Book Title: Nagil Charitram
Author(s): Shubhshil Gani
Publisher: Hiralal Hansraj Pandit

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Page 14
________________ नागील // 12 // +AAKAASAR खरा स्वरूपमांन रहीने (त्यां) स्तंभाइ गइ. // 54 // स तत्तत्कपट वीक्ष्य कपटान्तरशाङ्कितः / कृतलोचः स्वयं भेजे शीलभाभयावतम् / / 55 / / ___अर्थ:--पछी ते नागीले तेणीनुं ते कपट जोइने बीजां कोइ कपटनीशंकाथी लोच करीने शीलभंगना डरथी पोतानी मेळेज (त्या) चारित्र अंगीकार कयु.॥ 55 // दत्तं शासनदेव्याथ यतिवेषं स धारयन् / तत्प्रदीपपुरोभागमागत्येदमभाषत // 56 // अर्थः-पछी शासनदेवताए आपेला मुनिवेषने धारण करनारो ते नागिल ते दीपकनीपासे आवीने आ प्रमाणे कहेवा लाग्यो के, आराध्य नन्दालोमेन नीतोऽस्यद्भुतदीपताम् / अयि यक्ष विरूपाक्ष कृतकृत्योऽस्मि गम्यताम् // 57 // | अर्थ:--हे विरूपाक्ष यक्ष! नंदाने मेळववानी लालचथी (तारुं) आराधन करीने तने आश्चर्यकारक दीपकपणाने में माप्त करेलो छे, हवे हुँ कुतार्थ थयो छु, माटे तुं चाल्यो जा? // 57 // दीपतोऽप्यथ भाषाभूत्सेव्यो यावद्भवं भवान् / रवेरिव न मे भाभिः स्पर्शदोषः प्रभो भवेत् // 58 // ___ अर्थ--त्यारे ते दीपकमांथी पण एवी वाणी थइ के, हे स्वामी ! छेक जींदगीपर्यंत मारे तारी सेवा करवानी छे, तथा सूर्यनी कांतिनीपेठे मारी कांतिथी पण तमोने स्पर्शदोष लागवानो नथी. // 58 // अथ तादृग्महाशीलप्रीतया स्फीतविद्यया / विद्यार्या प्रतिपदं क्रियमाणप्रभावनः // 59 // तथाविधकथायोधवर्धमानप्रमोदया। व्रतध्यानगलत्पापकन्दया नन्दयान्वितः // 6 // SAROSAGROSPECIES

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