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मेड़ता से विजय जिनेन्द्रसरिको वीरमपुर प्रेषित सचित्र विज्ञप्तिपत्र
भंवरलाल नाहटा
जैन धर्ममें तीर्थंकरों के बाद आचार्यों का उल्लेखनीय स्थान है ! क्योंकि जैन शासनका संचालन उन्हीं के द्वारा होता है । साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका चतुर्विध संघको धर्ममें प्रवृत्त करानेका और शासन रक्षणका भार उन्हीं पर होता है । इसलिये जिस तरह राजा-महाराजाओंका राज्य शासन चलता है। उसी तरह आचार्यों का धर्म शासन । राजाओंकी तरह ही उनका मान-सम्मान और आज्ञाओंका पालन किया जाता है। जैन शासनको इन आचार्योंने ही बडी सूझ-बूझसे अब तक टिकाये रखा और सत्र प्रकारसे उन्नति की । उनके आगमनसे धर्म जागृतिका स्रोत उमड पडता है । इसलिये प्रत्येक ग्रामनगरोंके श्रावक-श्राविका संघ, आचार्यों को अपने यहां बुलाने, चातुर्मास करनेको उत्कंठित रहता है । उन्हें अपने यहां पधारनेके लिये जो विज्ञप्ति या विनंतिपत्र भेजे जाते थे वे इतने विद्वत्ता और कलापूर्ण तैयार किये जाने लगे कि एक तरह से वे खण्डकाव्य और चित्र - गेलेरी जैसे बन गये। ऐसे महत्वपूर्ण और वैविध्यपूर्ण अनेकों विज्ञप्तिपत्र आज भी प्राप्त हैं। बडौदासे सचित्र विज्ञप्तिपत्रों संबंधी एक ग्रन्थ काफी वर्ष पहले प्रकाशित हुआ था। इसके बाद संस्कृतके अनेक विज्ञप्ति-काव्योंका एक संग्रह मुनि जिनविजयजीने प्रकाशित किया था । पर अभी तक बहुत से ऐसे महत्वपूर्ण विज्ञप्तिपत्र इधर-उधर बिखरे पड़े है जिनकी ओर किसीका ध्यान ही नहीं गया। यहां ऐसे ही एक सचित्र विज्ञप्तिपत्रकी नकल प्रकाशित की जा रही है, जो गुजरात और राजस्थान इन दोनोंके लिये विशेष महत्वपूर्ण है । अत्रसे १५५ वर्ष पहले ( संवत् १८६७) को यह पत्र मेड़ते श्रीसंघकी ओरसे वीरमपुर स्थित तपागच्छके आचार्य विजयजिनेन्द्रसूरिको भेजा गया था। अभी यह पत्र कलकत्ताकी गुजराती तपागच्छसंघकी लायब्रेरी में सुरक्षित है। वहीं एक और सचित्र विज्ञप्तिपत्र है, जो तपागच्छकी सागर शाखा के कल्याणसागरसूरिको अहमदाबाद भेजा गया था पर उसमें चित्रोंके नीचे वाला अंश अब प्राप्त नहीं हैं ।
मेड़तेका सचित्र विज्ञप्तिपत्र ३२ फूट लम्बा है जिसमें १७ फुट तक तो चित्र हैं और १५ फूटमें संस्कृत और मारवाडी भाषाका गद्य-पद्य में लेख है । यहां सर्वप्रथम चित्रोंका संक्षिप्त विवरण दे दिया जाता है। फिर मूल लेखकी नकल दी जायगी। चित्रोंका प्रारम्भ मंगल कलशसे होता है
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५० : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ
जिसके दोनों और स्त्रियां खडी हैं। इसके बाद छत्रके नीचे दो स्त्रियां नृत्य कर रही हैं, दो स्त्रियां बाजा बजा रही है, एक ढोलक और दूसरी वीणा बजा रही है। तदनंतर अष्ट मंगलिक, १४ महास्वप्न, त्रिशला माता. सिद्धार्थके सामने बैठे स्वप्नफल पाठक। फिर जिनालय, बाजार, दुकाने, महन्त, मसजिद । इसके बाद बाजार, तीन-तीन दुकानें, श्रीनाथजी का मन्दिर। फिर तीन-तीन दुकाने, रास्तेमें १ घुडसवार, पनिहारी, पुरुषवर्ग, दो मुनि जिनके हाथमें काले रंगकी त्रिपणी है, चित्रित किये गये हैं। फिर हाथी पर ध्वजाधारी। तदनन्तर चार घुडसवार, दस बाजा बजाने वाले, अश्वारोही राजा जिसके आगे २ और पीछे तीन
और बगलमें २ आदमी चल रहे हैं। तदनन्तर १५ पुरुष, ९ बच्चा, १३ स्त्रियां और १ बालिका है। स्त्रियोंके मस्तक पर घडे। इसके बाद उपाश्रयमें आचार्य तख्त पर बैठे हैं। सामने ४ श्रावक और स्थापनाचार्य हैं, पीछे चँवरधारी खड़ा है। तख्तके पास ८ साधु, ७ श्राविकायें जिनमें एक खड़ी है, एक व्यक्तिका एक पांव आगे और एक पांव पीछे हैं। इसके बाद साध्वीजीका उपाश्रय है। ४ श्राविकायें बैठी हैं। फिर पार्श्वनाथ मन्दिर शिखरयुक्त, जिसके दाहिनी ओर अन्य तीर्थकर और बांयी ओर दादागुरु विराजमान है
और एक नर्तकी नृत्य कर रही है जिसके एक तरफ वाजित्र बजाने वाला खड़ा है। इन भावचित्रों के बाद विज्ञप्तिलेख लिखा हुआ है जिसकी नकल आगे दी जा रही है। विज्ञप्तिलेखमें वीरमगांवके राव फतहासिंह, टोकर सेठ, ४ जैन मन्दिर, ईश्वर, माता, गणपति, भैरव, ६४ योगिनी, ५२ वीर व सहस्रलिंग तालाबका महत्वपूर्ण उल्लेख है। फिर विजय जिनेन्द्रसूरिके १०८ गुणोंका उल्लेख करते हुये से लेकर १०८ तककी वस्तुओं व प्रकारोंका वर्णन महत्वका है। तदनन्तर मरूधर देश, राजा मानसिंह, मेदनीपुर (मेड़ता), वहांके १२ मन्दिर, हाकम पंचोली गोपालदासका काव्यमें उल्लेख कवि गुलालविजयके शिष्य दीपविजयने किया है। फिर आचार्यश्रीके गुण-वर्णन, उनके साथके मुनियोंके नाम और मेड़तेके मुनियों के नाम काव्यमें है। आगे मारवाडी भाषामें गद्यमें पत्र है जिसमें पर्युषण आदिके समाचार व उपालम्भ लिखा हुआ है। यह लेख संवत १८६७के मिगसर सुदि ५को शिवचंद्रने संघके कहनेसे लिखा है। प्रस्तुत लेखका आधा अंश गुजरात संबंधी है और आधा मारवाड़ संबंधी। तत्कालीन मारवाडी भाषा एवं अन्य अनेक बातोंकी इस लेख द्वारा महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती है। लेखमें गुलालविजयको कविराय विशेषण दिया है अतः उनकी कविताओंकी खोज की जानी आवश्यक है।
