Book Title: Nagil Charitram Author(s): Shubhshil Gani Publisher: Hiralal Hansraj Pandit View full book textPage 5
________________ G नागील चरित्र // 3 // // 3 // ++KASHARAMGAR अर्थ:-जे पुरुष काजलविनाना, वाटरहित, तथा तेलना खर्च विनाना निष्कंप दीपकने हमेशां धारण करे, ते पुरुष मने परणी शकशे. इति तस्या वचः श्रेष्ठी वरेष्वनुदिनं दिशन् / अस्याः काभिग्रहः पूर्य इत्यातचिन्तयाजनि // 10 // _ अर्थ:-ते लक्ष्मण शेठ तेणीनुं एरीतनुं वचन बरोने हमेशां जणावतोथको आनो (आ) अभिग्रह क्याथी पूरो थाय? एवी | चिंताथी दुःख पामचा लाग्यो. // 10 // नागिलः कान्तकायस्तु कितवो लङ्घनैर्घनैः तुष्टं यक्ष विरूपाक्षं वनेऽपयर्यताग्रहात् // 11 // अर्थः-एवामां मनोहर शरीरवाळो ( कोइक ) नागिलनामनो धूर्त घणी लांघणोथी तुष्टमान थयेला वनमा रहेला विरूपाक्ष नामना यक्षने आग्रहपूर्वक प्रार्थना करवा लाग्यो के, // 11 // नन्दयोक्तोयथा दीपस्त्वं तथा भव मदगृहे / इति यक्षेण दत्तेऽर्थे स ययौ अष्ठिनोऽन्तिके // 12 // ____ अर्थः-जेवो नंदाए दीपक कहेलो छे, तेवा दीपकतरीके तुं मारा घरमां रहे? पछी तेवीरीतनो वर यक्षे आपवाथी ते नागिल लक्ष्मणशेठपासे गयो. // 12 // कितवाय दरिद्राय नन्दिनी स्वां ददामि मे / अभिग्रहमहं तस्या हन्त पूरयितुं क्षमः // 13 // अर्थः-( अने कहेवा लाग्यो के ) दरिद्र तथा धूर्त एवा मने जो तारी दीकरी आपे, तो खरेखर हुँ तेणीनो अभिप्रह संपूर्ण ॐा करवाने समर्थ छु.॥ 13 // यादृक्तादृग्भवेस्त्वं भोः पूरिताभिग्रहो यदि / तत्ते ददाम्यहं पुत्रों गङ्गामिव पयोधये // 14 // ORatoCALPage Navigation
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