Book Title: Medta se Vijay Jinendrasuri ko Virampur Preshit Sachitra Vignapati Patra Author(s): Bhanvarlal Nahta Publisher: Z_Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_Mahotsav_Granth_Part_1_012002.pdf and Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_ View full book textPage 3
________________ मेड़ता से विजय जिनेन्द्रसूरिको वीरमपुर प्रेषित सचित्र विज्ञप्तिपत्र : ५१ अथ श्री पार्श्वपरमेश्वरस्तवः - पद्माशक्तिमती तथैव धरणो यस्यांहि सेवापरौ पार्श्व नैव जहाति भक्तिनिरतः पार्श्वाभिधो यक्षराट् जतं नाम यदीय मुज्वल घिया कष्टाष्टक ध्वंसकम् विश्वाभिप्सित दंभवेजयतु स श्रीपार्श्वतीर्थेश्वरः ॥ ४ ॥ अथ वर्द्धमान जिनराजवर्णनम् - Jain Education International येना तारि समां सुधारिनिकरः सदेशना दानतः काले नल्प कुवादि जल्प विषमे मिध्यान्धकाराद्वृते उद्यद्वासर राजमंडळ निजं जागर्तियच्छासनम् सोयं श्री चरंमो जिनाधिप वरो जीव्यादनं तर्द्विदः ॥ ५ ॥ एवं पंच जिनाधीशान् सुराधीशार्चित क्रमात् अभिष्ट्रय प्रकृष्टेन भावेन कृत मंगलान् ॥ ६ ॥ अथ गुज्जर देशवर्णनम् ॥ दूहा ॥ सारद मात मया करी, प्रणमी सद्गुरु पाय । लेख पद्धति हिव वर्णवुं गाधुं गच्छपति राय ॥ १ ॥ जंबूद्वीप दक्षिण दिसै, भरतक्षेत्र मझार । गुज्जर देश सुहामणो, वीरमनगर उदार ॥ २ ॥ धर गुज्जर सुंदर धरण, हरण दुःख सुख ठाम । हरषित सुरवासो वसें, जेहवो गुण तस नाम ॥ ३ ॥ सहु देसां मांहे सिरै, सुरपति रच्यो निज हत्थ । वासवियो हर्पे करी, सुघड करण निज सत्थ ॥ ४ ॥ गुणप्रकारंभ (? सुं) गुज्जर तणा, लक्ष्मी कीनो वास । जगति वसाव्यो जेह धर, अधिकी पूरण आस ॥ ५ ॥ वीरमनगर सुहामणो, वनवाडी जग सार । कवि ओपम कासु कहै, पसरी जग विस्तार ॥ ६ ॥ तेहिज गुज्जर देसमें, वीरमनगर सुनाम । गुणमणि रयण करंड ज्युं, भर्यो रहे सुखठाम ॥ ७ ॥ चिहुं दिसि हरियाली खुली, नीरतरुवर नीर । सलिल परसरै नवल तरु, ओटै किया गुहीर ॥ ८ ॥ शीतल छाया तरु भला, जिम माया फल वेल । छंदा कर राखै सदा, इण विध मननो मेल ॥ ९॥ सूरज चंद्रज देख नै, हरषित हुवै निसदीस । धन धन इण नगरै नरा, वसै सु पवन छत्तीस ॥ १० ॥ | देशी भटियाणी री ॥ नगर वीरमपुर सोहै हो मन मोहै सुरतर वृंदना; गढ मढ तोरण मंड | ऊंची गत विधि भीति हो बहुदीप्ति कीर्त्तिकंगुरा, श्वेत वरण चंद्र खंड ॥ १ ॥ न० ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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