विज्ञप्तिपत्र ॥०॥ श्रीसद्गुरुभ्यो नमः ॥ श्रीमन्जिनराज वाग्वादिनी सद्रुचरण स्वस्ति श्रीरमरसुरासुरावनि चराधीशोत्तमांगेर्नतं । लोकालोक विलोकनैक रसिकं धात्रादि देवैः स्तुतं ॥ दृष्टायं चरणाश्रये स्थितिमती चक्रेश्वरी रूपभाक् जाता भक्तजनेष्टदा जयतु स श्रीनाभिजातो जिनः ॥१॥
अथ श्रीशांति जिनस्तुति:-- शशामयस्मिन्नचिरीदरे च, चिरंतनोरुक प्रचुरं प्रचारः। आयातएवेतदुदारचोधं, जातं स शांति शिव तातिरस्तु ॥२॥
अथ श्री नेमितीर्थकृवर्णनम्राजीव दृग्योषिदुदारराजी ललामहित्वात्तय मोरराज । राजीमती यो खिल योगिराजो, भूयात्सनेमि विकाष्टसिद्धये ॥३॥
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मेड़ता से विजय जिनेन्द्रसूरिको वीरमपुर प्रेषित सचित्र विज्ञप्तिपत्र : ५१
अथ श्री पार्श्वपरमेश्वरस्तवः -
पद्माशक्तिमती तथैव धरणो यस्यांहि सेवापरौ पार्श्व नैव जहाति भक्तिनिरतः पार्श्वाभिधो यक्षराट् जतं नाम यदीय मुज्वल घिया कष्टाष्टक ध्वंसकम् विश्वाभिप्सित दंभवेजयतु स श्रीपार्श्वतीर्थेश्वरः ॥ ४ ॥ अथ वर्द्धमान जिनराजवर्णनम् -
येना तारि समां सुधारिनिकरः सदेशना दानतः काले नल्प कुवादि जल्प विषमे मिध्यान्धकाराद्वृते उद्यद्वासर राजमंडळ निजं जागर्तियच्छासनम् सोयं श्री चरंमो जिनाधिप वरो जीव्यादनं तर्द्विदः ॥ ५ ॥ एवं पंच जिनाधीशान् सुराधीशार्चित क्रमात् अभिष्ट्रय प्रकृष्टेन भावेन कृत मंगलान् ॥ ६ ॥
अथ गुज्जर देशवर्णनम् ॥ दूहा ॥
सारद मात मया करी, प्रणमी सद्गुरु पाय । लेख पद्धति हिव वर्णवुं गाधुं गच्छपति राय ॥ १ ॥ जंबूद्वीप दक्षिण दिसै, भरतक्षेत्र मझार ।
गुज्जर देश सुहामणो, वीरमनगर उदार ॥ २ ॥
धर गुज्जर सुंदर धरण, हरण दुःख सुख ठाम । हरषित सुरवासो वसें, जेहवो गुण तस नाम ॥ ३ ॥ सहु देसां मांहे सिरै, सुरपति रच्यो निज हत्थ । वासवियो हर्पे करी, सुघड करण निज सत्थ ॥ ४ ॥ गुणप्रकारंभ (? सुं) गुज्जर तणा, लक्ष्मी कीनो वास । जगति वसाव्यो जेह धर, अधिकी पूरण आस ॥ ५ ॥ वीरमनगर सुहामणो, वनवाडी जग सार । कवि ओपम कासु कहै, पसरी जग विस्तार ॥ ६ ॥ तेहिज गुज्जर देसमें, वीरमनगर सुनाम । गुणमणि रयण करंड ज्युं, भर्यो रहे सुखठाम ॥ ७ ॥ चिहुं दिसि हरियाली खुली, नीरतरुवर नीर । सलिल परसरै नवल तरु, ओटै किया गुहीर ॥ ८ ॥ शीतल छाया तरु भला, जिम माया फल वेल । छंदा कर राखै सदा, इण विध मननो मेल ॥ ९॥
सूरज चंद्रज देख नै, हरषित हुवै निसदीस ।
धन धन इण नगरै नरा, वसै सु पवन छत्तीस ॥ १० ॥
| देशी भटियाणी री ॥
नगर वीरमपुर सोहै हो मन मोहै सुरतर वृंदना; गढ मढ तोरण मंड | ऊंची गत विधि भीति हो बहुदीप्ति कीर्त्तिकंगुरा, श्वेत वरण चंद्र खंड ॥ १ ॥ न० ॥
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५२ : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ
कंगुर पंक्ति बिराजै हो अति छाजै सूरज किरणना, मानुं निकस्या आज । सहस किरणना मन मै हो ते जागे बीजो चंद्र है, पिण रवि तीजो माझ ॥ २ ॥ न० ॥ हिव पुर परसिर खाई हो बड़ छाईचाई बहु जलै, पातालवर पैठ ।
दरवाजे भली भुरजां हो जिम दुरजन नै मन भगवा, थूल पृथुल गुरु गृठ ॥ ३ ॥ न० ॥ पुरनी मंडप हो कवि मुखथी जिम तिम वर्णवै, नगर घरोघर मान ।
ऊँचा मंडप अडिया हो नाभिं गडिया सूरज किरण नै, मानु रवि जोवण ठान ॥ ४ ॥ न० ॥ मंदिर सवि छाजै हो मानु राजे स्फटिक रयणतणा, जाली गोखां जोड ।
नवल महिल घन मेडी हो मिल मेडी बंगला उज्वला, करणी विराजै कोड ॥ ५ ॥ न० ॥ चहा मंडप राजे हो विराजे मारग चोपडा, श्रेणी हटाउल ओोट ।
फिरता छत्रीले पठणा हो, नही ऊणा धन धण सुंदरा, व्यापारी बहु मोट ॥ ६ ॥ न० ॥ चपल तुरंगम सोहे हो मन मोहे गयवर गाजता, रथ सु पालखीयानी जोर ।
राज मारग में तरुणी हो गत वरणी गयवरनी सदा चालती माचसमां चोर ॥ ७ ॥ न० ॥ मिलती हिलती नारी हो सुर नारी परे सोभती फिरती चोहटा मांह। लेजो बहु के भाजी हो मन राजी देखीने हुवै, बैंगण साग विकांह ॥ ८ ॥ न० ॥ खारिक पिस्ता खिजूरा हो मन जूरा किस्ता हुवै सदा, पुंगीफल बहुमोल | अंबारायण केला हो बहु मेला मेवा सामठा, लेबै लोक अमोल ॥ ९ ॥ न० ॥ जरीयां रेशमी गंठा हो भरि बैठा थिरमा सावटु पट्ट् नीला लाल ।
पंचरंग पर पांडीया हो भजदीयां वींटी नग भहा, भारी मोला माल ॥ १० ॥ न० ॥ साड़ी छीटां सुहावे हो मन भावे जोडण कांबली, देव कुसुम बलि दाख
।
