Book Title: Murti Mandan
Author(s): Labdhisuri, Vikramsenvijay
Publisher: Labdhisuri Jain Granthmala
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रागद्वेषपरित्यक्ता, विज्ञाता विश्ववस्तुनः । सेव्यः सुधाशनेशानां, गिरीशो ध्यायते मया ॥ १ ॥ सूरि श्रीविजयानन्दं, तं नमामि निरन्तरम् । यस्याभूवं प्रसादेन, बालोऽपि मुखरीतरः ॥ २ ॥ प्रणम्य सद्गुरुं भक्त्या, सूरिं श्रीकमलाह्वयम् । क्रियते मूर्तिपूजाया-मण्डनं दुःखखण्डनम् ॥ ३ ॥

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