निलवटि रे; ५ एहवि आवि हो मारुअ संघ कि करह झिकावता रे, कि० श्री पास चिंतामणि भेटवा भावन भावता रे, कि० आवइ उतराधी संघ तुरंग नखावता रे, कि० ते तु वागा के सर रंग सुरंग सुहावता रे, कि० ६ देखीअ ते परदेशीअ आवत ऊलट्या रे, कि० सहदेशीअ काछी लोक कि धरमी धुंसट्या रे, कि० भुजनगरिं श्रीरायविहार प्रसादिइं सहू मली रे, कि० तिहां वाद वदइ बहु नारि जुहारवा आकली रे, कि० ७ तिहां संघ मल्यु सहु सामटु सेरी सांकडी रे, कइ० इक युगति कहइ बहु नारि कि बोलइ वांकडी रे, कि० अहो छु परदेसी संघ कइ दूर दे संतरी रे, कि० तुह्रो कांइ धसु अा ठेलीअ दीसती व्यं तरी रे, कि कछिणि व्यंतरी रे; ८ तव बोलइ काछीअ नारि अशिं किं व्यंतरी ड़े, कि० कहु कुछीअ भुछीअ गाल्यि अशांशि गुज्जरी ड़े, कि०

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