जाती फल तज चीणी हो वलि फीणी सुरमा जलेबियां लाडु घेवर साख ॥ ११ ॥ न० ॥ देहरा यार विराजै हो गाजै नादें अंबरा, ऊंचा अति असमान ।
कोरणी अति मन हरणी हो वरणी नही जाये सही, गावत गंधप गान ॥ १२ ॥ न० ॥ शांतिनाथमहाराजा हो मन भाया सुरनर इंद्रने, श्री प्रभु पार्श्व जिनंद परविख परता पूरै हो दुख चूरै भविजन वृंदना, आप सुख अमंद ॥ १३ ॥ न० ॥ सरणागत साधार हो मुनिधारे अनुभव ध्यान में, आलंबन जगतात । बीरम परसर रानै हो दिवाने राजे महीपति श्री सकुंजानी जात ॥ १४ ॥ न० ॥ धात्रक बहुतै युक्ति, गुरुभक्ति नित प्रति साचवें, पूजा विविध प्रकार ।
सतर मेर ने स्नात्रै हो, शुचि गात्रै आठ प्रकार सुं, गावे मंगलाचार ॥ १५ ॥ ० ॥ माता ईश्वर गणपति हो, फणपति भैरू देहरा, सहसलिंग तलाव ।
जोगण चोसठ मंडी हो, ग्रहचंडी बावन वीरना, पूजे शिवमती भाष ॥ १६ ॥ न० ॥ गछ घोरासीना साला हो भ्रममाला गुणह गंभीरनी, साधु घणाहिय ज्ञान । सामायिक बहु पोसा हो नहिं थापण मोसा को करो, जैनधर्म शुभप्यान ॥ १७ ॥ न० ॥ एहवो पुरवर बसतो हो मुख इसतो इंद्रनगर परे, नहिं एहवो बलि कोय। दिन हो तिहां आई श्रीजी साहबा, गच्छ धारी तुम होय ॥ १८ ॥ न० ॥ विनती करि बहुवारि हो हितधारी नहि तुमे साहवा, टोकर सेठ कहे जाण । हिवे तुम पूज पधारो हो अवधारो मंगल चारनें, संघ आग्रह बहुमान ॥ १९ ॥ ० ॥ घणा महोच्छव वाजे हो दिवाजे गाजे आवीया, वीरमगाम से धाम ।
घर घर मंगल गाया हो बचाया श्रीजी साहिबा, दीपक मुनि कठै ठाम ॥ २० ॥ न० ॥
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दूहा
छप्पय
दूहा
काव्य -
दूहा -
मेड़ता से विजय जिनेन्द्रसूरिको वीरमपुर प्रेषित सचित्र विज्ञप्तिपत्र : ५३
True वीरम सहर में, फतेसिंघ बाबोराय ।
धरम नीत प्रतिपालणो, वखत वडै सुभ भाव ॥ १ ॥
सदा रहो शिव भक्ति उर, क्षत्री धर्म सुभाव । रीत नीत जालम मही, गहिरो फतैसिंघ राव ॥ २ ॥
महा सूर सीर वीर चिहुँ दिसां वदीतो तेज पाण तरवार च्यार दिस सहजां जीतो न्याय नीत में निपुण दीपै दातार दिन प्रत धरमधुरा धारणो हेक शिवभक्ति हुता हित फतेसिंघ गहिरो गुणा, बड़ वखत वाटे वरो सूर ज्यो रहो सालम मही, कोड जुगां राजस करो ॥ १ ॥
सोबादार सदा गुनी, बखतवंत नर नाथ ।
श्रीजी साहिब वीनती, पउधारो नर साथ ॥ १ ॥
करि वंदन श्रावक कहे, पउधारो पुर माह । जनम सफल होसी खरो, धरम कलप विकसह ॥ २ ॥ इम सुण श्रीजी ऊठीया, मंगलकलश वंदाय । जय जय शब्द उचारीया, भट्ट चरणशुभ वाय ॥ ३ ॥ आर्ये भारत खण्ड मण्डन निभे श्रीमजनोद्यत्प्रभे । शी स्थिति सो दये धनि जनैस्सर्वत्र वित्ताह्नये । देशे गुर्जर संज्ञिके नरपति प्रोढप्रतापोदये दुष्टा नीतिदुरीति भीत रहिते विक्रमेपत्तने ॥ १ ॥
अथ श्रीविजय जिनेन्द्रसूरीश्वरानां वर्णनम् काव्य माधुर्येण वचः श्रिया नयनयोर्भालस्य भाग्योदये कान्त्या कान्ततनोर्मनोऽमलतया सिद्धया करांभोजयो कत्तु जैन मतानुगं समजगद् येषां क्षितौ विहृति स्ते पूज्या जिनशासनारुणसमाः साक्षाद्गुणेशोपमा ॥ १ ॥
अथ छंद माणकदण्ड-
श्री पूज्यराज गुणके जिहाज, जिम इंदुराज, गुणविमल साज विद्याभंडार, अनुपम आचार, संयम सुधार, जुगतलि विचार शीले सरूप, त्रिण भवन भूप, गुणके गुहीर, त्रिणरत्न सीर मेरूसुधीरः परत्रिया वीर, आनंदकंद, जिम सुधाचंद विलसो विवेक, चारित्र टेक, धर्महसुरिंद, तिण तखतचंद्र दीपक, वृंद सुख स्नेहकंद, अष्ट करमके भांजणहार, महिमात्रंत महंत ॥
गुण हवा तुमचा कहुं, एक जीभ जो होय
आचारिज गुण आगला, एकसो आठ हि सोय ॥ १ ॥
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५४ श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ
ढाल (२) पासजिनेसर साहिबा रे ए देसी ।
पूज्याराध्यतमोतमा रे, वंदनीक पूजनीक । सकल गुणें करी सोभता रे, गछपतीयां सिर टीक ॥ १ ॥ जाणो जिनेंद्रसूरीश्वरू रे ।
भारती कंठविराजता रे, कलिगोतम अवतार ।
अयोयजीव प्रतिबोधवा रे, उदयो दिनकर सार ॥ २ ॥ ज० ॥ इकविध असंजम तणा रे, टालण गुण मणि खाण । याचक दोयविध धर्मना रे, तीन तत्वना जाण ॥ ३ ॥ जा० ॥
प्यार कपायनें जीपता रे, पंचमहामतधार।
रक्षक पटविध जीवना रे, भय सप्त दीव निवार ॥ ४ ॥ जा० ॥
टालक आठे मद तणा रे, नव महाचर्यना धार ।
दशविध यतिधर्म धारणा रे, वाचक अंग इग्यार ॥ ५ ॥ ज० ॥
बारे उपांगने वाचता रे, तेरह काठीया जाण ।
चवद विद्या ने जाणता रे, सिद्ध भेद पनरै वखाण ॥ ६ ॥ जा० ॥
सोल कला शशि निर्मला रे, सतरैह संयमपाल ।
पाप स्थानक अठारना रे, नेहनिवारण साल ॥ ७ ॥ जा० ॥ उगगीस दोष काउसग तथा रे, पीस स्थानक तप जाग श्रावक गुण इकबीसना रे, वाचत हो वरवाण ॥ ८ ॥ जा० ॥ परीसह बावीस जीपता है, विषय राज्यो तेपीस ।
आणा जिन चोवीसनी रे, पालो विश्वावीस ॥ ९ ॥ जा० ॥ भावना पचवीस भावता रे, कप्पाज्झयण छावीस । उपदेशक अंगें किया रे, मुनि गुण सत्तावीस ॥ १० ॥ जा० ॥
मतिज्ञान भेद अठ्ठावीसना रे, उपदेशक मुनिराय ।
