Book Title: Nagil Charitram Author(s): Shubhshil Gani Publisher: Hiralal Hansraj Pandit View full book textPage 6
________________ नागील चरित्रं *+%AHARA // 4 // // 4 // अर्थः-अरे! गमे तेवो तुं हो, परंतु जो तेणीनो अभिग्रह पूरी करे, तो महासागरमते गंगानीपेठे तने हुं मारी पुत्री आपुं.१४॥ - तर्हि मद्गृहमागत्य दीपस्तादग्विलोक्यताम् / इत्युक्ते तेन स श्रेष्ठी सकुटुम्बस्तथाकरोत // 15 // अर्थ:-त्यारे मारे घेर आवीने तेदो दीपक तमो जुओ? एम तेणे कहेवाथी कुटुंबसहित ते शेठे तेम कयु // 15 // दारियोपद्रुतेऽप्यस्य गृहे तादृशमेव सः / दीपं पश्यन्सुतोवाहसोत्साहः प्राप संमदम् // 16 // अर्थः-दरिद्रताथी वेरविखेर हालतवाळा पण तेना घरमां तेवोज दीपक जोतो एवो ते शेठ पुत्रीने परणवाना उत्साहथी आनंद पामवा लाग्यो. // 16 // तादृग्दीपसमालोककौतुकोत्तानलोचनः जनोऽजनिष्ट नन्दा तु निरानन्दाभवत्तदा // 17 // अर्थः-ते वखते लोको तो तेवो दीपक जोवाथी आश्चर्य चकित लोचनोवाळा यया, परंतु नंदा आनंदरहित थइ. // 17 // विभवैर्भवनं तस्य विभूष्याथ वणिग्वरः / उत्सवोत्संगितपुरः पुत्रीं तेन व्यवाहयत् // 18 // अर्थ:--पछी ते उत्तम शेठे तो समृद्धिथी ते नागिलनु घर शणगारीने, तथा शहेरमां पण म्होटो उत्सव करावीने ते नागिलनी साथे पोतानी पुत्रीने परणावी. // 18 // परिणीयापि तां तन्वीं विवेकामृतदीर्घिकाम् / द्यूतान्यवर्तत न स व्यसनं कस्य सुत्वजम् // 19 // अर्थः-विवेकरूपी अमृतनी वावडी सरखी एवी ते नंदाने परणीने पण ते जुगार रमवाथी पाछो हठ्यो नही, केमके व्यसन तजवू कोने सहेलं छे? // 19 // 6ASARASWATHAMABAR SHRESEARSHRE%Page Navigation
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