Book Title: Medta se Vijay Jinendrasuri ko Virampur Preshit Sachitra Vignapati Patra
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_Mahotsav_Granth_Part_1_012002.pdf and Mahavir_Jain_Vidyalay_Suvarna_

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Page 8
________________ ५६ : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ ढाल (४) श्री संखेश्वर पासजिणेसर भेटियै । सत्तोत्तर लव एक मुहुर्त्तनो मान छै । अकंपितनो आयु अठोत्तर वान छ । जंबूद्वीपनी पोलनो कहीयो भतरो । जोयण गुण्यासी सहस कह्यो तिहां सांतरो॥१॥ श्रीश्रेयांसनो मान कह्यो केवळ मुखै । भसी धनुष प्रमाण लहो विधथी सुखै । नवनमीया मुनिजाण कहं सास्त्रे भला । प्रतिमाना दिनमान लहो चितथी सला ॥२॥ इक्यासी ते जाण भली विध चित्तमें । देवानंदनी कूख वस्या वीरजी समै। बयासी निस जाण वले शीतल जिना । गणवर व्यासी शुद्धि क्रिया गुण शुधिना ॥३॥ ऋषभदेव जिनंदना गणधर जागीयै । चौरासी शुद्ध जाण जगत्र वखाणीये । उद्देशा पढमांगना पिच्यासी कह्या । सुविधि तणा गणधार छीयासी सर दह्या ॥ ४ ॥ उत्तर प्रकृत छव कर्मनी सत्यासी सही । धर्म जिणंद गृहवास भव्यासी जग लही। शांति जिणंदनी साधवी सहस नियासीये । नेऊ धनुषनी जाण शीतल जिन तनु कीये ॥५॥ आयु गोत्र विण कर्म छवैनी जाणियै । कहीय ईकाणुं सार हीया में भाणीयै। इंद्रभूतिगणधार वरष बाणुं लहो। चंद्रप्रभु जिणराय तिराणु गण कहो ॥ ६ ॥ चोराणुं गणधार अजितजिनना भला। पचाणुं गणधार सुपार्श्व जिणंद सला। वायुकुमारना भुवन छिनु लख जाणियै । उत्तर प्रकृति वखाण करम अठ माणियै ॥ ७ ॥ सत्ताणु कही भाष करमनी सरदहो । ऋषभनै साथै दीक्षक निजसुतमन लहो। भठाणु शुद्धचित्त सुश्रीजी जाणिया। जोजन सन्निनाणवै सुरगिर माणीया ॥ ८॥ पारसनाथनो आयु सतह वर्ष जाणज्यो । दसदसमी या पडिमाह तिके मन आणज्यो। एक सो एक दिनमान प्रमाण सुधारणा । कुल इकोत्तर सतनुं श्रीजी सारणा ॥९॥ बीडोत्तर वलि रूपक भेदावलि लही। तीडोत्तर सत नाम ते श्री जी सईही। चीडोत्तर सत राग भेद भणावता । पंचाधिक सत जाण कुंडलिया जणावता ॥१०॥ षट उत्तर शत तेहना, दोधक छंद सुभेद। इक शत सातें आगला, गाथा दोधक वेद ॥ १ ॥ मिणिया नवकर वालियै, एक सौ आठ प्रमाण । जासु कर जपीये सदा, श्री सदगुरुनो ध्यान ॥२॥ इत्यादिक बहु गुण कह्या, जाणे श्रीजी सार। कविता किम गुण कर सके, दीपक मन विस्तार ॥ ३॥श्री.॥ सकलगुणमणिविरचितगात्रैः अनवद्य विद्या विशारदैः श्री सिद्धान्तार्थ स्मारकैः अस्ति नास्ति सकल ज्ञायक तत्त्वैः सप्तनयवाद विद्या ज्ञायकैः रनवद्य गद्यपद्य हृद्य समय शाब्द तर्क छन्दोलङ्कार गणितादि विविध तन्त्रज्ञैः सर्वत्र लब्धि प्रतिष्ठैः विद्या मद घूर्णित वाद्योधकक्षदात्रैः व्याकृत्यलंकृति कोशादिभिः पाठित वैनयिक छात्रैः सद्विद्यौदार्य धैर्य गांभीर्यादि गुणगणपात्रैः प्रधारित सराद्विवदातुल्यसच्चारित्रैः । करतलकलितामलकवदमलविदित सज्जैनिक तंत्रचारित्र्यशास्त्रैः । उरीकृत शिरसिजिनानुशासनशिरस्त्रै ॥ सच्छीलशीलपुण्यसरसरिन्नीरपवित्रैः महामन्त्र पंच प्रस्थान यत स्मारकैः कषायगिरीभेदक महावज्र वद्वीर्य युतैः महा मोहमल्लजीपकैः, पंचाचार पालकैः। न भव्यजन प्रतिबोधनैक मार्तण्डैः ॥ अष्टादशसहस्र शैलांग रथवाहकैः। षट्जीव रक्षाकारकैः। सप्त भयनिवारकैः, अष्ट महामदभेदनैक हरि तुल्यैः। दशविध यतिधर्मवारकैः। एकादशांग वाचनैक रसिकैः द्वादशोपांगामृत वर्षणैक घनसमूहैः। श्रीवीरपट्टप्रभाकरैः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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