गुण तीस पाप श्रुत तणा रे, संग नही समुदाय ॥ ११ ॥ जा० ॥ मोहनीना स्थानक अछै रे, तीस भेद सुविचार |
सिद्ध भेद इकत्रीसना रे, छन्नीस लक्षण धार ॥ १२ ॥ जा० ॥ तेन्रीस आसातन तणा रे, टालक हो निशदीस ।
चोवीस अतिशय जाणता रे, वागीगुण पैंत्रीस ॥ १३ ॥ जा० ॥ छत्रीस उत्तराध्ययनना रे, उपदेशक गुरुराय ।
गणधर कुंथु जिनंदना रे, सैत्रीस जाणो माय ॥ १४ ॥ जा० ॥ खुड्डिय विमाणना वर्गना रे, उद्देशक अढन्रीस ।
समयक्षेत्र मांहे रे, कुलगुरु गुणचालीस ॥ १५ ॥ ज० ॥ देहमान श्रीशांतिनो रे, धनुष कह्यो चालीस ।
पदम महलीय वर्गना रे उद्देशा इकतालीस ॥ १६ ॥ जा० ॥ बयालीस कहोदधि रे, सूरज है उद्योत ।
कर्मविपाकना देख रे, तयालीस धतबोध ॥ १७ ॥ जा० ॥
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मेड़तासे विजयजिनेन्द्रसूरिको वीरमपुर प्रेषित सचित्र विज्ञप्तिपत्र: ५५
दूहा
उद्देशा वर्गे कह्या, चोथे चम्मालीस । धर्मनाथ निज देहना, धनुषह पैतालीस ॥१८॥ बंभी लिपीना जाणीयै, अक्षर छयालीस । अग्निभूत ग्रह में वस्या, वर्षजु सैंतालीस ॥ १९ ।। चौदमा धर्म जीणंदना, गणधर अडतालीस।। तेरेन्द्रीना भाऊषो, धनु गुण पचास जगीस ॥२०॥ देह अनंत जिणंदनो, धनुष भलो पचास । उद्देशा इक्कावना, नव ब्रह्मचर्यना भास ॥२१॥ मोहनी कर्मतणा कह्या, सूत्र भला बावन्न । पंच अनुत्तर ऊपना, वीर सीस तेपन्न ॥ २२॥
ढाल (३) पाडोसणरी देसी। एतो नेम जिणंद छद्मस्ते हो योगीश्वर दिन चौपन्ने हो (२) विचर्या महीयल मुदा । एतो वीरजिणंद अंतकाले हो जो कह्या अज्झयण हो (२) पचावन शुद्ध उदा ॥ २३ ॥ एतो विमलजिणंदना जाणो हो जो० गणधर शुद्ध हो (२) छप्पन गुणमणि धरा। त्रिण गणि पिटक विमल कर जाणो हो जो० कह्या अज्झयण हो (२) सत्तावन शुभवरा ॥२४॥ एतो ज्ञानावरणी ने वेदनी हो जो आयु नाम जाणो हो (२) अंतराय सुद्ध लहो। उत्तर प्रकृति पांचनी जाणो हो जो० अठावन मानो हो (२) शास्त्रै सुधै वहो ॥ २५ ॥ इकरित चंद्र संवत्सर जाणो हो जो गुणसठि लहिये हो (२) निसिमान में सदा। एतो विमल जिणंद तो जाणो हो जो० साठधनु कहिये हो (२) देह मान समें मुदा ॥ २६ ॥ चंद्रमंडल इगसठ जाणो हो जो० भागें भजियें हो (२)लहियो सुभ ध्यानथी। वलि शांति जिणंदना जाणो हो जो० बासठि सहस्र हो (२) मुनिवर शुभ मानथी ॥२७॥ एतो निषध नीलगिरि ब्रेसठे ही जो० करत प्रकाशा हो (२) उद्योत जिणंदजी। एतो चक्रवर्ती गलामें पहिरे हो जो चोसठि सरिया (२)सुधहार सुं ऐंदजी ॥२८॥ एतो जंबूद्वीप में जाणो हो जो० रवि पणसठै हो (२) मंडल कर जोतिना। दक्षिण मानुषगिरमें जाणो हो जो० चंद्र तपंता हो (२) छासठि सुध सोतना ॥२९॥
श्री प्रयोग जिन), गणधर सतसठ जाण) धातकी खंड जिणंदना, अडसठ कझा वखाण ॥१॥ सात करम उत्तर प्रकृत, गुणहोत्तर विण मोह। सित्तर धणु उंचापणु, वासुपूज्य तनु सोह ॥२॥ इकोतर पूरब सहस, अजित वस्या गृहवास । कला बहोत्तर जाणीये, विद्या लील विलास ॥३॥ विजय बलदेव तो आउषो, सहस तिहोत्तर वर्ष । अग्निभूत गणधर तj, आयु चहोत्तर वर्ष ॥ ४ ॥ पंच्योत्तर से केवली, पुष्पदंतना जाण । लक्ष छिहोत्तर पूर्वथी, भरत थयो महराण ॥ ५॥
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५६ : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ
ढाल (४) श्री संखेश्वर पासजिणेसर भेटियै । सत्तोत्तर लव एक मुहुर्त्तनो मान छै । अकंपितनो आयु अठोत्तर वान छ । जंबूद्वीपनी पोलनो कहीयो भतरो । जोयण गुण्यासी सहस कह्यो तिहां सांतरो॥१॥ श्रीश्रेयांसनो मान कह्यो केवळ मुखै । भसी धनुष प्रमाण लहो विधथी सुखै । नवनमीया मुनिजाण कहं सास्त्रे भला । प्रतिमाना दिनमान लहो चितथी सला ॥२॥ इक्यासी ते जाण भली विध चित्तमें । देवानंदनी कूख वस्या वीरजी समै। बयासी निस जाण वले शीतल जिना । गणवर व्यासी शुद्धि क्रिया गुण शुधिना ॥३॥ ऋषभदेव जिनंदना गणधर जागीयै । चौरासी शुद्ध जाण जगत्र वखाणीये । उद्देशा पढमांगना पिच्यासी कह्या । सुविधि तणा गणधार छीयासी सर दह्या ॥ ४ ॥ उत्तर प्रकृत छव कर्मनी सत्यासी सही । धर्म जिणंद गृहवास भव्यासी जग लही। शांति जिणंदनी साधवी सहस नियासीये । नेऊ धनुषनी जाण शीतल जिन तनु कीये ॥५॥ आयु गोत्र विण कर्म छवैनी जाणियै । कहीय ईकाणुं सार हीया में भाणीयै। इंद्रभूतिगणधार वरष बाणुं लहो। चंद्रप्रभु जिणराय तिराणु गण कहो ॥ ६ ॥ चोराणुं गणधार अजितजिनना भला। पचाणुं गणधार सुपार्श्व जिणंद सला। वायुकुमारना भुवन छिनु लख जाणियै । उत्तर प्रकृति वखाण करम अठ माणियै ॥ ७ ॥ सत्ताणु कही भाष करमनी सरदहो । ऋषभनै साथै दीक्षक निजसुतमन लहो। भठाणु शुद्धचित्त सुश्रीजी जाणिया। जोजन सन्निनाणवै सुरगिर माणीया ॥ ८॥ पारसनाथनो आयु सतह वर्ष जाणज्यो । दसदसमी या पडिमाह तिके मन आणज्यो। एक सो एक दिनमान प्रमाण सुधारणा । कुल इकोत्तर सतनुं श्रीजी सारणा ॥९॥ बीडोत्तर वलि रूपक भेदावलि लही। तीडोत्तर सत नाम ते श्री जी सईही। चीडोत्तर सत राग भेद भणावता । पंचाधिक सत जाण कुंडलिया जणावता ॥१०॥
षट उत्तर शत तेहना, दोधक छंद सुभेद। इक शत सातें आगला, गाथा दोधक वेद ॥ १ ॥ मिणिया नवकर वालियै, एक सौ आठ प्रमाण । जासु कर जपीये सदा, श्री सदगुरुनो ध्यान ॥२॥ इत्यादिक बहु गुण कह्या, जाणे श्रीजी सार।
कविता किम गुण कर सके, दीपक मन विस्तार ॥ ३॥श्री.॥ सकलगुणमणिविरचितगात्रैः अनवद्य विद्या विशारदैः श्री सिद्धान्तार्थ स्मारकैः अस्ति नास्ति सकल ज्ञायक तत्त्वैः सप्तनयवाद विद्या ज्ञायकैः रनवद्य गद्यपद्य हृद्य समय शाब्द तर्क छन्दोलङ्कार गणितादि विविध तन्त्रज्ञैः सर्वत्र लब्धि प्रतिष्ठैः विद्या मद घूर्णित वाद्योधकक्षदात्रैः व्याकृत्यलंकृति कोशादिभिः पाठित वैनयिक छात्रैः सद्विद्यौदार्य धैर्य गांभीर्यादि गुणगणपात्रैः प्रधारित सराद्विवदातुल्यसच्चारित्रैः । करतलकलितामलकवदमलविदित सज्जैनिक तंत्रचारित्र्यशास्त्रैः । उरीकृत शिरसिजिनानुशासनशिरस्त्रै ॥ सच्छीलशीलपुण्यसरसरिन्नीरपवित्रैः महामन्त्र पंच प्रस्थान यत स्मारकैः कषायगिरीभेदक महावज्र वद्वीर्य युतैः महा मोहमल्लजीपकैः, पंचाचार पालकैः। न भव्यजन प्रतिबोधनैक मार्तण्डैः ॥ अष्टादशसहस्र शैलांग रथवाहकैः। षट्जीव रक्षाकारकैः। सप्त भयनिवारकैः, अष्ट महामदभेदनैक हरि तुल्यैः। दशविध यतिधर्मवारकैः। एकादशांग वाचनैक रसिकैः द्वादशोपांगामृत वर्षणैक घनसमूहैः। श्रीवीरपट्टप्रभाकरैः ।
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THSTE DERNION
चित्र १ पृष्ठ ५०, पंक्ति ४-५
आगे-पीछे चित्र १-४
वि. सं. १८६७ में, मेडतेके श्रीसंघकी ओरसे वीरमपुर (वीरमगाम - गुजरात ) स्थित तपागच्छके आचार्य श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिको भेगे गये विज्ञप्तिपत्रका चित्रविभाग (देखिये पृ० ५०)
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चित्र २ :
पृष्ठ ५०, पंक्ति ५-७
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चित्र ३ : पृष्ठ ५०, पंक्ति ८-१०
चित्र ४ पृष्ठ ५०, पंक्ति १०-१२
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मेडतासे विजयजिनेन्द्रसूरिको वीरमपुर प्रेषित सचित्र विज्ञप्तिपत्र : ५७
महामुनि संसेवित चरणजलजैः। पंच महावतपालकैः। श्रीमदाचार्यवय्यः धर्म धुरिणैः॥ सकलगुणगरिष्टै रेत्यादि पत्रिंश त्रिंशतिषट् गुणोपेतः । जंगम जुगप्रधानः सकलभट्टारक शिरोमण्यैः पुरन्दर भट्टारकैः॥ भ। जी श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री १०८ श्री श्री श्री श्री श्री श्री विजयजिनेन्द्रसूरीश्वरजित्क पा चरणान् दलमितः श्री मेदनीपुरतः समस्त संघ लिखति प्रणति पत्रद्वारा सहस्राष्ट संख्येति वाच्या ॥ अत्र श्रीमदिष्टदेव प्रसादागव्यं । तत्रापि श्रीमतामगण्य पुण्यवतामहर्निशं भावुकं भूयादिति। यूयं गुग गरिष्टाः। सदिष्टाः। तथा च श्रीमतां शुभवतां भवतामाध्यानमहर्मिशं मयिका क्रियते श्रीमद्भिरयई समये स्मरणीयं यदुक्तं नैषधकाव्यः
तववर्मनि वर्ततां शिवं पुनरस्तु भवतां समागमः
अयिसाधय साधयेप्सितं स्मरणीयाः समये वयं वयः॥१॥ इत्यादि ज्ञेयं । तया च कृपादृष्टि सृष्टि रक्षणीया। नो हेयाश्रीमद्भिः प्रीतिरीतिरस्मदुचितं कार्य संलेख्यं । पार्थिवयं नो विचार्यम् ॥
काव्यलब्धेगौतम प्राज्ञवान् सुरगुरु रूपे रतीनां पतिः आदित्यस्य वपुः प्रभा नयनयोः कृष्णप्रियायां पुनः चंद्रोल्लासित कंजवत् गुरुमुखं वाणी सुधासागरः श्रीमद् पाटपटोधरो विजयते जैनेन्द्रसूरिश्चिरम् ॥ १ ॥
__ अथ वाणीवर्णनम्-॥ सवैया ३१ ॥ जाकी मधुराई आगे सयानी लजानी सुधा, जानी अपमानी तब नाक वास ठानी है। साकरी को काकर को रूप धरि रही छानी, योही डर राखि मर्नु द्राख सकुचानी है। याकै पक्षपात इक्षु लोकन समक्ष लक्ष, घानी में पिलानी याते अति ही डरानी है। सुनत सुहानी सवै रीझि रहे भव्य जानी, ऐसी सुगुरुवानी जाते वानीही हरानी है॥१॥
अथ मरुधर देश वर्णन भाषा छप्पयदेशां सिरहर देश वाह मरुधर वरणीजै वडा मरद वंकडां जेथ उतपति जागीजै। असल धरम. अकलंक असल हिंदुआण आचारं । दरसण षट देवांण बडो मरजाद विचारं ।। ते मझि जुधाण कमां तखत सहिर बीओ सहिरां सिरै। जोवतां सोभ सहि विधिजुगति जे सु अलकाही रहिगी उरै ॥१॥ __ अथ मरूधराधीश्वर राजराजेश्वर महाराज श्री मानसिंघ देव वर्णनमानासंघ वड़वखत विजय नृप तखत विराजै । नवतवंत नर नाह रूपत जेहो इंदराजै॥ गजन जिसो गजगाह राह हिन्दू ध्रम रख्यण। जैरी संक करै पतिसाह वाह सवि वात विचख्यण ॥ सक बंध भूप अवसाण सिच, भाण जास धरपुर अदल तप तेज भाण हिन्दू तिलक, माण दुजण आषाढ मल ॥२॥
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५८ : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ ..
अथ मेदनीपुर वर्णनम् - छप्पयते मरुघर मझ तिसौ नयर मेदनीपुर नीको। भुवण भामिनी भाल ताण विधिरचियो टीको । बहु गढकोट बाजार गयण छबि मंदिर गोखां । वणे चिहुं दिस वाग जेथ जण माणे जोखां ॥ कलि कंठ केकि पिक सब्द कर, हवा लेत भोगी हलक । दरगाह देखि चत्रभुज दरस, माने ते तीरथ मुलक ॥ ३ ॥
सवैया ३१वसें जहां च्यारवर्ण तामें ते से जिन के सवर्ण, और कौन ऐसा बड़ा सुमतीक है । धर्मषटकर्म दरम्यान बड़े सावधान, ग्यान ध्यान दान मान जान सुव्रतीक है। तर्क छंद व्याकरण ठारह पुराण वेद, विद्या दसच्यार के निधान तहतीक है। कहै कवि जीह एक कहां लु वखान याके, यो तो उपमान मानुजान किरती कहै ।
श्रीमेडता नगरथी, लिखत मुदा सुविचार । श्रीजी साहब मानज्यो, वंदणा वार हजार ॥ १॥ कहा ओपम तुमकुं लिखू, जगमें तुम सम होय । नमतां सीस पवित्रसु, पातिक दूरै होय ॥२॥ देस अनेक जगमें अछ, श्रीजी साहिब जाण। पिण मरुधर समवड़ नहीं, दीसै अधिको मान ॥३॥ मेरूधर अधिको मंडोवरो, जोधपर सरजाम । राजांन प्रतपै सदा, हिंदूतिलक ही ठाम ॥ ४ ॥
(१) कपूर हुवै अति ऊजलो रे-ए देसी। तिण हीज मरुधर देस में रे, नयरी मेदनीपुरनीक । भुवन भामिनी भाल ज्यु रे, तिणविध रचीयो टीक रे। सरिजन ॥ जाणो गच्छपति राय ॥ बहुगढ कोट बाजार छै रे, गगनांगण पुंता गोख । वनवाडी दिसवागसुं रे, भोगी माणे जोख रे ।। सु०॥ जा॥२॥ पवन छत्रीस जिहां वसै रे, लोक सहु धनवंत । कुबेर मिल संका करै रे, मुझ नगरी सु महंत रे। सु०॥जा०॥३॥ आदीसरनो देहरो रे, सोहै चउटा वीच । सूरज मन इम ऊपनो रे, कीरत थंभ ए वीच रे । सु० ॥ जा० ॥४॥ देहरा बारै सोहता रे, स्वर्ग सुं मांडै वाद।
महिमा घणी रे, महजित सर्व सुजाद रे ॥ सु०॥ जा०॥५॥ मेडता पुर सर सोहता रे, फलवधि पास जिणंद । मुझ मनवंछित पूरणा रे, चूरणा तमस दिणंद रे।। सु०॥जा०॥६॥
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मेड़ताले विजयजिनेन्द्रसूरिको वीरमपुर प्रेषित सचित्र विज्ञतिपत्र : ५९
राज तिहां सबलो अछै रे, मानसिंघ महाराज । नगरलोक सुखीया वसै रे, दिन दिन चढत दिवाज रे॥सु०॥ जा० ॥ ७ ॥ तेहनो हाकम गुणनिलो रे, पंचोली गोपालदास । राजधुरा धर धारणो रे, कीरत पसरी जास रे। सु०॥ जा०॥८॥ बहु व्यापारी तिहा वसै रे, लखपति अधिकै मांन । चोर चरड नवि संचरै रे, गोरी गावै गान रे ॥ सु०॥ जा० ॥९॥ वाड़ी पारसनाथ जी रे, पालकोट उदंत । देरागी वेव चार सुं रे, बाहिर नगर सुहंत रे॥सु०॥ जा०॥१०॥ दरजी पटवा सुंदरु रे, तंबोली सोनार। गणिका मोची तुरकड़ा रे, इत्यादिक सुविचार रे॥ सु०॥ जा०॥ ११ ॥ एहवो उपाश्रय किंहा नहीं रे, पूज पधारो वेग। धर्मवृक्ष फल लागसी रे, टलसी सगल उदेग रे ॥ सु० ॥ जा० ॥१२॥ गुलालविजय कविरायनो रे, दीपविजै कहै ताम । वंदणा माहरी मांनज्यो रे, थे छो गुण ना धाम ॥ सु०॥ जा०॥ १३॥
ढाल (२) डोरी मांरी आवै रे रसिया कडतळे,-ए देसी ॥ सदगुरु साचो रे जगमें सुरतरु, जपीयै निसदिन जाप । सनेही। रन रो भीनो गच्छ रो लाडलो, जिम इंद्र ओछक चाप । स०॥१॥ गच्छपति विजयजिनेन्द्रसूरीश्वरू॥ अविचल महिमा रे जगमें अधिपति, गणधर हंदो रे ज्ञान । स०। गणधर घट जपतां सूरज उदें, भांजत तिमर अग्यांन । स०।ग०॥ २ ॥ जग में क्रोध मान माया वली, लोभ मिथ्यात्व प्रचंड । स०। रागद्वेष अंतर रिपु जीतीया, दुर्द्धर दियै सिर दंढ । स० । ग०॥३॥ तेजवंता जयवंता जस मुखी, नाणवंत जसवंत । स०। लब्धि भंडारी लाभ कला भर्या, प्रणम्यति सघला संत ॥ स० ॥ ग०॥ ४ ॥ चंद्रमंडलपरि शीतल परदरा भास्कर सम वड़ तेज । स०॥ शुद्ध मारगना पालक शुभकरा, भविजनथी बहु हेज । स० । ज० ॥५॥ जाति रूप कुल बल वपु उत्तमा, विनय सुनाण संपन्न । स०। दंसणचारित्र अवर क्षमा दया, सत्य सौच्च उपन्न ॥ स० ॥ ग० ॥ ६ ॥ चरण करण आर्जव माईवा, बंभचेरई सुविचार । स०। भाकिंचण निर्लोभी तारण तरा, इत्यादिक गुण सार । स०।ग० ॥७॥ काव्य पुराण व्याकरण छंदना, टीकाशास्त्र अभ्यास । स०। आगम नय उपनय गांभीर्यता, जुक्ता जुक्त निवास । स० ग०॥८॥ तर्कशास्त्र निरजुक्ति स्वपर तणा, उत्सर्ग ने अपवाद । स०। निश्चयनय व्यवहार सदामती, जाणक सगला जाद । साग०॥९॥ निर्दाटक पाखंडी छेदता, पंच मिथ्यात्व निवार। स०। कुमति कदाग्रह तृष्णा छेदता, जिम वन छेद कुठार । स०।ग० ॥१०॥
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६० : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ
धर्मपुरंवर मेरु तणी परे, महिमा जगविख्यात । स० ।
पटविध जीव निकाचित रूपना, मात तात ने भ्रात | स० ॥ ग० ॥ ११ ॥ सत्रु मित्र सम चित धरता सुखे कृपा समुद्र पवित्र । स० ।
गंगा जलपरि निर्मल तुम गुणा, जेहना सरस चरित्र । स० । ग० ॥ १२ ॥ प्रवचन सार उद्धार प्रकरणे, आचार्य गुण छत्तीस । स० ।
विविध प्रकारे भांगा वर्णव्या, गणी न सकुं मुनीस । स० । ग० ॥ १३ ॥ जिम गयणांगण तारा नवि गिण सके, तुम गुण कहिया न जाय। स० । पति सहस प्रसंसा जो करै, तिथी पिण न कहाय । स० । ग० ॥ १४ ॥ उज्जल विधुमंडलस्युं तेजनो, स्युं डंडीरव मान स० । परिमल उज्जल गुण धिक्य है, स्युं कहुं वधतेत्रान । स० । ग० ॥ १५ ॥ गिरवा पुरुष ते सहजै गुण करे, कार्य में कारण जाण । स० ग० ॥ १६ ॥
तरु सींचे सरोवर सुभ भरे, मेघ न मांगे दाण । स० ग० ॥ १६ ॥
हीयड़ा में किम साजन वीसरे, ते सज्जन सुविचार | स० ।
दिन दिन घड़ी घड़ी पल पल सांभरे, जिम कोइल सहकार | स० । ग० ॥ १७ ॥
तपगच्छ मंडण हीर दिवाकरू तेहना वंस में भाण । स० ।
पंडित गुलाल विजय कविरायनो, दीपक गाया जाण । स० | ग० ॥ १८ ॥
ढाल (३) म्हांरा वाला वाहण जोतो रे पगडानो तारो ऊगीयो-ए देशी।
श्रीजी सकल मन चाहता, संघ तो चित्त मांहे जी।
भावोजी आस्या पूरीयै, भविपंकज विकसाहे जी ॥ सद्गुरुराय पधारिये ॥ १ ॥ आतम तुमने ओलगु, लक्षणचेतन जाणो जी
चेतनता तो जेल है, पामी सद्गुरु वाणो जी ॥ २ ॥
आतम असंल प्रदेश है, लोकाकाशे तेही जी ।
आतम आतम ए प्रमा न्यूनादिक नहीं सेहो जी ॥ स० ॥ ३ ॥
एक प्रदेशना देश में, गुण कहीजे अनंत जी ।
परजय शक्ति अनंतता, परिजय धर्म अनंत जी ॥ स० ॥ ४ ॥ एद स्वभावज जीवनो, अस्तै नास्तियंतो जी।
सत्वी स्वभात्रै अस्तिता, नास्ति परव प्रपंच जी ॥ स० ॥ ५ ॥ रुचक प्रदेश बिना कहूं, वर्गणा अनंत मानो जी ।
कर्म रज वीटी रह्यो, जिम रज बादल भानो जी ॥ स० ॥ ६ ॥ अनंत चतुष्टी संपदा, अनंत शक्ती जाणो जी ।
चरण भनंता ते कह्या, चीरज अनंतइ मांनो जी ॥ स० ॥ ७ ॥ अजर अमरपद राजवी, निश्रय ने मत जाणो जी।
विहारे संसारियो, एम आतम ए वानो जी ॥ स० ॥ ८ ॥ वीर पटोधर कही जता, जाणो सद्गुर राया जी । तुम वाणी श्रवणे सुणां, रुचसी मन में राया जी ॥ स० ॥ ९ ॥ रुचते दशविध जाणिये, कही पन्नत्रणा माहै जी ।
उपदेश बीजी संपदा भविजन तुमची चाहे जी ॥ स० ॥ १० ॥
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मेहता विजयजिनेन्द्रसूरिको वीरमपुर प्रेषित सचित्र विशसिपत्र ६१
नव ते आत्म प्रबोधी, धास्यै कर्मने रंगे जी।
तुम मुखना उपदेशनी, चाहां तुमने संगे जी ॥ स० ॥ ११ ॥
चीनतडी अवधारजो, साची प्रीत संभाली रे ।
कवर पदाना बोलडा, ते बोलडा प्रतिपाली रे ॥ स० ॥ १२ ॥ मेडता नगर पधारिये, चौमासो ठावीजै रे ।
श्रीसंघ बहु हंस ले, ते पूम्यां मन रीझे रे । स० ॥ १३ ॥ विक्रम में कांइ मोहिया, रोगीको ते देखो रे । कपड़ी गुज्जर में कह्या, ओछा तेहना बेसो रे ॥ स० ॥ १४ ॥ टीला बोला काबरा, क्यां क्यों स्युं स्युं बोले रे ।
पंगुला गटा, त्यां सुं चिच नमोलें रे ॥ स० ॥ १५ ॥ पण ते कामणगारडा, कामण कीधा केई रे ।
त्यां सुं मनडो भेदीयो, जाणो मनमां थेई रे ॥ स० ॥ १६ ॥
मै पिण कामण सीखस्यां, करस्यां कोट उपायो रे ।
गच्छपति राय नैं वदस्यां, सेवस्यां अहनिस पायो रे ॥ स० ॥ १७ ॥
छात्रा धर्मसुरिंदना, मात गुमानां जाया रे ।
हरचंद कुल में केसरी, गच्छपति सह मन भाया रे ॥ २० ॥ १८ ॥ संत अठारै सतसठे, कार्तिक मास सुहाया रे ।
सुदितेरस अगुवार, गच्छपतिना गुण गाया है। स० ॥ १९ ॥ पंडित मांडे शिरोमणी, गुलाल विजय गुरुराया रे । दीपविजयनी वीनती, लुलि लुलि लागे पाया रे । स० ॥ २० ॥ इतिश्री वीनती संपूर्ण मगमत् । लिखितोयं ॥ श्री ॥ १ ॥
ढाल - लुबैझुत्रे वरसलो मेह-ए देसी
श्री श्री जिनेन्द्र सुरिंद, गावो भवियण भाव सुं हो लाल । वारक भविजन एह, आचारज गुण डाव सुं हो लाल ॥ १ ॥ afai २ नावे पार, वीर पटोघर मनोहरू हो लाल । पग पग होत कल्याण, इहभव परभव सुखकर हो लाल ॥ २ ॥ राय प्रदेशी महन्त, राय पसेगी सूत्र में हो लाल ।
ध्येय आचारज जाण, व्यायो मन घर मंत्र में हो लाल ।
लह्यो ह्यो भवनो पार, शास्वत सुख पाम्या घणा हो लाल । तिम भवि सेवो जाण, नव निधि पामो नहीं मणा हो लाल ॥ ४ ॥ महामुनि तथा वखाण, श्रीजी पासै है भला हो लाल । दानविजय मतियंत पं० पद सुं जाणो सला हो लाल ॥ ५ ॥ rial रा खाण, विद्याविजय ऊपनो हो लाल । रामविजय मन जीत, सागर सुं ते नीपनो हो लाल ॥ ६ ॥ गीतारथ गुणवंत, नायक जय पद पामीयो हो लाल । माणक माणक दीव, केसर जय पद धामीयो हो लाल ॥ ७ ॥
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६२ : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ
फतैविजय मन रंग, दोलत ठामें गावियो हो लाल। पुण्यविजय परमाण, खुसालसागर भावियो हो लाल ॥ ८॥ इत्यादिक मुनिराय, सेवै मन सुधसुं सदा हो लाल । वंदना वारोवार, जाणेजो मुनिजन मुदा हो लार ॥ ९ ॥ इहां छै मुनिवर साथ, आज्ञा तुमची आदरै हो लाल। सेवक नित प्रति ध्यान, ध्यावै अहनिशि पादरै हो लाल ॥१०॥ पंडित मांहे प्रधान, गुलालविजय वंदणा करै हो लाल। संतोषविजय मन धीर, दीपै सुख विजयै धरै हो लाल ॥ राजविजय मनरंग, नगविजय सुभ भाण सुं हो लाल । माणकविजय मन धार, दलपति वांदै जाणसुं हो लाल । अजीतविजय सुखकार, ऋषभ राजेन्द्र दोय भाव सुं हो लाल । सिद्धविजय मन चंग, रूपक दान नवल सुं हो लाल ॥ १३ ॥ रतनश्री साधवी मान, ज्ञाने दौलत सुं भरी हो लाल।। श्राविका सरब सुचंग, चाहै निज मन शुभकरी हो लाल ॥ १४ ॥ लिखु लि कागल केह, सात समुदनी मिस करी हो लाल। कागल जो धरती होय, पार न आवै गुण खरी हो लाल ॥१५॥ वंदणा वार हजार, मानेज्यो गच्छपति मुदा हो लाल। । इहांना संघनो जुहार, तिहां कहज्यो संघने सदा हो लाल ॥ १६ ॥ अधिको ओछो लिखियो तेह, माफ करो महाराजजी हो लाल। मुंनि रस सिद्धिं ने चंद्र, कार्तिक सुदि काम राजजी हो लाल ॥ १७ ॥
-इत्यादि वर्णनं कार्यमगमत्-॥१॥
इसके बाद राजस्थानी लिपिमें लेख है। उसके बाद लिखी हुई भासको प्रथम लिखा जाता है :
॥भास स्वाध्याय ॥ देशी-नींद नयणा रै विच घुल रही एहनी साहिबा सद्गुरू चरण सुहामणा, वंदो भविजन भाव हो । सद्गुरुराजा ॥ साहिबा प्रेम अमृत रस बरसता, सिवपंथ सीझो डाव हो । स०॥१॥ गच्छपति विजयजिनेन्द्रसूरीश्वरू॥ साहिबा मुनि गहगाट सोभता, चंदज कुलना रूप हो । स०। साहिबा बुधभंडार खुल्या रहै, रीझवै पृथवीना भृप हो। स०। ग०॥२॥ साहिबा ठाम ठाम मंगल घणा, मोतीयां थाल भराय हो । स०। साहिबा पूजजी वधावै घरोघरै, दिल दरियाव सराय हो। स ग० ॥३॥ साहिबा वंस वधारण अभिनवो, वीरजिनेसर पट्ट हो । स०। छावा धर्म सूरीसना, प्रतपो वखत प्रगट्ट हो । स०।ग० ॥४॥ कोड दिवाली चिर जीवज्यो, प्रतपो कोड वरीस हो। स०। जैन धर्म मंडण धुरा, गुण गण रत्न सूरीश हो। स०। ग० ॥५॥
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________________ मेडता से विजयजिनेन्द्रसूरिको वीरमपुर प्रेषित सचित्र विज्ञप्तिपत्र : 63 मेडतापुरनी वीनति; मानेज्यो महाराज हो / स०। मरुधर देश पधारियै, देसा में सिरताज हो / स ग०॥६॥ वधाविस्युं गच्छरायने, मोतियां भरिभरि थाल हो / स० / जलधर सहुनें सम गिणे, तिम तुमे जाणो कृपाल हो / स० / ग० // 7 // गुलाल संतोषनी वीनति, जय जय पदना राग हो / स०। ध्यावै सद्गुरु चरणनै, सफल करै निज भाग हो / स.ग.॥८॥ साचा चरणनै सेवतां, सुख उपजै मन रंग हो / स०। दीपक मन हरख सं, देज्यो अविचल संग हो / स ग०॥९॥ इति स्वाध्याय समाप्तम् || श्री // स्वस्ति श्रीवीरमगांव नगर शुभस्थाने सकल शुभ ओपमा विराजमान अनेक ओपमा लायक एक वीध संजमरा पाळणहार, दुविध ध्रम रा जाण, तीन तत रा जाण, चार कषाय रा जीपक, पंच महाव्रत धारक, नव ब्रह्मचर्य रा पालक, दशविध जती भ्रम रा धारक, इग्यारै अंग रा जाण, बारै उपांग रा जाण, तेरै काठीयाजीपक, चवदै विद्या रा निधान, पनरै सीध भेद रा जाण, सोलै कला निर्मला, सतरै भेद संजम रा पालक, अठारै पापस्थानक रा निवारक, वीस थानक, इकीस श्रावक रा गुण प्रकाशक, बाईस परीसे रा जीपक, तेईस विर्षे रा निवारक, चोईस जिणेसर रा आज्ञा रा पालक, पचीस भावना रा जाण, छाईस कल्पना रा जाण, सताईस साधु गुण रा भंडारक, आग्यादक छतीस गुणेकर विराजमान, सकल भटारक सिरोमणी, पुज्य पुरंदर, भट्टारकजी श्री श्री श्री श्री श्री 108 श्री श्री विजैजिनेन्द्रसूरीसुर जी सपरिवारान्...चरणकमलान् श्री मेड़ताथी सदा सेवक आज्ञाकारी हुकमी पाट भगत समस्त संघ लिखतुं वंदणा त्रिकाल दिनप्रते वार 108 वार अवधारसी जी अठारा समाचार श्री देव गुरां री कृपा कर नै भला छैजी। पूज्यश्रीजी साहबां रा सदा सरबदा आरोग्य चाहीजेजी। पूज्य श्री जी साहबां रे आहार पाणी गंगाजल आरोगण रा घणा जतन करावसी जी, जतन तो श्री इष्ट देवजी करसी, पिण सिंघ नै तो लिखो चाहीजे, रु पुजजीरा चरणारविंद भेटण री संघ घणी उमेद राखै छे, सु श्री फलोधी पारसनाथजी री जात्रा सारू पधारसी नै मेड़तारा संघ नै वंदावसी तिको दिन धन हसीजी, श्रीजी मोटा छौ, श्री गणधर जीरी गादी विराजीया छो, सुश्रीजी रा गुणांरो पार नहीं, मेडता रा संघ ऊपर सदा कृपा रखावै छै तिण सुं विशेष रखावसी जी औ। मेड़तेचोमासे पुन्यास जी गुलालविजेजी संतोषविजै जी श्रीजी री आग्या सुं रहा सुंश्री पजुसण परब नीरविगन पणै वखाणपचखाण पोसग पडकुणा पुजा प्रभावना चैत्रप्रवाड़ घणा आडंबर सुं हुवा छै नै श्रीजी रो ध्रम रो घणो आछो लागो छै। बीजो समै बहोत तरैदार वरसो वरस उतरती समै आवै छै सु लिखण में कुं आवै नहीं जी पिण आज दिण तांइ तो श्रीजी रा उपासरा री नै गछ री सारी मरजाद सदा मद सुं साचवीजी गई है। गीतारथ चौमासै रहै सु बोहोत संकट पावै छै पिण श्री जी रा उपासरा री तो घणी मरजाद राखी छै पीछा हमें श्री अदीसटायक जी राखसी ने सरावगां रा घर सैर में निराट थोड़ा रहा छै आहार पाणी रो तथा कपड़ा री समै छै सु तो आगेइ आप जागै छै नै हमै विशेष संमे छै सु लिखणै जु नहीं। चोमासी तो आप घणा जोग्य मेलीया पण समै नहीं जिण रो विचार छै। बीजी पाटीये वखाण श्री जंबुदीपपनती वचै छै सेजाय श्री गीनाता सुत्ररी हुवै छै। वखाण सजाय तो नित हुवां जाय छै। गछी तथा पर गछी सरावग सरावगणी आयै छै / गच्छ रो फुटरो दीखावै छै और पोर का चोमासीया रा समाचार सींघ रा कागद सुं जाणसी। आप लीखो मेडतै में रहै तो रणै देजो मती सु मेडता में विना आग्या किसै लेखै रहैं नै किसै लेखै राखां। अठैतो श्री जी री
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________________ 64 : श्री महावीर जैन विद्यालय सुवर्णमहोत्सव ग्रन्थ आग्या माफक चालसी पिण इतरो विचार तो आपने इचाइजै मोटो खेत्र तुरत लिखते तुरत दीज नीराट हलको खेत्र नहीं लिखणो सुं आप विचार सु खरी। सिंघ रै भी तो सला बैठे जीण नै सैर लिखो, सला बैठे जिण नै छोटो गांव लिखो श्रीजी रा जती है, सींघ रै इण वेदी में कांई परोजन नहीं। सिंघ. तो श्रीजी रै आग्या परवाण छ नै श्रीजी लिखे मारी आज्ञा सींध थकी चालसी सुतो दुरस पिण श्रीजी पटो चोमासा रैटाणै नैड़ा दिनां में मेलो नै पछै पटो मारग में देखाय राखै सु आदेसी अलगी दूर सुं आवै सुं कद समाचार पूंगे नै कद आदरा पैली आवै सु मरजाद तो राखणी आपरै ही ज हाथ बात छै सु विचार लेसी। वाहड़ता कागद क्रीपा करनै दीरावसी, देव दरसण अवसरै सींघनै याद करावसी। सं० 1867 रा मिगसर सुदि 5 दी को। सिवचंद रा छै सींघ रे कहासुं लिखो छै। ___अंतमें अन्मुठिओमिका पाठ लिखकर विज्ञाप्तिपत्र पूर्ण किया गया हैं। नित्य विनय मणि जीवन जैन लायब्रेरी, कलकत्ता